Corona Crisis: लंबे समय से बंद स्कूलों में बदला पढाई का रंग-ढंग, जानें- क्या है होम स्कूलिंग
Homeschooling In India होमस्कूलिंग बच्चों को स्कूल से अलग घर पर पढ़ाने से संबंधित एक मुहिम है जो अमेरिका ब्रिटेन आदि देशों में वर्षों से जारी है।
सीमा झा/ अमित निधि। Homeschooling in India कोरोना संकट के कारण भले ही स्कूलों को लंबे समय तक बंद करना पड़ा है, लेकिन बदली परिस्थितियों में पढ़ाई के रंग-ढंग बदल गए हैं। बच्चों ने टीचर्स और पैरेंट्स के सहयोग से खुद को इसके अनुसार ढाल लिया। कब और कैसे जा सकेंगे स्कूल, इसे लेकर बेशक संशय है लेकिन जब तक पूरी सुरक्षा के साथ स्कूल नहीं खुलते, तब तक क्यों न घर को ही बना लिया जाए स्कूल। होमस्कूलिंग के फार्मूले को अपनाकर घर पर रहने के अनुभव को और मजेदार बना लिया जाए।
बेंगलुरु की सुप्रिया नारंग इन दिनों अपने इकलौते बेटे को घर पर ही पढ़ा रही हैं। हालांकि बेटा सात वर्ष का है, पर उनका होमस्कूल में ही पढ़ाने का इरादा है। इन दिनों उनकी दिनचर्या बदली हुई है, क्योंकि अभी उन अभिभावकों के लगातार फोन आ रहे हैं, जो परंपरागत स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण ये अभिभावक नहीं चाहते कि बच्चे अभी स्कूल जाएं, इसलिए वे सुप्रिया नारंग से होमस्कूल के विकल्प को जानना चाह रहे हैं। चूंकि सुप्रिया सबको फोन पर विस्तार से होमस्कूल के तरीके नहीं बता सकतीं, इसलिए फेसबुक लाइव के जरिए जानकारियां दे रही हैं।
वे होमस्कूल से जुड़ी इस गलतफहमी का भी जवाब देती हैं कि होमस्कूल में बच्चा घर पर पढ़ाई करने के कारण मिलनसार या सामाजिक नहीं होता, उसे बच्चों के साथ खेलकूद का मौका नहीं मिलता आदि। सुप्रिया के मुताबिक, घर पर बच्चों को न केवल अच्छी शिक्षा दी जा सकती है, बल्कि उन्हें एक बेहतर नागरिक के रूप में भी तैयार किया जा सकता है। यदि आप यह सोच रहे हैं कि होमस्कूलिंग यानी घर पर रहकर कैसे हो सकती है पढ़ाई, तो आइए यहां थोड़े विस्तार से जानते हैं।
क्या है होमस्कूलिंग? : यह बच्चों को स्कूल से अलग घर पर पढ़ाने से संबंधित एक मुहिम है, जो अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में वर्षों से जारी है। भारत में भी अधिकतर मुंबई, बेंगलुरु, पुणे आदि शहरों में अभिभावक इस चलन को खूब चुन रहे हैं। होमस्कूलिंग मुहिम की शुरुआत सबसे पहले वर्ष 1970 में अमेरिका में हुई थी। इसमें कुछ लोकप्रिय लेखक और शोधकर्ता, जैसे- जॉन होल्ट, डोरोथी, रेमंड मूरे आदि शामिल थे। यह महत्वपूर्ण है कि होमस्कूलिंग अभिभावक अपनी इच्छा से चुनते हैं और यह तमाम शोध और दिशानिर्देश के आधार पर तय होता है। घर के सदस्यों की भी इसमें बराबर भागीदारी होती है। उनकी दिनचर्या बच्चों की शिक्षा के इर्द-गिर्द होती है। बेशक यह कड़े अनुशासन और समर्पण की मांग करता है, पर पारंपरिक स्कूल की कंटेंट आधारित पढ़ाई, परीक्षा, अंकों पर आधारित शिक्षा पद्धति से यह अलग होती है। इसमें बच्चों के व्यक्तित्व और उनकी रुचि को खास महत्व दिया जाता है।
नया करने का शानदार अवसर : अप्रैल-मई माह तो नए तौर-तरीकों में ढलने और यह समझने में चला गया कि ऑनलाइन पढ़ाई कैसे करनी है? वीडियो कैमरे की निगरानी में पेपर कैसे देना है? इन सबके बीच आप मानेंगे कि बहुत कुछ बदल गया। सबसे अच्छी बात यह है कि इस नए बदलाव में आपके अभिभाव और घर के बड़े-बुजुर्ग हमेशा आपके साथ रहे। तो देर किस बात की, आपके पास तो यह एक बेहतरीन मौका है। जब तक सब सामान्य न हो जाए, घर में होमस्कूलिंग का माहौल तैयार किया जाए। इस बारे में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक और स्कूल काउंसलर गीतिका कपूर कहती हैं, ‘स्कूल जब जाएंगे, तब देखा जाएगा। कब जाएंगे, यह भूल जाएं तो घर में स्कूल का माहौल बनाने का आइडिया मिलेगा। यह सोचें कि इस समय क्या मजेदार किया जाए, जिसे आपने पहले न सीखा हो।’
क्या हो पाठयक्रम और दिनचर्या? : जब तक स्कूल नहीं जाते, तब तक क्यों न किताबों, कागज, पेंसिल और होमवर्क से थोड़ी अलग दिनचर्या बनाई जाए। इसके बाद जब वक्त मिले, ऑनलाइन कुछ सीखा जाए, क्योंकि ऑनलाइन दुनिया से अलग काफी कुछ है, जो आपने नहीं जाना है। गीतिका कूपर कहती हैं, ‘नए दौर के नए अनुभवों ने हमें जितना सिखाया, हम किताबों से शायद नहीं सीख पाते। इस समय वह करें, जो पहले नहीं करते थे, जैसे- सप्ताह में एक दिन बागवानी, रसोई के कामों में हाथ बंटाना। यह देखना कि मम्मी-पापा घर कैसे चलाते हैं। ये काम लाइफ स्किल के रूप में कुछ नया सीखने का मौका देंगे।’ होमस्कूलिंग में इसी पैटर्न पर बच्चे बड़े-बड़े सबक सीख जाते हैं, जिसमें मदद करती है घर के बड़ों और बच्चों के बीच की बॉन्डिंग, जो इन दिनों सहजता से बन गई है।
घर पर पढ़ाई में लें तकनीक की मदद खान एकेडमी : यहां 12वीं तक के लिए ऑनलाइन लेसंस और इंटरैक्टिव क्लासेज मौजूद हैं और संबंधित वीडियो ट्यूटोरियल्स भी उपलब्ध हैं।
https://www.khanacademy.org/
टेड-ईडी एट होम : यह एलिमेंट्री, मिडिल स्कूल और हाई स्कूल के बच्चों के लिए है। इसमें आर्ट, लैंग्वेज, मैथ्स, साइंस, टेक्नोलॉजी आदि को कवर किया गया है।
https://ed.ted.com/
थिंग्स टू डू इनडोर्स : इसमें ड्रॉइंग क्लासेज की सुविधा मौजूद है।
www.roalddahl.com
स्कॉलेस्टिक लर्न एट होम : किंडरगार्डन से लेकर 9वीं कक्षा तक के लिए है।
https://classroommagazines.scholastic.com
एक्स्ट्रामैथ : फन एक्टिविटीज के जरिए मैथ के सवालों को सॉल्व करना सीख सकते हैं। पैरेंट्स बच्चों की प्रोग्रेस को भी ट्रैक कर सकते हैं।
https://xtramath.org/#/home/index
कथाशाला शिक्षण संस्थान की संस्थापक और निदेशक सिमी श्रीवास्तव ने बताया कि कहानियों से जोड़कर बोझिल विषयों को भी बना सकते हैं रोचक कहानियां केवल नैतिक शिक्षाओं को बताने का माध्यम नहीं हैं। जब वैकल्पिक शिक्षा की बात होती है तो इसे जरूरी साधन माना जाता रहा है। देशभर के कई स्कूलों में जब इसे बताने की कोशिश की गई, तो सबने इसका स्वागत किया। दरअसल, इसकी मदद से बच्चों के दिमाग पर दबाव डाले बिना वह कर सकते हैं, जो पारंपरिक स्कूल नहीं सिखा पाते हैं। जिन विषयों की अवधारणाएं बोरिंग लगती हैं, उन्हें कहानियों में ढालकर सुनाएं, झट से वे रोचक लगने लग जाती हैं। बिना पेपर या किसी विशेष तैयारी के बिना आप बच्चों के कौशल, उनकी रुचियों को जान जाएंगे। बस कहानी के बाद कोई एक्टिविटी कराएं, ताकि वे उसे कभी न भूल सकें। पहले पाठ पढ़ाकर उसके आधार पर कहानी बताई जाए तो पाठ समझना और आसान हो जाएगा। छुट्टियों का यह समय सबसे उपयुक्त है, जिसमें बच्चे मनोरंजक तरीके से वह सब सीख-जान सकते हैं, जिनके बारे में पहले कभी सोचा नहीं था।
वरिष्ठ स्कूल काउंसलर गीतिका कपूर ने बताया कि चिंताओं से परे ठहरने का वक्त सिलेबस कैसे पूरा होगा, कहीं पूरा साल खराब तो नहीं हो जाएगा या मेरा बच्चा कुछ भूल तो नहीं जाएगा? ऐसे सवालों से परेशान हैं तो कुछ न सोचें, बस ठहरने की कोशिश करें। इससे दिमाग को जल्दबाजी और आशंकाओं से मुक्ति मिलेगी। आप थोड़ा पीछे जाकर सोच पाएंगे कि कहां बच्चों की पढ़ाई के निर्णयों में गलत थे या कहां ठीक करने की जरूरत है। जैसे छुट्टियों के बाद बच्चें कहीं अधिक बेहतरीन परफॉर्मर बनते हैं, तरोताजा होते हैं। इस बार भी यही होगा। याद रखें, दिमाग कभी छुट्टी पर नहीं जाता। हां, इसे आराम मिले तो वह कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से कार्यों को अंजाम देता है।