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विभाजन के वक्त चले गए लोगों के वंशजो को कैसे बसने की इजाजत दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

याचिकाकर्ता के वकील भीम सिंह का कहना था कि नागरिकता केन्द्रीय सूची का विषय है और राज्य इस पर कानून बनाने के लिए समक्ष नहीं है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 11:45 PM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 11:45 PM (IST)
विभाजन के वक्त चले गए लोगों के वंशजो को कैसे बसने की इजाजत दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट
विभाजन के वक्त चले गए लोगों के वंशजो को कैसे बसने की इजाजत दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर पुनर्वास कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए राज्य सरकार से सवाल किया कि जो लोग 1947 से 1954 के बीच पाकिस्तान चले गए उनके वंशजों को कैसे फिर जम्मू कश्मीर में पुनर्वास की इजाजत दी जा सकती है। जस्टिस केएम जोसेफ ने राज्य सरकार से कानून में दिए गए वंशज शब्द की परिभाषा पूछते हुए आगे कहा कि कानून देखने से लगता है कि वंशज शब्द उन्हीं के लिए है जो गए थे और वापस आना चाहते हैं। इस शब्द को उनकी पत्नियों और बच्चो पोतों तक आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है।

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जम्मू कश्मीर पुनर्वास कानून 1982 की वैधानिकता का मामला

संविधान में ऐसा कोई विचार नहीं है जो उनके वंशजों के वापस आने की बात करता हो। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी सवाल किया कि इस कानून के तहत अभी तक कितने लोगों ने आवेदन किया है। और आवेदन करने वालों में कितने राज्य के स्थाई निवासी हैं तथा कितने आवेदन उनके वंशजों की ओर से प्राप्त हुए हैं।

सुप्रीम कोर्ट मामले पर जनवरी के दूसरे सप्ताह मे करेगा सुनवाई

इसके साथ ही मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, संजय किशन कौल व केएम जोसेफ की पीठ ने सुनवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह तक के लिए टाल दी।

जम्मू कश्मीर नेशनल पैंथर पार्टी ने जम्मू कश्मीर पुनर्वास कानून 1982 (जम्मू कश्मीर ग्रांट आफ परमिट फार रिसेटेलमेंट इन (या परमानेंटर रिर्टन टू) द स्टेट एक्ट 1982) की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। यह कानून 1947 से 1954 के बीच पाकिस्तान चले गए लोगों और उनके वंशजों को जम्मू कश्मीर में पुनर्वास की इजाजत देता है।

याचिकाकर्ता ने कानून और कानून में प्रयुक्त विशेष तौर पर वंशज शब्द पर आपत्ति उठाई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कानून असंवैधानिक और मनमाना है इसके चलते राज्य की सुरक्षा को खतरा हो गया है। क्योंकि इससे लाखों लोग जो पाकिस्तान में पैदा हुए हैं भारत आ सकतें हैं जिससे सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में इस कानून पर रोक लगा दी थी। तभी से इस पर रोक है।

गुरुवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील से कानून में प्रयुक्त वंशज शब्द के मायने और परिभाषा पूछते हुए उपरोक्त टिप्पणियां की। राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस कानून पर रोक लगी है इसलिए यह अभी तक लागू नहीं हुआ है।

उन्होंने कहा कि उनके विचार में जो लोग 1947 में जम्मू कश्मीर छोड़ कर गए थे वे वंशज हो सकते हैं। हालांकि यह उनका निजी विचार है वे इस बारे में राज्य सरकार से निर्देश लेकर कोर्ट को सूचित करेंगे। कोर्ट ने कहा कि इस याचिका में अधिनियम के प्रावधान 4 (सी) को चुनौती दी गई है। जो कि वंशज शब्द के बारे में है। याचिका में वंशज शब्द को परिभाषित और स्पष्ट करने की मांग की गई है।

कोर्ट ने सरकार से पूछा कि अभी तक इस कानून के तहत उन्हें कितने आवेदन मिले हैं। संख्या चिंताजनक है या बहुत कम जिसे नजरअंदाज किया जा सकता है। सिंह ने कहा कि उन्होंने करीब 700 लोगों के बारे मे सुना है लेकिन राज्य सरकार ही सही संख्या बता सकती है। राकेश द्विवेदी ने कहा कि वह इस पर सरकार से निर्देश लेकर सूचित करेंगे।

सुनवाई की शुरूआत में जम्मू कश्मीर राज्य की ओर से पेश वकील शोएब आलम ने कोर्ट से मामले की सुनवाई टालने का अनुरोध करते हुए कहा कि यह मामला संवेदनशील है। अनुच्छेद 35ए की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होने तक इस मामले की सुनवाई टाल दी जाए।

केन्द्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का समर्थन किया, उन्होंने कहा कि सरकार याचिका का समर्थन करती है। इस मामले में केन्द्र सरकार पहले ही अपना जवाबी हलफनामा दाखिल कर साफ कर चुकी है कि वह विभाजन के दौरान देश छोड़कर चले गए लोगों की वापसी के पक्ष में नहीं है।

याचिकाकर्ता के वकील भीम सिंह का कहना था कि नागरिकता केन्द्रीय सूची का विषय है और राज्य इस पर कानून बनाने के लिए समक्ष नहीं है।


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