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हरित ऊर्जा से मिल रही पर्यावरण संरक्षण को रोशनी, दो साल में देश में आठ फीसद घटा कोयले से बिजली उत्पादन

गैर सरकारी संगठन एनर्जी थिंक टैंक एम्बर द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आया है कि 2018 में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का उत्पादन चरम पर था लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Wed, 17 Feb 2021 09:31 PM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2021 09:34 PM (IST)
हरित ऊर्जा से मिल रही पर्यावरण संरक्षण को रोशनी, दो साल में देश में आठ फीसद घटा कोयले से बिजली उत्पादन
गैर सरकारी संगठन एनर्जी थिंक टैंक एम्बर के अध्ययन में आया सामने

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों के बीच देश में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के उत्पादन में लगातार दूसरे साल गिरावट दर्ज की गई है। सौर ऊर्जा के बढ़ते उत्पादन से दो साल में परंपरागत बिजली की मांग आठ फीसद तक घट गई है। विशेषज्ञों ने इसे पर्यावरण के लिए सकारात्मक संकेत बताया है।

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गैर सरकारी संगठन एनर्जी थिंक टैंक एम्बर द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आया है कि 2018 में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का उत्पादन चरम पर था, लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट आ रही है। कोविड-19 के दौरान लाकडाउन की वजह से बिजली की सालाना मांग में कमी आई है। इससे देश में कोयले से बनने वाली बिजली का उत्पादन भी 2019-20 में पांच फीसद कम हो गया है। यह लगातार दूसरा वर्ष है जब कोयला आधारित बिजली उत्पादन में गिरावट आई है। 2018 की तुलना में 2020-21 में कोयला उत्पादन आठ फीसद कम है। हालांकि कोयला अभी भी देश में बिजली का प्रमुख स्रोत बना हुआ है और इससे 2020 में देश की 71 फीसद बिजली का उत्पादन हुआ।

कोयले से बिजली उत्पादन में 2020 के दौरान पांच फीसद की आई गिरावट

अध्ययन में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के नए आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इससे पता चलता है कि बिजली की मांग में 36 ट्रिलियन मेगावाट प्रति घंटे (तीन फीसद) की गिरावट और सौर ऊर्जा उत्पादन में 12 मेगावाट प्रतिघंटे (तीन फीसद) की वृद्धि हुई। लिहाजा कोयले से बिजली उत्पादन में 2020 के दौरान 51 मेगावाट प्रति घंटे (पांच फीसद) की गिरावट हुई।

बिजली की मांग 2030 तक हर साल सिर्फ चार से पांच फीसद बढ़ने का अनुमान

रिपोर्ट दर्शाती है कि अगर बिजली की मांग कोविड-19 से संरचनात्मक रूप से प्रभावित होती है तो देश का कोयला आधारित बिजली उत्पादन इस दशक में नहीं बढ़ेगा, जैसा है वैसा ही रहेगा। बिजली की मांग 2030 तक हर साल सिर्फ चार से पांच फीसद बढ़ने का अनुमान है। रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक कोयले से चलने वाले बिजली उत्पादन में केवल 52 ट्रिलियन मेगावाट प्रतिघंटे की वृद्धि होगी। हालांकि यह भारत पर निर्भर है कि वह पवन और सौर उत्पादन के लिए वर्ष 2022 का अपना लक्ष्य पूरा करे, जिसे 2020 (118 ट्रिलियन मेगावाट प्रतिघंटे) में हुए उत्पादन से दोगुने से अधिक होने की आवश्यकता होगी।

एम्बर के वरिष्ठ विश्लेषक आदित्य लोल्ला कहते हैं कि संभावना बढ़ रही है कि 2020-21 में कोयला बिजली (उत्पादन) स्थिर रहेगा। बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए अब पर्याप्त नई सौर और पवन क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला उत्पादक के रूप में सभी की निगाहें जलवायु कार्रवाई के इस महत्वपूर्ण दशक में भारत पर ही टिकी हुई है।


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