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जम्मू कश्मीर सहित आठ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक घोषित हों

याचिका में कहा गया है कि इसी प्रकार ईसाई मिजोरम, मेघालय और नगालैंड में बहुसंख्यक हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Mon, 30 Oct 2017 10:49 PM (IST)Updated: Mon, 30 Oct 2017 10:49 PM (IST)
जम्मू कश्मीर सहित आठ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक घोषित हों
जम्मू कश्मीर सहित आठ राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक घोषित हों

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट मे एक नयी याचिका दाखिल हुई है जिसमें जम्मू कश्मीर सहित आठ राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बताते हुए नये सिरे से अल्पसंख्यकों की पहचान कर नयी अधिसूचना जारी करने की मांग की गयी है। याचिका में कहा गया है कि 1993 की अल्पसंख्यक वर्ग घोषित करने की अधिसूचना असंवैधानिक घोषित कर रद की जाए। यह याचिका सोमवार को भाजपा नेता व वकील अश्वनी उपाध्याय ने दाखिल की है।

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दाखिल याचिका में कहा गया राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 में बना और 17 मई 1993 में जम्मू कश्मीर को छोड़ कर पूरे भारत मे लागू हुआ। । कानून के मुताबिक केन्द्र सरकार जिस समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करेगी उसे ही अल्पसंख्यक माना जाएगा। केन्द्र ने कानून की धारा 2(सी) की शकि्तयों का इस्तेमाल करते हुए 23 अक्टूबर 1993 को पांच समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदाय घोषित किया। 2014 में इसमें जैन भी शामिल कर दिये गये।

हिन्दुओँ को अल्पसंख्यक सूची में शामिल नहीं किया गया जबकि हिन्दू आठ राज्यों में अल्पसंख्यक हैं। याचिका में कहा गया है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक हिन्दू आठ राज्यों लक्ष्यद्वीप (2.5 फीसद), मिजोरम (2.7 फीसद), नगालैंड (8.75 फीसद), मेघालय (11.53 फीसद), जम्मू कश्मीर (28.44 फीसद), अरुणाचल प्रदेश (29 फीसद), मणिपुर (31.39 फीसद), और पंजाब में ( 38.40 फीसद)अल्पसंख्य हैं उन्हे अल्पसंख्यक नहीं घोषित किया गया है और इन राज्यों में अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभ बहुसंख्यक ले रहें हैं।

इन राज्यों मे न तो केन्द्र ने और न ही राज्यो सरकारों ने कानून के मुताबिक हिन्दुओँ को अल्पसंख्यक समुदाय अधिसूचित किया है। इस वजह से इन राज्यों में हिन्दू संविधान के अनुच्छेद 25 और 30 के तहत अल्पसंख्यक वर्ग को मिलने वाले लाभ से वंचित हैं। याचिका में कहा गया है कि इसीलिये 1993 की समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित करने की अधिसूचना न सिर्फ भेदभाव वाली बलि्क अतार्किक और संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करने वाली है।

याचिका में कहा गया है कि मुसलमान लक्ष्यद्वीप (96.20 फीसद), जम्मू कश्मीर में (68.30 फीसद) में बहुसंख्यक हैं। जबकि असम में (34.20 फीसद) के साथ अच्छी खासी संख्या में हैं। इसके अलावा मुसलमान पश्चिम बंगाल में (27.5 फीसद), केरल में (26.60 फीसद), उत्तर प्रदेश मे (19.30 फीसद) और बिहार में (18 फीसद) होने के बावजूद अल्पसंख्यक वर्ग को मिलने वाले लाभ ले रहें हैं जबकि जो समुदाय वास्तव में अल्पसंख्यक हैं, वे उनकी पहचान और राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचिन न होने के कारण संविधान के तहत मिलने वाले मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।

याचिका में कहा गया है कि इसी प्रकार ईसाई मिजोरम, मेघालय और नगालैंड में बहुसंख्यक हैं। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पशि्चम बंगाल मे भी उनकी संख्या अच्छी खासी है तब भी वे अल्पसंख्यक माने जाते हैं। इसी तरह सिख पंजाब में बहुसंख्यक हैं और दिल्ली, चंडीगड़ और हरियाणा में भी उनकी अच्छी खासी संख्या है लेकिन वे अल्पसंख्यक माने जाते हैं।

कहा गया है कि केन्द्र सरकार तकनीकी शिक्षा लेने वाले अल्पसंख्यक छात्रों को 20000 रुपये छात्रवृत्ति देती है। जम्मू कश्मीर में मुसलमान 68.30 फीसद हैं और सरकार 753 में से 717 छात्रवृत्तियां मुस्लिम छात्रों को देती है। वहां किसी भी हिन्दू समुदाय को अल्पसंख्यक नहीं अधिसूचित किया गया है। याचिका में मांग की गई है कि 1993 की अल्पसंख्यक समुदाय घोषित करने की अधिसूचना असंवैधानिक घोषित की जाए और सरकार को निर्देश दिया जाये कि वह नये सिरे से अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान कर नयी अधिसूचना जारी करे ताकि वास्तव में जो वर्ग अल्पसंख्यक है वह लाभान्वित हो सके।

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