गृह मंत्रालय ने राज्यों को किया सावधान, कैदी को पैरोल पर छोड़ने में बरतें सावधानी
केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों को कहा कि किसी अपराधी को जेल में कैद करने का अहम उद्देश्य उससे समाज को सुरक्षित करना भी है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कोरोना के कारण जेल से पैरोल पर छोड़े गए कैदियों की आपराधिक घटनाओं में संलिप्तता को देखते हुए गृह मंत्रालय ने राज्यों को सावधान किया है। केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर साफ कर दिया है कि पैरोल या समय पूर्व रिहाई किसी कैदी का अधिकार नहीं है और इसका फैसला सोच-समझ कर लिया जाना चाहिए। ध्यान देने की बात है कि पंजाब में एक लड़की से मोबाइल छीनने की घटना के वायरल हुए वीडियो में आरोपित को हाल ही में जेल से छोड़ा गया था।
केंद्रीय गृह सचिव ने राज्यों को कहा कि किसी अपराधी को जेल में कैद करने का अहम उद्देश्य उससे समाज को सुरक्षित करना भी है। ऐसे में किसी भी ऐसे कैदी को पैरोल पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए जो समाज के लिए खतरनाक साबित हो। इसके लिए गृह सचिव ने गृह मंत्रालय की ओर से जारी मॉडल जेल संहिता 2016 का हवाला दिया। राज्यों को इसी के अनुरूप अपने जेल संहिता को तैयार करने की सलाह दी गई है। इसके तहत किसी भी कैदी को पैरोल पर या समय पूर्व रिहा करने के पहले मनोवैज्ञानिक, अपराध विशेषज्ञ व अन्य अधिकारियों की कमेटी में विचार किया जाना चाहिए और कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर उस पर फैसला लिया जाना चाहिए।
विशेषज्ञ समिति की सिफारिश को अनिवार्य बनाना है जरूरी
गृह सचिव ने राज्यों को आतंकवाद और जघन्य अपराध में शामिल कैदियों के लिए पैरोल या समय पूर्व रिहाई की व्यवस्था पूरी तरह खत्म होनी चाहिए। सामान्य अपराध में शामिल कैदियों के व्यवहार और सजा व उसके काटे जाने के समय को ध्यान में रखते हुए इस तरह फैसला लिया जा सकता है, लेकिन इसके लिए विशेषज्ञ समिति की सिफारिश को अनिवार्य बनाना जरूरी है। दरअसल जेल संहिता राज्य का विषय है, इसीलिए राज्य सरकार का फैसला इस पर अंतिम होता है। गृह मंत्रालय उसे केवल सलाह दे सकता है।