Vaccine Booster Dose: कोरोना वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद बूस्टर डोज कितना है जरूरी?
Vaccine Booster Dose अभी दुनियाभर में किसी व्यक्ति को अलग-अलग टीके लगाने के असर पर भी शोध चल रहा है। इसके सकारात्मक नतीजे आए तो भविष्य में बूस्टर डोज के तौर पर पहले लग चुके टीके से इतर कोई टीका लगाने का रास्ता भी अपनाया जा सकता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। Vaccine Booster Dose दिसंबर, 2020 में ब्रिटेन की 90 वर्षीय मार्गरेट कीनन को फाइजर के कोरोनारोधी टीके की पहली डोज लगी थी। क्लीनिकल अप्रूवल के बाद टीका लगवाने वाली वह दुनिया की पहली व्यक्ति बनी थीं। तब से दुनियाभर में पौने दो अरब के करीब टीके लगाए जा चुके हैं। इस बीच एक नया सवाल यह सामने आ रहा है कि कोई टीका कितने समय तक किसी को बचाने में कारगर है। साथ ही बूस्टर डोज की जरूरत को लेकर भी बातें होने लगी हैं। बूस्टर डोज की जरूरत है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि लंबी अवधि में कोरोना वायरस के खिलाफ हमारा इम्यून सिस्टम किस तरह काम करेगा और किस तरह से वायरस अपना रूप बदलेगा यानी उसके वैरिएंट सामने आएंगे। बहरहाल जिस तेजी से कोरोना वायरस के वैरिएंट सामने आ रहे हैं, उससे बूस्टर डोज की जरूरत को लेकर आवाज उठने लगी है।
वायरस के खिलाफ हमारा इम्यून सिस्टम काम कैसे करता है?: हमारे इम्यून सिस्टम की बी-सेल्स और टी-सेल्स मिलकर किसी वायरस का सामना करती हैं। इसी प्रक्रिया में शरीर में एंटीबॉडी बनती है। वैक्सीन इसी के जरिये शरीर में एंटीबॉडी के निर्माण में मदद करती है। इस दौरान शरीर में उस वायरस से संबंधित यादें संरक्षित हो जाती हैं। दोबारा उस तरह का वायरस आते ही इम्यून सिस्टम फिर सक्रिय हो जाता है और उसे खत्म कर देता है। कुछ मामलों में यह याद बहुत लंबे समय तक बनी रहती है और वायरस आते ही इम्यून सिस्टम फिर सक्रिय हो उठता है। वहीं कुछ मामलों में यह याद ज्यादा लंबे समय तक नहीं बनी रह पाती है। ऐसी स्थिति में वैक्सीन की बूस्टर डोज कारगर हो सकती है।
वैरिएंट से भी पड़ता है बहुत असर: विज्ञानियों का कहना है कि वायरस के वैरिएंट आना नई बात नहीं है। सवाल यह है कि वैरिएंट कितना असर करते हैं। कोरोना के नए-नए वैरिएंट को देखते हुए यह प्रश्न भी उठने लगा है कि मौजूदा टीके इन पर कितने कारगर हैं। फिलहाल फाइजर-बायोएनटेक और ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के टीकों को नए व ज्यादा संक्रामक विभिन्न वैरिएंट पर भी कारगर पाया गया है। हालांकि अगर दिखता है कि नए वैरिएंट पर वैक्सीन का असर कुछ कम है, तो बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है।
बूस्टर की हो रही तैयारी: बूस्टर डोज को लेकर धीरे-धीरे कदम बढ़ रहे हैं। पिछले महीने फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बॉरला ने कहा था कि टीके की दोनों डोज के 12 महीने के भीतर लोगों को तीसरी डोज की जरूरत पड़ सकती है। इससे कुछ वक्त पहले ही भारत बायोटेक को भारत सरकार ने कोवैक्सीन की तीसरी डोज का ट्रायल करने की अनुमति दी है। हालांकि अभी कोविड-19 का कारण बने सार्स-कोव-2 वायरस को लेकर कुछ कहा नहीं जा सकता है, क्योंकि महामारी बमुश्किल डेढ़ साल पुरानी है। अभी यह कहना मुश्किल है कि हमें हर साल टीके की डोज लेनी पड़ेगी या पहले साल एक बूस्टर डोज से काम चल जाएगा। बूस्टर डोज लेनी पड़ेगी या नहीं, अभी यह भी पूरी तरह तय नहीं है।
इम्यून बूस्ट के लिए कैसे काम करेगी तीसरी डोज?: जानकार बताते हैं कि विभिन्न वैरिएंट वैक्सीन के असर को निष्क्रिय करते हुए आगे नहीं बढ़ते हैं, बल्कि इनकी अत्यधिक संक्रामक क्षमता इन्हें आगे बढ़ाती है। यही कारण है कि इनके खिलाफ नया टीका विकसित करने की जरूरत नहीं महसूस की जा रही है। तीसरी यानी बूस्टर डोज ही शरीर को अतिरिक्त इम्यून रेस्पांस देने में सक्षम हो सकती है, जिससे नए वैरिएंट का सामना करना भी आसान हो जाएगा। अभी दुनियाभर में किसी व्यक्ति को अलग-अलग टीके लगाने के असर पर भी शोध चल रहा है। इसके सकारात्मक नतीजे आए, तो भविष्य में बूस्टर डोज के तौर पर पहले लग चुके टीके से इतर कोई टीका लगाने का रास्ता भी अपनाया जा सकता है। इससे भी महामारी के संकट को खत्म करने में मदद मिलेगी।