गुजरात दंगा मामला: SIT ने SC में कहा- आगे बढ़ाने योग्य नहीं थी जकिया जाफरी की शिकायत की जांच
गुजरात दंगा मामला एसआइटी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा अपना पक्ष। याचिकाकर्ता के वकील सिब्बल ने जांच के तरीके पर सवाल उठाया। 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हिंसा के दौरान मारे गए मारे गए कांग्रेस नेता अहसान जाफरी की पत्नी हैं जकिया जाफरी।
नई दिल्ली, प्रेट्र। एसआइटी ने बुधवार(10 नवंबर,2021) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 2002 के गुजरात दंगों में बड़ी साजिश का आरोप लगाने वाली जकिया जाफरी की शिकायत की गहनता से जांच की गई जिसके बाद यह निष्कर्ष निकला कि इसे आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं है। 2002 के दंगों के कई मामलों की जांच करने वाले विशेष जांच दल (एसआइटी) की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि जकिया जाफरी की शिकायत की जांच की गई और बयान दर्ज किए गए। इस पीठ के अन्य दो जज जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार हैं।
28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी में हिंसा के दौरान मारे गए मारे गए कांग्रेस नेता अहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दंगों के लिए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित 64 लोगों को एसआइटी की क्लीन चिट को चुनौती दी है। रोहतगी ने पीठ को बताया कि जकिया जाफरी की शिकायत को जांच के लिए लिया गया और बयान दर्ज किए गए। उसकी शिकायत की गहनता से जांच की गई। एसआइटी इस नतीजे पर पहुंची कि पहले ही दायर आरोपपत्र के अलावा 2006 की उसकी शिकायत को आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी। उन्होंने आगे कहा कि शीर्ष अदालत ने 2011 में कहा था कि उनकी शिकायत के सभी पहलुओं की एसआइटी द्वारा जांच की जानी चाहिए।
रोहतगी ने कहा कि दंगों के मामलों में नौ बड़ी प्राथमिकी दर्ज की गईं और एसआइटी 2008-2009 में आई और इन मामलों को अपने हाथ में लिया और बाद में आरोप पत्र और पूरक आरोप पत्र दायर किए। जाकिया जाफरी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्होंने 2006 में एक शिकायत की थी जिसमें बड़ी साजिश की बात की गई थी और एसआइटी ने उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर कोई जांच नहीं की।सिब्बल ने बुधवार को जारी बहस के दौरान पीठ से कहा कि सवाल यह है कि क्या एसआइटी ने उन सुबूतों से निपटने के लिए कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन किया जो उसके सामने थे और जिसकी उन्होंने पूरी तरह से अवहेलना की और कभी जांच नहीं की।
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के 2011 के फैसले में जकिया जाफरी की शिकायत पर ध्यान दिया गया लेकिन इसे अलग मामले या अलग प्राथमिकी के रूप में दर्ज करने का कोई निर्देश नहीं था। सिब्बल ने कहा कि शीर्ष अदालत ने एसआइटी से शिकायत पर गौर करने को कहा था और टीम ने बाद में मजिस्ट्रेट अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की जिसने इसे स्वीकार कर लिया।रोहतगी ने पीठ को बताया कि जब एसआइटी शिकायत की जांच कर रही थी तो यह प्राथमिकी नहीं थी और टीम ने मामले में कई लोगों के बयान दर्ज किए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार जांच पूरी तरह से की गई थी। प्राथमिकी दर्ज करने का कोई आदेश नहीं था।