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देश के आठ राज्यों में अल्पसंख्यक हैं हिंदू, 26 साल पुरानी अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती

देश के आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। कई सारे राज्य हैं जहां पांच समुदायों की बहुतायत है लेकिन उन्हें वहां अल्ससंख्यक माना जाता है। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर विभिन्न हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं की शीर्ष कोर्ट में स्थानांतरण की अपील की गई।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 09:06 PM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 06:32 AM (IST)
देश के आठ राज्यों में अल्पसंख्यक हैं हिंदू, 26 साल पुरानी अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती
जिन राज्यों में पांच समुदायों की बहुतायत है, लेकिन उन्हें वहां अल्ससंख्यक माना जाता है।

नई दिल्ली, प्रेट्र। देश के आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। कई सारे राज्य हैं जहां पांच समुदायों की बहुतायत है, लेकिन उन्हें वहां अल्ससंख्यक माना जाता है। इन्हीं सब मुद्दों को लेकर विभिन्न हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं की शीर्ष कोर्ट में स्थानांतरण की अपील की गई।

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केंद्र सरकार की 26 साल पुरानी अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती

इस अपील में केंद्र की 26 साल पुरानी उस अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है जिसके तहत पांच समुदायों- मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अल्पसंख्यकों की परिभाषा पर फिर से विचार करे

भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में दिल्ली, मेघालय और गौहाटी हाई कोर्ट में लंबित उन मामलों के स्थानांतरण का अनुरोध किया गया है जिनमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम,1992 की धारा 2(सी) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है जिसके तहत 23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी की गई थी। याचिका में कहा गया कि हिंदू समुदाय उन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मिलने वाले फायदों से वंचित है और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को इस संदर्भ में अल्पसंख्यकों की परिभाषा पर फिर से विचार करना चाहिए।

संविधान के प्राविधान में कौन है अल्पसंख्यक

अनुच्छेद 29 व 30 की शुरुआती भूमिका और अनुच्छेद 30 की धारा (1) व (2) में अल्पसंख्यक का जिक्र मिलता है। अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है। इसके मुताबिक देश के किसी भी क्षेत्र में रहने वाले किसी भी समुदाय को अपनी भाषा, शैली व परंपराओं के संरक्षण का अधिकार होगा। अनुच्छेद 30 (1) के तहत अल्पसंख्यक अपनी मर्जी के अनुरूप शिक्षण संस्थान का निर्माण और उसका संचालन कर सकते हैं। अनुच्छेद 30 (2) यह सुनिश्चित करता है कि कोई सरकार शिक्षण संस्थानों को मदद देने में इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगी कि वह संस्थान किसी भाषागत या धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित है। इस अनुच्छेद के तहत देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए अल्पसंख्यकों को सुरक्षा दी गई है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून में अल्पसंख्यक शब्द के मायने तय नहीं

वर्ष 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून बना। इसमें कुछ धार्मिक समुदायों के हाशिये पर होने के कारणों की पड़ताल पर बल दिया गया। इसके आधार पर मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग गठित हुआ। हालांकि, इस कानून में भी अल्पसंख्यक शब्द के मायने तय नहीं किए गए और संबंधित समुदायों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित करने का अधिकार केंद्र सरकार को दे दिया गया।

छह समुदाय अल्पसंख्यक

अधिकार मिलने के बाद केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 23 अक्टूबर, 1993 को पांच धाíमक समुदायों मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध व पारसी को राष्ट्रीय धाíमक अल्पसंख्यकों के रूप में अधिसूचित कर दिया। इसके बाद वर्ष 2014 में एक संशोधन किया गया और अल्पसंख्यकों की श्रेणी में जैन समुदाय को भी शामिल कर लिया गया।

अल्पसंख्यक का दर्जा पूरे देश में होता है लागू

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने अल्पसंख्यक वर्ग की संवैधानिक व्याख्या व सरकार की तरफ से वर्ष 1993 में जारी की गई अधिसूचना में विरोधाभास नहीं पाया। 30 जुलाई, 1997 को गृह मंत्रालय को भेजे गए नोट में उसने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय स्तर के किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को पूरे देश में अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त होगा। इस क्रम में स्थानीय आबादी पर विचार नहीं किया जाएगा। तब भी जबकि वहां घोषित अल्पसंख्यक समुदाय की संख्या ज्यादा हो।

हिंदू अल्पसंख्यक वाले राज्य, केंद्र शासित प्रदेश

राज्य                    हिंदू

मिजोरम               2.75

नगालैंड               8.75

मेघालय              11.53

अरुणाचल प्रदेश  29

मणिपुर              31.39

पंजाब               38.40

जम्मू-कश्मीर     28.44

लक्षद्वीप              2.5

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार (आंकडे़ फीसद में)।


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