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खत्म नहीं हो सकता कोरोना लेकिन वैक्सीन-दवाएं बदल सकते हालात, देश में मौजूदा लहर लंबी खिंचने के आसार

हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में हार्वर्ड इम्यूनोलाजी ग्रेजुएट प्रोग्राम के निदेशक और मेडिसिन एंड हेल्थ साइंसेज एंड टेक्नोलाजी के प्रोफेसर डा. शिव पिल्लई ने कहा है कि कोरोना एंडेमिक (स्थानिक) हो जाएगा लेकिन हम इसे मिटा नहीं सकते हैं...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 06:29 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 11:44 PM (IST)
खत्म नहीं हो सकता कोरोना लेकिन वैक्सीन-दवाएं बदल सकते हालात, देश में मौजूदा लहर लंबी खिंचने के आसार
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में हार्वर्ड इम्यूनोलाजी ग्रेजुएट प्रोग्राम के निदेशक डा.शिव पिल्लई का कहना है कि रोना एंडेमिक हो जाएगा...

नई दिल्ली, एएनआइ। कोरोना एंडेमिक (स्थानिक) हो जाएगा और हम इसे मिटा नहीं सकते, लेकिन वैक्सीन और दवाओं के बल पर हम इसका बेहतर तरीके से मुकाबला कर सकते हैं। यह टिप्पणी हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में हार्वर्ड इम्यूनोलाजी ग्रेजुएट प्रोग्राम के निदेशक और मेडिसिन एंड हेल्थ साइंसेज एंड टेक्नोलाजी के प्रोफेसर डा.शिव पिल्लई ने की है।

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एक विशेष साक्षात्कार में डा. पिल्लई ने कहा कि मुझे लगता है कि आगे चलकर यह एंडेमिक (स्थानिक) स्थिति में पहुंच जाएगा। जहां हम कुछ हद तक इस वायरस के साथ रहना शुरू कर देंगे। उम्मीद है इस वायरस की तीव्रता तब तक कम हो जाएगी। इसलिए यह ज्यादातर लोगों के लिए इतनी बुरी बीमारी नहीं रह जाएगी। मुझे लगता है कि हम कुछ वर्षों में इसे काबू कर लेंगे। मुझे लगता है कि टीकाकरण बेहतर हो जाएगा और दवाएं बहुत कुछ हालात बदल देंगी।

डा. पिल्लई ने कहा कि पैक्सलोविड और सिप्ला जैसी दवाएं शायद इस महामारी की दिशा बदल देंगी। हम एक बेहतर मुकाम पर होंगे लेकिन हम इसे मिटा नहीं पाएंगे, यह हमारे इर्दगिर्द रहेगा।

जैसा कि भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (इंसाकाग) ने पहले ही कहा है कि ओमिक्रोन सामुदायिक हो गया है, डा.पिल्लई ने कहा कि ओमिक्रोन का दूसरा संस्करण बीए 2 जो कि थोड़ा अलग है, उसके कारण भारत में मौजूदा लहर लंबी खिंचने के आसार हैं। ओमिक्रोन दुनिया भर में समुदायों में फैल गया है। भारत में ओमिक्रोन का बीए.2 वर्जन अलग है। वास्तव में यह ओमिक्रोन के मूल वर्जन बीए.1 से थोड़ा अलग है।

उन्होंने कुछ चिंताओं को भी रेखांकित किया कि भारत में ओमिक्रोन लहर का लंबे समय तक प्रभाव हो सकता है। दूसरी लहर के दौरान कहर बरपाने वाले डेल्टा वायरस से यह वायरस बहुत अलग है। डा. पिल्लई ने आगे कहा कि पहला संस्करण डेल्टा, अल्फा, बीटा और गामा की तुलना में थोड़ा हल्का है और यह फेफड़ों को उतना बुरी तरह प्रभावित नहीं करता है। इसी के चलते ओमिक्रोन से मौत और बीमारी की गंभीरता कम रही है।  


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