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भारत को 59 साल लगे पहला लोकपाल बनाने में, दुनिया में 210 साल पुराना है यह कानून

भारत में लोकपाल बिल 8 नाकाम प्रयासों के बाद दिसंबर 2013 में पास हुआ था। इससे पहले ये कानून ओम्बड्समैन के रूप में दुनिया के 135 देशों में लागू है। जानें- इसका रोचक इतिहास।

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 04:48 PM (IST)Updated: Thu, 21 Mar 2019 12:47 AM (IST)
भारत को 59 साल लगे पहला लोकपाल बनाने में, दुनिया में 210 साल पुराना है यह कानून
भारत को 59 साल लगे पहला लोकपाल बनाने में, दुनिया में 210 साल पुराना है यह कानून

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। लंबे प्रयासों और तमाम आंदोलनों के बाद आखिरकार भारत को पहला लोकपाल मिल ही गया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीसी घोष मंगलवार को देश के पहले लोकपाल बन गए हैं। राष्ट्रपति कार्यालय से उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी गई है। भारत में लोकपाल लाने में 59 साल लग गए, जबकि दुनिया में लोकपाल कानून का इतिहास लगभग 210 साल पुराना है। आइये जानते हैं, भारत में लोकपाल की शुरूआत कैसे हुई।

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देश के पहले लोकपाल और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीसी घोष के नाम की सिफारिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की चयन समिति ने की थी। लोकसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर कांग्रेसी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी समिति के सदस्य हैं, लेकिन वह लोकपाल की पिछली कई बैठकों से शामिल नहीं हो रहे थे। जस्टिस पीसी घोष के चयन में भी वह शामिल नहीं रहे हैं।

जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (पीसी घोष), जस्टिस शंभू चंद्र घोष के बेटे हैं। उन्होंने कोलकाता से कानून की पढ़ाई पूरी की और साल 1997 में वह कलकत्ता हाईकोर्ट के जज बन गए। दिसंबर 2012 में उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की जिम्मेदारी सौंपी गई। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में उन्होंने एआइएडीएमके (AIADMK) की पूर्व सचिव शशिकला को भ्रष्टाचार के एक मामले में सजा सुनाई थी। इसके बाद 8 मार्च 2013 को वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने और 27 मई 2017 को वह सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो गए थे। इसके बाद वह राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से भी जुड़े रहे थे।

भारत में लोकपाल का सफर
भारत में लोकपाल का सफर अब से करीब 59 साल पहले 1960 में शुरू हुआ, जब केएम मुंशी ने संसद में लोकपाल मुद्दे को उठाया था। इसके बाद प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग की 1966 की सिफारिश पर करीब 51 साल पहले 9 मई 1968 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सरकार में लोकपाल विधेयक पहली बार संसद में पेश हुआ था। उस वक्त लोकपाल विधेयक में प्रधानमंत्री को भी रखा गया था। 1971 में पीएम पद को लोकपाल के दायरे से हटा लिया गया। 1977 और 1985 में प्रधानमंत्री पद को फिर से लोकपाल के दायरे में लाया गया। 1989 में वीपी सिंह सरकार ने इसमें वर्तमान और निवर्तमान प्रधानमंत्री को शामिल कर लिया। 1996 में एचडी देव गौड़ा और फिर 1998 व 2001 में भाजपा सरकार ने भी इस विधेयक में प्रधानमंत्री पद को शामिल किया था। हांलाकि, उस वक्त तक नौकरशाह इस विधेयक में शामिल नहीं थे।

बिल पास होने के बाद भी लगे सवा पांच साल
वर्ष 2002 में वेंकट चेलैया आयोग ने संविधान समीक्षा आयोग में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल की सख्त आवश्यकता बताई थी। इसके बाद 2005 में वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग गठित किया गया। इस आयोग ने भी लोकपाल की जरूरत सरकार के सामने रखी। 2011 में भी प्रणव मुखर्जी के नेतृत्व वाले मंत्रियों के समूह ने लोकपाल की जरूरत पर बल दिया। इस तरह 8 नाकाम प्रयासों के बाद भारत का लोकपाल बिल 17 दिसंबर 2013 को राज्यसभा और अगले दिन (18 दिसंबर 2013) को लोकसभा में पास हो गया। दोनों सदनों में पास होने के बाद राष्ट्रपति ने भी तत्काल बिल को मंजूरी प्रदान कर दी थी। इसके बाद भी भारत को पहला लोकपाल मिलने में सवा पांच साल का वक्त लग गया।

1809 में बना था पहला लोकपाल
दुनिया में सबसे पहला लोकपाल वर्ष 1809 में स्वीडन देश में तैनात किया गया था। स्वीडन समेत दुनिया के अन्य देशों में लोकपाल को ओम्बड्समैन कहा जाता है। इसे नागरिक अधिकारों का संरक्षक माना जाता है। यह एक ऐसा स्वतंत्र और सर्वोच्च पद है जो लोक सेवकों के विरुद्ध शिकायतों की सुनवाई करता है। साथ ही संबंधित जांच-पड़ताल कर उसके खिलाफ उचित कार्रवी के लिए सरकार को सिफारिश भी करता है। ओम्बड्समैन को भी भारत में लोकपाल और लोकायुक्त कहा जाता है। यह नामकरण 1963 में भारत के मशहूर कानूनविद डॉ एलएम सिंघवी ने किया था। लोकपाल केंद्र में और लोकायुक्त राज्य में होता है। लोकपाल शब्द संस्कृत के शब्द लोक (लोगों) और पाल (संरक्षक) से बना है।

135 से अधिक देशों में पहले से है लोकपाल
स्वीडन के बाद धीरे-धीरे ऑस्ट्रिया, डेनमार्क तथा अन्य स्केण्डीनेवियन देशों और फिर अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका व यूरोप के की देशों में भी ऑम्बुड्समैन की नियुक्तियां की गईं। फिनलैंड में 1919 में, डेनमार्क ने 1954 में, नार्वे ने 1961 में और ब्रिटेन ने 1967 में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए ऑम्बुड्समैन की स्थापना की थी। भारत से पहले, 135 से अधिक देशों में ‘ऑम्बुड्समैन‘ की नियुक्ति की जा चुकी है। विभिन्न देशों में ऑम्बुड्समैन को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। ब्रिटेन, डेनमार्क एवं न्यूजीलैण्ड में यह संस्था ‘संसदीय आयुक्त‘ (Parliamentary Commissioner) के नाम से पहचानी जाती है। रूस में इसे वक्ता अथवा प्रोसिक्यूटर के नाम से जाना जाता है।

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