Move to Jagran APP

Gujarat Riots Case: अधिकारियों की विफलता षड्यंत्र का आधार नहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की महत्‍वपूर्ण और बड़ी बातें

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और 63 अन्य को एसआइटी द्वारा दी गई क्लीनचिट पर शुक्रवार को मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्‍या बातें कही जानने के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2022 03:12 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jun 2022 03:47 AM (IST)
Gujarat Riots Case: अधिकारियों की विफलता षड्यंत्र का आधार नहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की महत्‍वपूर्ण और बड़ी बातें
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगा मामले में नरेन्द्र मोदी को एसआइटी की क्लीनचिट पर मुहर लगा दी है।

नई दिल्ली, ब्‍यूरो/पीटीआइ। गुजरात दंगा मामले में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को एसआइटी की क्लीनचिट पर मुहर लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कई बेहद महत्‍वपूर्ण टिप्पणियां की हैं। सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने कहा है कि कुछ अधिकारियों की निष्क्रियता या विफलता को राज्य प्रशासन की पूर्व नियोजित आपराधिक साजिश नहीं माना जा सकता। इसे अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति राज्य प्रायोजित अपराध भी नहीं कहा जा सकता है। पढ़ें सुप्रीम कोर्ट के फैसले की महत्‍वपूर्ण और बड़ी बातें...

loksabha election banner

ऐसे आरोपों को साबित करने के लिए विश्वसनीय साक्ष्य जरूरी 

जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, कानून-व्यवस्था की स्थिति भंग होने को राज्य प्रायोजित बताने के लिए विश्वसनीय साक्ष्य होना चाहिए। केवल राज्य प्रशासन की निष्क्रियता या विफलता के आधार पर साजिश का आसानी से अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा, एसआइटी ने उल्लेख किया था कि दोषी अधिकारियों की निष्क्रियता और लापरवाही को उचित स्तर पर नोट किया गया है। इसमें उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करना भी शामिल है।

फैसले की बड़ी बातें

  • अदालत ने एसआइटी के काम को सराहा, सवाल उठाने वालों को बताया दुर्भावना से प्रेरित।
  • मामले को गर्म बनाए रखने के लिए याचिकाकर्ताओं ने कानून का किया दुरुपयोग।
  • याचिका में गलत दावे किए गए हैं। हिंसा के पीछे साजिश होने के पक्ष में कोई सुबूत नहीं।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गुजरात दंगों को राज्य प्रायोजित अपराध नहीं माना जा सकता
  • संजीव भट्ट, हरेन पांड्या और श्रीकुमार की गवाही मामले को सनसनीखेज बनाने के लिए थी
  • शीर्ष अदालत के अनुसार, झूठे बयान देने वाले अधिकारियों को कठघरे में खड़ा होने की जरूरत है
  • मामले को सनसनीखेज बनाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करें।

जकिया की आपत्ति

  • जकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर एसआइटी द्वारा मोदी सहित 64 लोगों को क्लीनचिट देने को चुनौती दी थी।
  • अपनी याचिका में जकिया ने आरोप लगाया था कि गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों के पीछे उच्च स्तरीय बड़ी साजिश थी।

शीर्ष अदालत का जवाब

  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एसआइटी की सराहना करते हुए कहा है कि इसकी जांच और फाइनल रिपोर्ट में कोई खामी नहीं है।
  • अदालत के अनुसार, रिपोर्ट तर्कों पर आधारित है। उसमें सभी पहलुओं पर विचार किया गया है और लगाए गए आरोपों को नकारा गया है।

ऐसे अधिकारियों को कटघरे में लाने की जरूरत

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में गुजरात सरकार के असंतुष्ट अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी टिप्पणी की है। इसने कहा है कि 2002 के दंगों पर झूठी जानकारी देने के लिए असंतुष्ट अधिकारियों को कठघरे में खड़ा करने की जरूरत है।

अपनाया सख्‍त रुख 

शीर्ष अदालत ने क्लीनचिट पर सवाल उठाने वाली और गुजरात दंगों के पीछे उच्च स्तरीय बड़ी साजिश का आरोप लगाने वाली जकिया जाफरी की याचिका करते हुए सख्त लहजे में कहा कि मामले को गर्म बनाए रखने के लिए आधारहीन और गलत बयानी से भरी याचिका दाखिल की गई। आरोपों का समर्थन करने वाला ऐसा कोई सुबूत नहीं है, जिससे साबित हो कि गोधरा की घटना के बाद राज्य में हुई हिंसा के पीछे उच्च स्तरीय साजिश थी और यह पूर्व नियोजित थी।

तर्कों पर आधारित है रिपोर्ट

एसआइटी की फाइनल रिपोर्ट हर पहलू पर विश्लेषणात्मक और तर्कों पर आधारित है। इसमें व्यापक साजिश के आरोपों को नकारा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने उन अधिकारियों के खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई की भी पैरवी की, जिन्होंने मामले को सनसनीखेज और राजनीतिक रूप से गर्म बनाने का प्रयास किया।

केवल मुद्दे को सनसनीखेज बनाने के लिए गवाही कराई 

अदालत ने कहा कि उसे राज्य सरकार के इस तर्क में दम नजर आता है कि संजीव भट्ट (तत्कालीन आइपीएस अधिकारी), हरेन पांड्या (गुजरात के पूर्व गृह मंत्री) और आरबी श्रीकुमार (अब सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी) की गवाही केवल मुद्दे को सनसनीखेज और राजनीतिक बनाने के लिए थी। उनके बयान झूठ से भरे हुए थे। 26 मार्च, 2003 को अहमदाबाद में हरेन पांड्या की सुबह के समय एक पार्क में हत्या कर दी गई थी।

चश्मदीद गवाह होने का झूठा दावा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संजीव भट्ट और पांड्या ने खुद को उस बैठक का चश्मदीद गवाह होने का झूठा दावा किया, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा कथित तौर पर बयान दिए गए थे। विशेष जांच दल ने उनके दावे को खारिज कर दिया था।

सनसनी पैदा करना था मकसद

अदालत ने कहा, अंत में हमें ऐसा लगता है कि गुजरात के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का प्रयास गलत बयान देकर सनसनी पैदा करना था। गंभीर जांच के बाद एसआइटी ने उनके झूठ को पूरी तरह से उजागर कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा, याचिकाकर्ता की अपील आधारहीन है। इसलिए खारिज की जाती है। इस मामले में मजिस्ट्रेट के प्रोटेस्ट पिटीशन खारिज करने के बाद हाई कोर्ट से भी झटका लगने के बाद जकिया ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी।

452 पेज का फैसला

यह फैसला न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की पीठ ने दंगों में मारे गए कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका पर सुनाया। कोर्ट ने 452 पेज के विस्तृत फैसले में याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों का एसआइटी रिपोर्ट में किया गया बिंदुवार विश्लेषण दर्ज किया है।

मुद्दे को गर्म रखने पर भी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने मुद्दे को गर्म रखने पर भी टिप्पणी की। कहा कि यह मामला 16 वर्षों से चल रहा है। आठ जून, 2006 को 67 पृष्ठ की शिकायत दी गई। फिर 15 अप्रैल, 2013 को 514 पृष्ठों की प्रोटेस्ट पिटीशन दाखिल की गई, जिसमें प्रक्रिया में शामिल प्रत्येक व्यक्ति की निष्ठा पर सवाल उठाए गए। जाहिर है कि इस मामले को गर्म रखने की दुर्भावना से यह किया गया था।

आगे जांच की संभावना खत्म

सुप्रीम कोर्ट ने आगे जांच की संभावना खत्म करते हुए कहा कि जांच के दौरान एकत्रित सामग्री से इस बात की शंका पैदा नहीं होती कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के पीछे बड़ी साजिश थी। या फिर जिन पर आरोप लगाए गए हैं, उनके उसमें शामिल होने का कोई संकेत मिलता है। एसआइटी ने जांच में एकत्र रिकार्ड और सामग्री को देखने के बाद अपनी राय दी है।

रिपोर्ट जैसी है, वैसी स्वीकार करें

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एसआइटी की फाइनल रिपोर्ट जैसी है, वैसी ही स्वीकार होनी चाहिए। उसमें और कुछ करने की जरूरत नहीं है। मजिस्ट्रेट ने एसआइटी की आठ फरवरी, 2012 को दाखिल रिपोर्ट को देखने और उस पर स्वतंत्र रूप से सोचने-विचारने के बाद स्वीकार किया और एसआइटी को आगे कोई निर्देश नहीं दिया। पीठ ने एसआइटी रिपोर्ट स्वीकार करने और याचिकाकर्ता की पिटीशन खारिज करने के मजिस्ट्रेट के फैसले को सही ठहराया।

216 दिन की देरी पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने में 216 दिन की देरी पर भी सवाल उठाया। कहा कि आवेदन में देरी के लिए बताया गया कारण अस्पष्ट है। इसमें तथ्यों और विवरणों का अभाव है। हालांकि, विषय वस्तु को देखते हुए हमें यही उचित लगा कि देरी को नजरअंदाज कर दिया जाए और तथ्यों पर सुनवाई की जाए।

कब क्या हुआ

  • 27 फरवरी, 2002 : अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस से लौट रहे 59 कारसेवकों को गोधरा स्टेशन पर कोच में आग लगाकर जिंदा जलाया गया।
  • 28 फरवरी, 2002 : उग्र भीड़ ने गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला कर दिया। इसमें जकिया जाफरी के पति एहसान जाफरी समेत 69 लोग मारे गए।
  • 08 जून, 2006 : जकिया जाफरी ने नरेन्द्र मोदी समेत अन्य के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। उन पर दंगे की साजिश रचने का आरोप लगाया।
  • 26 मार्च, 2008 : सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता में विशेष जांच दल का गठन किया।
  • 08 मार्च, 2012 : एसआइटी ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की। इसमें मोदी और 63 अन्य को क्लीनचिट दी गई। कहा-अभियोजन लायक सुबूत नहीं।
  • 05 अक्टूबर, 2017 : एसआइटी रिपोर्ट के खिलाफ जकिया की याचिका गुजरात हाई कोर्ट ने खारिज की।
  • 12 सितंबर, 2018 : हाई कोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने को जकिया ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
  • 24 जून, 2022 : सुप्रीम कोर्ट ने जकिया की याचिका खारिज की। मोदी, अन्य को दी गई क्लीनचिट बरकरार रखी। 

जकिया के बेटे ने निराशा जताई

समाचार एजेंसी पीटीआइ के अनुसार, जकिया जाफरी के बेटे तनवीर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताई है। उन्होंने फोन पर बताया, मैं इस समय देश से बाहर हूं। इसलिए फैसला पढ़ने के बाद विस्तृत बयान दूंगा। तनवीर के वकील ने बताया कि वे इस समय हज के लिए मक्का गए हैं। जकिया फिलहाल अपनी बेटी के साथ अमेरिका में हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.