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नहीं होता है विश्वास हिमालय पर उग रही है घास, बढ़ सकता है बाढ़ का खतरा

Global Heating Intensifies एवरेस्ट के आसपास और कभी पूरी तरह से बर्फ से ढके रहने वाले हिमालय के बर्फीले इलाकों में घास और झाड़ियां पनप रही हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 13 Jan 2020 08:55 AM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 01:05 PM (IST)
नहीं होता है विश्वास हिमालय पर उग रही है घास, बढ़ सकता है बाढ़ का खतरा
नहीं होता है विश्वास हिमालय पर उग रही है घास, बढ़ सकता है बाढ़ का खतरा

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। Global Heating Intensifies: दुनिया में सबसे ठंडे स्थानों में से एक हिमालय के शिखर धीरे-धीरे गर्म हो रहे हैं। सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट के आसपास भी इसका काफी असर हुआ है। एवरेस्ट के आसपास और कभी पूरी तरह से बर्फ से ढके रहने वाले हिमालय के बर्फीले इलाकों में घास और झाड़ियां पनप रही हैं। ब्रिटेन की एक्सटर विश्वविद्यालय के अध्ययन में यह बात सामने आई है।

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पनप रहीं है वनस्पतियां

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में सामने आया है कि हिमालय में कुछ इलाके ऐसे हैं जहां पर किसी भी प्रकार की वनस्पति पैदा नहीं होती थी और साल में कोई ऐसा वक्त नहीं होता था जब यहां पर बर्फ न हो। हालांकि यह अध्ययन बताता है कि इन स्थानों पर पानी की ज्यादा आवक से वनस्पतियों के पनपने में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।

बढ़ सकता है बाढ़ का खतरा

पानी की पूर्ति भले ही कम हो लेकिन वनस्पतियों में बढोतरी के कारण यह हिमालय क्षेत्र में बाढ़ के खतरे को बढ़ा सकती है। यहां मौसमी बर्फ होती है और जब यह गर्म होती है तो इनके पिघलने की दर बढ़ जाती है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही यहां से एशिया की बड़ी नदियों में से 10 नदियां निकलती हैं, जो कि एक अरब 40 करोड़ लोगों की प्यास बुझाती है।

दुर्गम इलाकों में पनप रही घास

इस अध्ययन में सैटेलाइट से प्राप्त डाटा का उपयोग कर घास और छोटी झाड़ियों के पनपने का पता लगाया है। इसके मुताबिक ऊंचाई को चार वर्गों में बांटकर के निष्कर्ष निकाले गए हैं। इसके मुताबिक सबसे ज्यादा 16 हजार से 18 हजार फीट के बीच वनस्पतियां सबसे ज्यादा बढ़ी हैं। वहीं अन्य तीन वर्गों में भी बढोतरी दर्ज की गई है।

दोगुनी तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर

हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार इस सदी में दोगुनी हो चुकी है। पिछले चार दशकों में करीब एक चौथाई से ज्यादा बर्फ पिघल चुकी है। शोधकर्ता केरेन एंडरसन के मुताबिक, यहां का पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु परिवर्तन की चपेट में है। बर्फ के पिघलने पर बहुत सारे शोध किए गए हैं, जिसमें एक अध्ययन में बताया है कि 2000 और 2016 के बीच बर्फ के नुकसान की दर दोगुनी हो गई है।

नजर रखी जानी चाहिए

एंडरसन का कहना है कि घास और छोटे पौधेहिमालय के बड़े हिस्से को घेर रहे हैं। मुख्य पहाड़ों पर से बर्फ गायब हो रही है। यह काफी चिंताजनक है, जिस पर नजर रखी जानी चाहिए। हालांकि यह बहुत बड़ा इलाका है।

यहां नहीं उगते पौधे

माना जाता है कि नए पौधों के लिए 20 हजार फीट की ऊंचाई पर उगना संभव नहीं होता है। इसका कारण है कि इस ऊंचाई पर बर्फ के कारण पौधे उग नहीं पाते हैं। गर्म होते इलाकों में से एक यह इलाका दुनिया का सबसे तेजी से गर्म हो रहे इलाकों में से एक हैं। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से दुनिया जूझ रही है। हालांकि इन सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ग्लेशियरों का पिघलना है।

आर्कटिक में भी बढ़ी वनस्पति

आर्कटिक में वनस्पति बढ़ने पर हुए अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि वनस्पति बढ़ने से आसपास के परिदृश्य में गर्म प्रभाव पाया गया। पौधे अधिक प्रकाश को अवशोषित कर लेते हैं और मिट्टी को गर्म करते हैं।

नासा के चित्रों से मिली मदद

नासा के उपग्रहों द्वारा प्राप्त जानकारी काफी उपयोगी रही है। नासा उपग्रहों द्वारा 1993 से 2018 के बीच खींचे चित्रों के अध्ययन के बाद एक्सटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने समुद्र तल से करीब 13 हजार फीट से 18 हजार फीट तक वाले इलाकों में वनस्पति के प्रसार को मापा है।

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