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आधार के जरिए 6 साल से लापता लड़की पिंकी की हुई घर वापसी, परिवारवालों में खुशी का माहौल

पश्चिम बंगाल के जिस एनजीओ में पिंकी रह रही थी वहां उसके आधार के लिए नामांकन करने की कोशिश की जा रही थी कि तभी पाया गया कि उसका आधार पहले से मौजूद है। इस सूचना को गुजरात पुलिस के साथ साझा किया गया

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 11 Nov 2020 08:05 PM (IST)Updated: Wed, 11 Nov 2020 08:05 PM (IST)
सूरत से 2014 में लापता हो गई थी पिंकी

सूरत, एजेंसियां। आधार कार्ड लोगों की पहचान का एक अहम हिस्सा है। यही आधार तब और अहम हो जाता है जब छह साल से लापता लड़की को आधार के माध्यम से परिवारवालों के हवाले किया जाए। ऐसा ही मामला गुजरात के सूरत में सामने आया है। गुजरात पुलिस ने पिंकी (काल्पनिक नाम) को कोलकाता से सूरत वापस लाने में बड़ी जिम्मेदारी निभाई है। गुजरात के सूरत शहर से पिंकी 2014 में लापता हो गई थी। वहीं, इस साल ही वह अपनी मां और एक बहन को खो दिया, लेकिन अभी तक इसके बारे में उसे पता नहीं है। पिंकी के वापस मिलने की जानकारी के बाद उसके चाचा और बहनों ने रेलवे स्टेशन में उसके स्वागत के लिए उसका लंबा इंतजार किया गया। सूरत के इस परिवार के लिए कोरोना महामारी के दौरान दीपावली का त्योहार खास तरह से रोशनी से भर गया, जहां छह से लापता पिंकी उनके घर में वापस आ गई है। 

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यहां सबसे खास बात यह रही कि पिंकी का पता आधार के जरिए लगाया गया है। पश्चिम बंगाल के जिस एनजीओ में पिंकी रह रही थी, वहां उसके आधार के लिए नामांकन करने की कोशिश की जा रही थी, कि तभी पाया गया कि उसका आधार पहले से मौजूद है। इस सूचना को गुजरात पुलिस के साथ साझा किया गया और पुलिस ने उसे वापस परिवार वालो को सौंप दिया। 

बता दें कि पिंकी आठ भाई बहन हैं, वह 2014 में घर से लापता हो गई थी। पिछले छह वर्षों में उसके जीवन में कई उतर चढ़ाव आए उसके जीने का तौर तरीका भी काफी बदल गया है। पिंकी ने इसी साल अपनी मां और भाई को खो दिया और मानसिक रूप से अस्थिर पिता ने घर भी छोड़ दिया। जब पिंकी के घर आने की खबर उसके भाई और बहनों को पता चली तब से ही वो बेहद उत्सुक दिखे और अब परिवार के लोग रेलवे स्टेशन पर बेसब्री से उसका इंतजार किया।

गौरतलब है कि गुजरात पुलिस ने पहले से ही पिंकी को घर वापस लाने की पहल की थी। सूरत पुलिस के दो जवानो जो कि पिंकी को कोलकाता से वापस लाए। पुलिस ने बताया कि पिंकी कोलकाता के एक एनजीओ की देखरेख में थी।


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