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सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में बिखराव के शिकार वैवाहिक रिश्तों में बढ़ती कटुता चिंतनीय

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2020 में देश में 153052 लोगों ने आत्महत्या जैसा अतिवादी कदम उठाया है। जिनमें सबसे अधिक यानी 33.6 प्रतिशत मामलों में पारिवारिक समस्याएं खुदकुशी की वजह बनी हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 03:43 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 03:43 PM (IST)
सामाजिक और पारिवारिक परिवेश में बिखराव के शिकार वैवाहिक रिश्तों में बढ़ती कटुता चिंतनीय
शादी में मानवीय भावनाएं शामिल होती है। पीटीआई फोटो

डा. मोनिका शर्मा। बीते दिनों तलाक के एक मामले को मंजूरी देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि अगर विवाह टूट चुका है तो तलाक न देना दोनों पक्षों के लिए विनाशकारी होगा। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता 2003 से अपनी पत्नी से अलग रह रहा है। दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है। विवाह पूरी तरह से टूट चुका है और इनके दोबारा साथ रहने की कोई संभावना नहीं है। ऐसे में न्यायिक फैसले से विवाह को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता। शादी में मानवीय भावनाएं शामिल होती हैं और यदि वे खत्म जाएं तो अदालत के फैसले से उन्हें वापस लाने की कोई संभावना नहीं होती है।

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गौरतलब है कि क्रूरता और परित्याग करने के आधार पर तलाक के लिए दाखिल इस अर्जी को गुरुग्राम के फैमिली कोर्ट ने 2015 में खारिज कर दिया था। मौजूदा सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में बिखराव के शिकार वैवाहिक रिश्ते का यह मामला और न्यायालय की टिप्पणी दोनों विचारणीय हैं। देश में ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है जिनमें शादी के रिश्ते में आई उलझनों को सुलझाने में न मध्यस्थता काम करती है और न ही आपसी समझ से कोई रास्ता निकल पाता है। कानूनी दबाव तो ऐसे संबंधों को पुनर्जीवन दे ही नहीं सकता। ऐसे में व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो अलग हो जाना दोनों ही पक्षों के जीवन की सहजता के लिए जरूरी है। यह इसलिए भी जरूरी है कि देश में टूटती-बिखरती शादियों के आंकड़े बढ़ रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक भारत में लगभग 14 लाख लोग तलाकशुदा हैं, जो कि कुल आबादी का करीब 0.11 प्रतिशत और विवाहित आबादी का 0.24 प्रतिशत हिस्सा है। हाल के कुछ वर्षो में मुंबई और लखनऊ जैसे शहरों में शादीशुदा जीवन में अलगाव के मामले 200 प्रतिशत तक बढ़े हैं। यह कटु सच है कि रिश्तों की गुत्थियां जब सुलझने के बजाय और उलझती जाएं तो कानूनों का दुरुपयोग भी होने लगता है। ऐसे में शादीशुदा जीवन में उलझनें और बढ़ाने के बजाय सम्मानजनक ढंग से अलग हो जाना ही बेहतर है। वरना स्थितियां आपराधिक गतिविधियों का कारण तक बनने लगती हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक सामाजिक स्थिति से जुड़ी आत्महत्याओं में 66.1 प्रतिशत लोग शादीशुदा थे। शादीशुदा जीवन में आपसी खींचतान अवसाद और अपराध के आंकड़े भी बढ़ा रही है। वैवाहिक रिश्तों में बढ़ती कटुता के चिंतनीय हो चले हालातों में अलगाव को लेकर भी परिपक्व समझ दिखाने की दरकार है।

(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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