Move to Jagran APP

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करने की मांग पर आयोग जल्द करे फैसला

सिर्फ उन्हीं अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अधिकार और संरक्षण मिले जो वास्तव में धार्मिक और भाषाई में बहुत कम हों।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 10 Feb 2019 09:30 PM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 09:12 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करने की मांग पर आयोग जल्द करे फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करने की मांग पर आयोग जल्द करे फैसला

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से कहा है कि वह अल्पसंख्यक की परिभाषा और पहचान तय करने की मांग वाले ज्ञापन पर तीन महीने में फैसला ले। कोर्ट ने सोमवार को यह आदेश भाजपा नेता व वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिये।

loksabha election banner

उपाध्याय ने याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से अल्पसंख्यक की परिभाषा और पहचान तय करने की मांग की थी। उपाध्याय ने अल्पसंख्यक आयोग को 17 नवंबर 2017 को जो ज्ञापन दिया था उसमें पांच समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित करने की 1993 की अधिसूचना रद करने और अल्पसंख्यक की परिभाषा और पहचान तय करने के साथ एक मांग यह भी थी कि जिन राज्यों में हिन्दुओं की संख्या बहुत कम है वहां हिन्दुओं को अल्पसंख्य घोषित किया जाए। आयोग ने आज तक उस ज्ञापन पर जवाब नहीं दिया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को जल्द से जल्द तीन महीने के भीतर ज्ञापन पर फैसला लेने को कहा है।

सोमवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और संजीव खन्ना की पीठ ने उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के बाद उपरोक्त आदेश दिये। इससे पहले उपाध्याय की ओर से पेश वकील ने कोर्ट से अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करने की मांग करते हुए कहा कि उन्होंने कोर्ट के 10 नवंबर 2017 के आदेश के मुताबिक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को ज्ञापन दिया था लेकिन आयोग ने आज तक उसका जवाब नहीं दिया। इसीलिए यह नई याचिका दाखिल की है।

मालूम हो कि उपाध्याय ने 2017 में आठ राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बताते हुए राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग याचिका दाखिल की थी उस वक्त कोर्ट ने उनसे इस बारे में आयोग को ज्ञापन देने को कहा था। सोमवार को बहस सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिका पर अभी आदेश देने के बजाए फिलहाल आयोग को उस लंबित ज्ञापन पर निर्णय लेना चाहिए। कोर्ट ने उपाध्याय से कहा है कि आयोग का फैसला आने के बाद वह कानून में प्राप्त उपाय अपना सकते हैं।

उपाध्याय की मांग है कि नेशनल कमीशन फार माइनेरिटी एक्ट की धारा 2(सी) रद की जाए क्योंकि यह मनमानी और अतार्किक है। इसमें केन्द्र को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के असीमित अधिका हैं। साथ ही मांग है कि केन्द्र की 23 अक्टूबर 1993 की वह अधिसूचना रद की जाए जिसमें पांच समुदायों मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है।

तीसरी मांग है कि अल्पसंख्यक की परिभाषा और अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तय हों, ताकि यह सुनिश्चित हो कि सिर्फ उन्हीं अल्पसंख्यकों को संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अधिकार और संरक्षण मिलेगा जो वास्तव में धार्मिक और भाषाई, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से प्रभावशाली न हों और जो संख्या में बहुत कम हों।

कहा गया है कि 2011 के जनसंख्या आकड़ों के मुताबिक आठ राज्यों लक्ष्यद्वीप, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, जम्मू कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिन्दू अल्संख्यक हैं लेकिन उनके अल्पसंख्यक के अधिकार बहुसंख्यकों को मिल रहे हैं। इसी तरह लक्ष्यद्वीप, जम्मू कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक हैं जबकि असम, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश तथा बिहार में में भी उनकी ठीक संख्या है लेकिन वे वहां अल्पसंख्यक दर्जे का लाभ ले रहे हैं मिजोरम, मेघालय, नगालैंड में ईसाई बहुसंख्यक हैं जबकि अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल मे भी ईसाइयों की संख्या अच्छी है इसके बावजूद वे अल्पसंख्यक माने जाते हैं। पंजाब मे सिख बहुसंख्यक हैं और दिल्ली, चंडीगढ़ और हरियाणा में भी सिखों की अच्छी संख्या है लेकिन वे अल्पसंख्य माने जाते हैं।

याचिकाकर्ता ने इस मांग के साथ वैकल्पिक मांग भी रखी है जिसमें कहा है कि या तो कोर्ट स्वयं ही आदेश दे कि संविधान के अनुच्छेद 29-30 के तहत सिर्फ उन्हीं वर्गो को संरक्षण और अधिकार मिलेगा जो धार्मिक और भाषाई, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक रूप से प्रभावशाली नहीं हैं और जिनकी संख्या राज्य की कुल जनसंख्या की एक फीसद से ज्यादा नहीं है।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के टीएमए पाई मामले में दिये गए संविधानपीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि अल्पसंख्यक की पहचान राज्य स्तर पर की जाए न कि राष्ट्रीय स्तर पर। क्योंकि कई राज्यों में जो वर्ग बहुसंख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिल रहा है।

कहा गया है कि सरकार तकनीकी शिक्षा में 20,000 रुपये छात्रवृत्ति दी जाती है जम्मू कश्मीर में मुसलमान 68.30 फीसद हैं, लेकिन सरकार ने वहां 753 में से 717 छात्रवृत्ति मुस्लिम छात्रों को आवंटित की हैं एक भी हिन्दू को छात्रवृत्ति नहीं दी गई है।

यहां मुसलमान हैं बहुसंख्यक

याचिका में कहा गया है कि मुसलमान लक्ष्यद्वीप में (96.20 फीसद), जम्मू कश्मीर में (68.30 फीसद) होते हुए बहुसंख्यक हैं जबकि असम में (34.20 फीसद), पश्चिम बंगाल में (27.5 फीसद), केरल में (26.60 फीसद), उत्तर प्रदेश में (19.30 फीसद) तथा बिहार में (18 फीसद) होते हुए अल्पसंख्यकों के दर्जे का लाभ उठा रहे हैं जबकि पहचान न होने के कारण जो वास्तव में अल्पसंख्यक हैं उन्हें लाभ नहीं मिल रहा है। इसलिए सरकार की अधिसूचना मनमानी है।

यहां ईसाई हैं बहुसंख्यक

यह भी कहा गया है कि ईसाई मिजोरम, मेघालय, नगालैंड में बहुसंख्यक हैं जबकि अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल मे भी इनकी संख्या अच्छी है इसके बावजूद ये अल्पसंख्यक माने जाते हैं।

यहां सिख हैं बहुसंख्यक

इसी तरह पंजाब मे सिख बहुसंख्यक हैं जबकि दिल्ली, चंडीगढ़, और हरियाणा में भी अच्छी संख्या मे है लेकिन वे अल्पसंख्यक माने जाते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.