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नालंदा विश्वविद्यालय का ग्रीन कैंपस जीरो कार्बन उत्सर्जन की ओर अग्रसर

नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत में हमारे मानव धर्म के कुछ प्रमुख कर्तव्य हैं जिनमें सबसे पहले हमें प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। (लेखिका द्वारा छठे अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में दिए गए अभिभाषण का संपादित अंश)

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 10:01 AM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 10:01 AM (IST)
दुनिया का नेतृत्व करने और प्रकाश दिखाने के लिए भारत आगे बढ़ रहा है। फाइल

सुनैना सिंह। कोविड महामारी के वैश्विक संकट के दौरान जब पूरा विश्व चिकित्सा आपातकाल की निराशा में डूबा हुआ था, उस दौर में ऐसे हालात से जूझ रहे अन्य देशों को राहत सामग्री, दवा और टीके भेजकर भारत, ‘वसुधैव-कुटुंबकम’ के अपने आदर्श पर खरा उतरा। ‘वंदे भारत मिशन’ के तहत विदेश से अपने लोगों को लाना और करोड़ों लोगों को सुरक्षित करने के लिए सफल टीकाकरण अभियान चलाना, हमारे देश के सुशासन और अपार क्षमता का बेजोड़ उदाहरण है। वर्तमान में पारंपरिक जीवन सिद्धांत से सीखने से ज्यादा जरूरी इस दुनिया में कुछ भी नहीं है। इस मनोवृत्ति को आकार देने और पीड़ितों को तनावमुक्त कराने में मदद मिल सकती है। मानवता के लिए बिना बदलाव लाए कोई उम्मीद नहीं है।

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कुछ दिनों पहले नालंदा विश्वविद्यालय में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में विद्वानों ने विचार किया कि कोविड उपरांत विश्व व्यवस्था में धर्म-धम्म परंपराओं से क्या योगदान दिया जा सकता है। धर्म सांप्रदायिक नहीं है और न ही केवल ‘धर्म’ है, बल्कि ये धर्म का एक उद्देश्य है। धर्म शब्द ‘धृ’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है धारण करना, इसलिए ‘धारयति इति धर्म:’ के अनुसार धर्म विश्व को बनाए और धारण किए हुए है। ‘धारणात् धर्म इत्याहु: धर्मो धारयति प्रजा:, य: स्यात् धारणसंयुक्त: स धर्म इति निश्चय:’, अर्थात जो धारण करता है, एकत्र करता है, अलगाव को दूर करता है, उसे ‘धर्म’ कहते हैं। यह हमारा धारणीय मंत्र है जो संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को भी दर्शाता है।

भारतीय ज्ञान यह देखता है कि ये परिवर्तनशील और नश्वर संसार भले ही समय के द्वारा उत्पन्न संकटों के कारण बिखर जाता है, लेकिन जो सदैव स्थिर रहता है, वही धर्म है। वास्तव में, धर्म अडिग और स्थिर है, फिर भी यह परिवर्तन के नियमों को नियंत्रित करता है। यह नैतिक जीवन को मजबूत करता है और व्यक्ति को नैतिक आचरण की ओर मोड़ता है। इसलिए, धर्म जीवन के सभी पहलुओं में और विशेष रूप से हिंदू धर्म के पुरुषार्थ चतुष्टय में व्याप्त है। धर्म की दृढ़ता धर्म को पुष्ट करती है और अनुयायी का उद्धार भी करती है। भारतीय धर्म, पौराणिक कथाओं और दर्शन ने सभी तरह से एक ही चिंता व्यक्त की है कि दुनिया पीड़ित न हो इसके लिए धर्म स्थिर रहे। अधर्म या अनैतिक तरीके से हमें बचना चाहिए, क्योंकि यह सृष्टि को अपवित्र करता है। हमारे धर्म-धम्म दर्शन भी उसी ज्ञान को धारण करते हैं, जो ‘मुक्त’ करता है और अंतर्दृष्टि और ज्ञान उत्पन्न करता है, जिसमें मानव व्यथा को हल करने की क्षमता होती है। संकटों के दौरान इनका परीक्षण किया गया और युद्ध तथा विनाश के युग में लोगों को धर्म ने ही आश्वस्त किया।

कृष्ण ने महाभारत के मैदान में दिए गए भगवद्गीता के ज्ञान में योगस्थ बुद्धि की अनुशंसा की थी। भगवान बुद्ध ने तृष्णा और अज्ञानता से पीड़ित सभी लोगों को एक ही आर्य-सत्य और अष्ट-अंग मार्ग का उपदेश दिया और प्रत्येक को धम्म से सहायता मिली। युद्ध से थके हुए सम्राट अशोक ने धम्म का प्रसार किया। उन्होंने धर्मपरायणता, भक्ति, आध्यात्मिक परिपक्वता को धम्म बताया। धम्म दुनिया के लिए भारत का संदेश भी बना।

परिवर्तन लाने या नैतिक सिद्धांतों को अमल में लाने के लिए प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। कम से कम नालंदा में तो हम अपनी भूमिका निभा ही रहे हैं। उल्लेखनीय है कि नालंदा विश्वविद्यालय का ‘लोगो’ मनुष्य और मनुष्य, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य को दर्शाता है। पिछले चार वर्षो में हमने उस आदर्श को जीया है। प्रकृति के साथ हमारे सौहार्दपूर्ण संबंधों के 455 एकड़ में हमने ‘नेट जीरो कैंपस’ का निर्माण किया। पानी, ऊर्जा और संसाधनों की बर्बादी नहीं होने दी तथा कार्बन फुटप्रिंट को मिटाने और डीकाबरेनाइजिंग की दिशा में आगे बढ़े। ‘जल, जीवन, हरियाली’ के एजेंडे के अनुरूप किया जा रहा हमारा जल प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और पुनर्भरण भी अनुकरणीय है। उल्लेखनीय यह भी है कि नालंदा के ग्रीन कैंपस को गृहा (ग्रीन रेटिंग फार इंटेग्रेटेड हैबिटेट असेसमेंट) काउंसिल द्वारा सर्वोच्च स्थान दिया गया है और फाइव स्टार रेटिंग से सम्मानित किया गया है। हमें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘जीवन शैली में सुधार और 2070 तक नेट जीरो’ की अपील का पालन करने के लिए और भी लोग हमारा अनुसरण करेंगे।

भौतिकवादी विकास, औद्योगिक उन्नति और पृथ्वी पर मानव विस्तार ने अन्य जीवों के आवासों को अस्त-व्यस्त कर दिया है, पारिस्थितिक संतुलन को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है और ओजोनोस्फीयर में छेद कर दिया है। यहां हमें अपने तौर-तरीकों को ठीक करने की जरूरत है। दूसरा दायित्व मानवजाति के प्रति हमें सद्भावना, शांति और करुणा भाव रखना है। हमें भारतीय पहचान को दर्शाने वाले सुसंस्कृत व्यवहार के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है।

इन सबसे बढ़कर हमारे राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्य है। दुनिया का नेतृत्व करने और प्रकाश दिखाने के लिए भारत आगे बढ़ रहा है। हम ‘भविष्य के नालेज लीडर्स’ को विकसित करने में मदद कर रहे हैं। आज हम कार्य करने का संकल्प लें, प्रतीक्षा न करें, यही समय की मांग है।

[कुलपति, नालंदा विश्वविद्यालय]


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