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World Food Safety Day 2021: अन्न शरीर का ही नहीं, अर्थव्यवस्था का भी कारगर ईंधन

World Food Safety Day 2021 लाकडाउन में जब अधिसंख्य व्यवसाय सुस्त हो गए तब भी पूरी रफ्तार से दौड़ती रही फूड एक्सप्रेस। भले ही रेस्त्रां नहीं खुले लेकिन होम डिलीवरी और क्लाउड किचन का कारोबार बखूबी तथा बिना बंदिश के चलता रहा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 07 Jun 2021 03:18 PM (IST)Updated: Mon, 07 Jun 2021 03:18 PM (IST)
World Food Safety Day 2021: अन्न शरीर का ही नहीं, अर्थव्यवस्था का भी कारगर ईंधन
अन्न शरीर का ही नहीं, अर्थव्यवस्था का भी कारगर ईंधन है।

वीरेंद्र कपूर। बहुत साल पुरानी बात है, जब हम कुछ दोस्तों ने साथ मिलकर अपने स्कूल के बाहर एक छोटा सा स्टाल लगाने का विचार बनाया। हम 12 साल के छोटे-छोटे बच्चे फ्रूट चाट का स्टाल ही लगा सकते थे। चूंकि हम इसको लेकर बेहद गंभीर थे तो हमने लंच के वक्त स्टाल लगाने के लिए प्रधानाचार्य जी से अनुमति भी ले ली। मुझे अच्छे से याद है कि हम चार लोगों ने मिलकर अपने जेबखर्च के पैसे जोड़कर कुल जमा 40 रुपए (उस जमाने में यह अच्छी-खासी रकम थी) इकट्ठे किए। सब्जी मंडी जाकर हमने केले, शकरकंद, नींबू, खीरा, सेब, एक पाइनएप्पल और कुछ अंगूर खरीदे। हम घर से चाकू, हाथ पोंछने के लिए साफ कपड़े, फल धोने के लिए पानी की बाल्टी, चाट मसाला, नमक, टूथपिक्स, दोना-पत्तल जैसी चीजें लेकर आए थे साथ ही हमने कार्डबोर्ड के डिब्बे को कचरे के डिब्बे के तरीके से इस्तेमाल किया था।

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स्टाल के बारे में हमने एक दिन पहले स्कूल के नोटिस बोर्ड पर छोटा सा नोटिस भी लगा दिया था। काम को सुचारू ढंग से चलाने के लिए आपस में सब काम बांट लिए थे। हमने एक कैश काउंटर भी बनाया था जहां कैशबाक्स के लिए टाफी का डिब्बा इस्तेमाल किया था। थोड़ी मेहनत और इंतजार के बाद हमारे ग्राहकों की प्रतिक्रिया कमाल की रही। आधे घंटे के भीतर ही पूरी बिक्री हो गई और कुल 60 रुपए जमा हुए यानी 20 रुपए का मुनाफा। हमारे हर हिस्सेदार ने 10 रुपए के निवेश से पांच रुपए कमाए, वो भी सिर्फ आधे घंटे में। हां, तैयारी में कुछ अतिरिक्त वक्त लगा था। बतौर एंटरप्रेन्योर यह मेरा पहला अनुभव था और दशकों बाद भी मुझे अच्छे से याद है।

सर्वश्रेष्ठ है यह व्यवसाय: विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी थीम ‘सेफ फूड नाउ फार ए हेल्दी टळ्मारो’ निर्धारित की है और नारा दिया है ‘फूड सेफ्टी इज एवरीवंस बिजनेस’। बात सटीक है और इसमें बड़ा कारगर बिजनेस मंत्र छिपा है। मेरे विचार से खाने से जुड़ा उद्यम सर्वश्रेष्ठ है, जिसमें आप 50 से 100 फीसद तक मुनाफा कमा सकते हैं। आप सळ्रक्षित तरीकों, साफ-सफाई की आदतों और बढ़िया स्वास्थ्यकर कच्चे माल का उपयोग करके इस व्यवसाय में शिखर पर पहळ्ंच सकते हैं। अपनी तमाम विदेश यात्राओं में मैंने मछली या चिप्स बेच रहे कई छोटे स्टाल या नजाकत से हाथों से तैयार की गई हाथगाड़ियों में हाटडाग बेचते हुए लोगों को देखा है। यह इंग्लैंड की तो लगभग हर गली में देखने को मिल जाएंगे, बस अंतर प्रेजेंटेशन और स्टाइल में होता था, जो काबिलेतारीफ भी है। ऐसा ही प्रचलन आज भारत में भी देखने को मिल रहा है। मुझे याद है कि दक्षिण दिल्ली में मैंने चाइनीज फूड की कई चलती-फिरती दुकानें देखी थीं। वहां आकर्षक तरीके से रंगे गए पुराने ट्रक और माल ढोने वाली गाड़ियों में इस तरह के कई फूड आउटलेट्स हैं। वहां खाना न सिर्फ स्वादिष्ट, बल्कि दाम के हिसाब से उचित भी था। आप खाना पैक करवाकर भी ले जा सकते हैं। यह व्यापार करने की शानदार तरकीब है। आपको सुबह सिर्फ कच्चे माल पर निवेश करना है और शाम ढलने तक लाभ की रकम आपके हाथों में होती है।

छोटी दुकान शानदार पकवान: सफलता का एक ही मंत्र है कि अगर आपका खाना बढ़िया है तो लोग कई मील दूर चलकर आपके स्टाल के बाहर लाइन लगाकर खाने जरूर आएंगे। पुणे में एक बेकरी है, जहां दुकान का मालिक दोपहर 12 बजे अपनी बिक्री शुरू करता है और शाम को सात बजे तक उसकी सारी चीजें बिक जाती हैं। इसी तरह हर दिन कई किलोग्राम हैदराबादी बिरयानी इसके चाहने वालों की भूख शांत करती है। कनाट प्लेस के अंदरूनी हिस्से में मौजूद केवेंटर मिल्क शाप को तो कोई भूल ही नहीं सकता। जिस तरह से हर घंटे दूध की सैंकड़ों बोतलें उस छोटे से दरवाजे से बाहर निकलती हैं तो ऐसा लगता है कि उस दुकान के भीतर दूध का कुआं है। इसी तरह पुणे में हाथ गाड़ी पर वड़ा-पाव बेचने वाला व्यक्ति एक दिन में सैंकड़ों प्लेट वड़ा-पाव बेच लेता था। यह बिक्री इतनी थी कि वहां मौजूद कचरे के डिब्बे में पड़ी खाली प्लेटों को ही गिनकर आयकर विभाग को उस पर शक हुआ और अत्यधिक आय के कारण उस पर रेड भी डाली गई थी! दिल्ली के यूपीएससी आफिस के बाहर एक बेहद प्रसिद्ध चाट वाले की दुकान है। कई साल पहले शुरू हुई प्रभु चाट वाला नामक यह छोटी सी दुकान आज एक लैंडमार्क है। उसकी बिक्री इतनी जबरदस्त होती है कि उस दुकान के मालिक की रोजाना पर्याप्त कमाई हो जाती है। ...और हो भी क्यों न, दिल्ली भर में उसकी चाट इतनी बेहतरीन है कि वहां बड़े-बड़े आला अधिकारियों और उद्यमियों की कारें आकर रुकती हैं ताकि वे भी ‘प्रभु’ का ‘प्रसाद’ पा सकें।

खास थी वो मुलाकात: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तो इसी बात को समझाने का इशारा सिर्फ एक वाक्य में कर चुके हैं कि ‘आप सिर्फ पकौडे़ बेचकर अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं!’ मैं कभी-कभी थोड़ा आहत और तंग हो जाता हूं जब कुछ लोग इस बात पर मजाक बनाने लगते हैं कि काम के नाम पर पकौडे़वाला बनने की बात हो रही है। उन्हें नौकरी तो चाहिए, मगर काम नहीं करना है। मैं इससे जुड़ा एक अपना अनुभव बताता हूं। एक बार मैं अपनी किताब के सिलसिले में ब्लूम्सबरी पब्लिशर्स के आफिस में था, जहां अचानक मेरी मुलाकात शेफ विकास खन्ना से हुई। बेहद सहज स्वभाव के विकास भी अपनी आगामी किताब का कवर फाइनल करने के सिलसिले में वहां मौजूद थे। मेरे प्रकाशक ने हमारे लिए लंच की व्यवस्था की जहां मुझे शेफ विकास से बात करने का मौका मिला। उनकी शख्सियत पंजाबी गर्मजोशी से भरपूर थी और हमारे बीच किसी प्रकार की कोई औपचारिकता नहीं थी। जहां उन्होंने बताया कि किस तरह वह अपने घर अमृतसर में रेहड़ी पर छोले-भटूरे बेचते थे। वहां उनके पास गिनती के बर्तन होते थे और उन्हें फटाफट धोने में वे पिता की मदद करते थे ताकि देर होने पर कोई ग्राहक चला न जाए।

सोच को दें सही दिशा: सीधी सी बात है, अगर आपके पास सोच है और आपने सही दिशा में शिक्षा हासिल की तो आप भी ‘पकौड़ा किंग’ बन सकते हैं। मैकडानल्ड सिर्फ एक आउटलेट के साथ शुरू हुआ था और बाद में बिजनेसमैन रे क्राक ने इसे इस मुकाम पर पहुंचा दिया। इतना ही नहीं, आपको जानकर हैरत होगी कि 2019 में आई रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में मैकडानल्ड के 38,695 रेस्त्रां थे, जो आज बढ़कर 40,000 से अधिक हो चुके हैं जिनका कुल टर्नओवर 21 अरब अमेरिकी डालर है। हर साल नौ अरब अमेरिकी डालर का मुनाफा! तो अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाइए। यह वक्त एक विचार का मजाक बनाने का नहीं है। कम से कम आपके अपने प्रधानमंत्री का तो बिल्कुल नहीं, जो आपको पैसे कमाने की राह दिखा चुके हैं। नौकरी के लिए किसी के आगे हाथ मत फैलाइए। एक छोटा सा मौका आपको आसमान की ऊंचाई तक पहुंचा सकता है। आखिर ये दिल मांगे मोर एंड मोर!

स्वाद के दरिया को मिला किनारा: 1991 में शेफ विकास खन्ना ने मणिपाल अकेडमी आफ हायर एजूकेशन के वेलकमग्रुप ग्रेजुएट स्कूल से होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और आज वह ताज होटल, ओबेराय होटल, वेलकम ग्रुप और लीला ग्रुप आफ होटल्स जैसे नामी होटल शाखाओं में काम कर चुके हैं। दुबई में शेफ विकास का अपना रेस्त्रां है जिसका नाम किनारा है। वह किनारा को ‘स्वाद की लजीज राह में हमारी इंद्रियों का सफर’ मानते हैं। उनका रेस्त्रां दुबई के जेए लेक व्यू होटल में है। रिपोट्र्स बताती हैं कि किनारा में बनने वाले भोजन में रचनात्मकता लाने के लिए शेफ विकास उन भारतीय व्यंजनों को पेश करते हैं, जो न सिर्फ आपके मुंह में पानी लाते हैं, बल्कि भोजन और मसालों के प्रति शेफ के प्यार को भी दर्शाते हैं।

25-30 फीसद की वार्षिक वृद्धि होगी 2022 तक भारतीय आनलाइन फूड बिजनेस में। गूगल व बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार भारत में तेजी से बढ़ते डिजिटलीकरण और आनलाइन खरीददारों की बढ़ती संख्या है इसकी अहम वजह।

6 लाख केक और दो लाख पानी पूरी के आर्डर पूरे किए गए स्विगी की तरफ से। फिलहाल स्विगी कंपनी प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के साथ मिलकर 125 शहरों में 36,000 स्ट्रीट फूड वेंडर्स के साथ कर रही है पार्टनरशिप।

4.35 अरब अमेरिकी डालर का कुल व्यवसाय किया था भारत में आनलाइन फूड डिलीवरी मार्केट ने वर्ष 2020 में।

5.5 गुना वृद्धि दर्ज की फूड डिलीवरी एप जोमैटो ने पेंडेमिक के दौरान। लाकडाउन लगने के बाद अक्टूबर, 2020 तक जोमैटो ने नौ करोड़ से भी अधिक आर्डर पूरे किए थे।

स्विगी की तरफ से जारी रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा आर्डर की गई थी चिकन बिरयानी, जिसके बाद अगला नंबर था वेज बिरयानी का।

जुबान पर चढ़े नए शब्द: कोविडकाल में हमारे जीवन में कई नए तौर-तरीके जुड़ गए हैं। ऐसा ही हुआ है फूड बिजनेस में भी। जिसने पूरे खाद्य एवं पेय उद्योग को बदलकर रख दिया है। इसमें अब शामिल हो गए हैं कई टें्रड्स और शब्दावलियां। आनलाइन फूड डिलीवरी से लेकर घोस्ट किचन तक हैं अब चर्चा में आम। 

टेक अवेज व डिलीवरी सर्विस: वर्ष 1994 में जब पिज्जा हट ने पहली आनलाइन आर्डर सुविधा उपलब्ध कराई थी तो वह अरबों डालर की बिजनेस स्कीम साबित हुई थी। आज तमाम छोटे-बड़े रेस्त्रां इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं, जिसमें मददगार साबित हुईं फूड डिलीवरी सर्विस देने वाली एप कंपनियां व उनकी तरफ से दिए गए नो कांटैक्ट डिलीवरी सहित तमाम सारे आफर्स। लाकडाउन के दौरान गली-गली फूड डिलीवरी बाय दिखना आम हो गया तो वहीं कई रेस्त्रां में टेकअवे (खाना पैक करवाकर स्वयं ले जाना) की सुविधा शुरू हो गई।

क्लाउड किचन: कोरोना काल में जब लाकडाउन और कोरोना कफ्र्यू जैसे आदेश जारी हुए तुरंत ही लोकप्रिय रेस्त्रां भी अपना अंदाज बदलकर सामने आ गए। रेस्त्रां में फुटफाल बंद हुई तो शुरू हो गईं आनलाइन फूड डिलीवरी की सुविधाएं। रेस्त्रां बन गए क्लाउड किचन और उनका मेन्यू पहुंच गया उनकी वेबसाइट पर, जिसके साथ शुरू हो गई घर बैठे पसंदीदा खाना पहुंचाने की कवायद।

घोस्ट किचन: घर से दूर फंस गए स्टूडेंट्स, कर्मचारियों की सबसे बड़ी जरूरत थी घर का खाना। तब शुरू हुआ घोस्ट किचन का सफरनामा। कई लोगों ने अपने घर की रसोई में ही आर्डर तैयार किए और फूड डिलीवरी एप की मदद से लोगों तक घर का खाना पहुंचाया। खाना घर का बना था तो लोगों में विश्वास भी जल्दी पनपा और बिना किसी अतिरिक्त मार्केटिंग के कई लोग आज घोस्ट किचन के जरिए मुनाफा भी कमा रहे हैं।

कोविड फूड रिलीफ: इस दौरान कई ऐसे लोग भी आगे आए, जो कोरोना से संक्रमित हुए मरीजों के लिए टिफिन सर्विस चला रहे थे। एक साथ सभी स्वजन संक्रमित हुए तो उनका सहारा बने कोविड फूड रिलीफ की सुविधा उपलब्ध करवाने वाले लोग। जहां टिफिन की संख्या व जरूरी जानकारी बताने के बाद आर्डर दरवाजे तक पहुंचा।

ड्रोन डिलीवरी: लोगों के मन में शंकाएं उठीं कि कहीं डिलीवरी करने आए व्यक्ति के जरिए कोरोना वायरस उन तक न पहुंच जाए तो उपाय बनकर प्रकट हुआ ड्रोन। आर्डर किए गए खाने का बाक्स पहुंचाने की यह कांटैक्ट लेस डिलीवरी भी बीते साल से लेकर अब तक खूब चर्चा में है।


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