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जीएस मुर्मू: कमाल का आना और हलचल मचाकर चले जाना

विकास को गति देना हालात सामान्य बनाना विश्वास बहाली अलगाववाद और आतंकवाद के फन को कुचलना मिशन कश्मीर के प्रमुख एजेंडे थे।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sun, 09 Aug 2020 01:11 PM (IST)Updated: Sun, 09 Aug 2020 01:11 PM (IST)
जीएस मुर्मू: कमाल का आना और हलचल मचाकर चले जाना
जीएस मुर्मू: कमाल का आना और हलचल मचाकर चले जाना

श्रीनगर [नवीन नवाज]। गिरीश चंद्र मुर्मू अब जम्मू-कश्मीर से मिशन पूरा होने से पहले ही दिल्ली रुखस्त हो चुके हैं। उनकी उपराज्यपाल के पद पर नियुक्ति भी किसी आश्चर्य से कम नहीं थी और अचानक इस्तीफा प्रशासनिक और सियासी गलियारों में हलचल मचा गया।

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जीएस मुर्मू ने उस समय जम्मू-कश्मीर की बागडोर संभाली जब अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद सामने चुनौतीपूर्ण हालात थे। विकास को गति देना, हालात सामान्य बनाना, विश्वास बहाली, अलगाववाद और आतंकवाद के फन को कुचलना मिशन कश्मीर के प्रमुख एजेंडे थे।

खालिस नौकरशाह मुर्मू बिना शोर मचाए चुपचाप अपने काम को अंजाम तक पहुंचाने में माहिर माने जाते हैं और वह हर काम को बिना किसी हंगामे के आगे बढ़ाते रहे। उनका यही अंदाज हर मोर्चे पर सफलता दिलाता रहा, पर जम्मूकश्मीर के संवदेनशील मोर्च पर यही उनके लिए चुनौती बनता दिखा।

नौ माह के छोटे कार्यकाल में  राजनीतिक परिवेश के मुताबिक सामंजस्य बैठा पाना मुश्किल रहा ही, अफसरशाही भी ध्रुवों में बंटती दिखी। उन्होंने दो संवदेनशील मसलों पर चुप्पी क्या तोड़ी, उससे नया बवाल खड़ा हो गया। लिहाजा, उन्हें दिल्ली बुला लिया गया। अब वह नए मोर्चे पर जा डटे हैं।

नई जिम्मेदारी :

उड़ीसा (अब ओडिशा) के मयूरभंज इलाके में जन्मे और 1985 बैच के गुजरात कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के अधिकारी मुर्मू को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के विश्वस्तों में गिना जाता है। इसलिए नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) पद पर उनकी नियुक्ति को भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है।

राजनीति से दूरी :

मोदी और शाह ने जिस मकसद के साथ उन्हें जम्मू-कश्मीर भेजा था, वह उसमें किसी हद तक कामयाब रहे। अगर कोई विषय छूटता दिख रहा है तो वह है, राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली। जम्मूकश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को लागू करते हुए केंद्र ने विकास, सुशासन, सुरक्षा और शांति का लोगों को यकीन दिलाया था। नौ माह के कार्यकाल में मुर्मू ने जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक तंत्र में पारदर्शीता और उत्तरदायित्व की भावना को पैदा किया है। सुरक्षा के मुद्दे पर वह कहीं भी ढुल-मुल रवैया अपनाते नजर नहीं आए।

हर काम नियमों के मुताबिक : 

गुजरात में उनसे कुछ विवाद जुड़े थे, पर कश्मीर में उनके साथ एक भी विवाद नहीं जुड़ा। सभी मानकर चल रहे थे कि वह सुरक्षाबलों को मनचाही छूट देंगे। उन्होंने सुरक्षाबलों को छूट दी, लेकिन नियमों के मुताबिक। यही कारण है बीते नौ माह के दौरान कश्मीर में सुरक्षाबलों पर मानवाधिकार हनन, फर्जी मुठभेड़ या हिरासत में किसी को गायब करने का एक भी आरोप नहीं लगा।

राजनीतिक शून्य :

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद जम्मूकश्मीर में राजनीतिक रूप से एक शून्य पैदा हुआ है। इस शून्य को भरने के लिए आवश्यक है सियासी गतिविधियों को ऊर्जा मिले। इसे सिर्फ भाजपा या कांग्रेस के सहारे दूर नहीं किया जा सकता। जम्मू कश्मीर में सभी नीतिगत मामलों पर बड़े ही नपे तुले शब्दों में अपनी बात यूं कहनी होती है, जिसका मतलब सुनने वाला अपने तरीके से निकाले।

अपने नौ माह के कार्यकाल में जीएस मुर्मू जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक गतिरोध को नहीं तोड़ पाए। जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी समेत एक दो नए दलों का गठन भी हुआ, लेकिन राजनीतिक गतिविधियों की बहाली पूरी तरह नहीं हो पाई। बावजूद इसके मुर्मू ने बीते दिनों जम्मू-कश्मीर में जारी परिसीमन की प्रक्रिया और विधानसभा चुनाव जल्द होने की बात कही।

गृह मंत्रालय के अलावा चुनाव आयोग ने भी उनके प्रति नाराजगी जताई। उनके बयान को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में जम्मू-कश्मीर की सियासी अहमियत के प्रति कम समझ के रूप में लिया। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवा बहाली का समर्थन करते हुए कहा कि आतंकी अपना काम 2जी सेवा से कर रहे हैं, ऐसे में 4जी सेवा बहाल करने में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए। उनका यह बयान गृह मंत्रालय के कोर्ट में रखे गए पक्ष के विपरीत था।


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