अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के लिए फिर सक्रिय हुई सरकार, राज्यों के कानून मंत्रियों के साथ होने वाली बैठक में चर्चा संभव
केंद्र सरकार एक बार फिर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के लिए सक्रिय हो रही है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की अगले माह राज्यों के कानून मंत्रियों के साथ प्रस्तावित बैठक में इस मुद्दे पर भी चर्चा होने की संभावना है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के लिए केंद्र सरकार एक बार फिर सक्रिय हो रही है। इस पर राज्यों के साथ आम सहमति बनाने का प्रयास किया जा सकता है। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की अगले माह राज्यों के कानून मंत्रियों के साथ प्रस्तावित बैठक में इस मुद्दे पर भी चर्चा होने की संभावना है। हालांकि अभी तक बैठक के घोषित एजेंडे में अदालतों में ढांचागत संसाधन और मूलभूत सुविधाएं बढ़ाने पर ही चर्चा की बात है।
अखिल भारतीय न्यायिक सेवा कोई नया एजेंडा नहीं है, जिस पर सरकार आगे बढ़ने की सोच रही है। संविधान के अनुच्छेद 312 में आल इंडिया सर्विसेस (अखिल भारतीय सेवा) की बात कही गई है। 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिये प्रविधान किया गया कि संसद कानून बनाकर एक या उससे ज्यादा अखिल भारतीय सेवाएं (आल इंडिया सर्विसेज) सृजित कर सकती है और इसमें अखिल भारतीय न्यायिक सेवा शामिल है।
सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, न्याय प्रणाली को और सुदृढ़ करने तथा न्यायपालिका में योग्य युवाओं को प्रवेश देने के लिए अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा या अखिल भारतीय पुलिस सेवा की तर्ज पर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा होनी चाहिए। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा से राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षा के आधार पर उपयुक्त और योग्य युवाओं को न्यायिक सेवा में प्रवेश मिलेगा।
इसके लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) निचली अदालतों में अतिरिक्त जज भर्ती के लिए अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा करा सकता है। सरकार का मानना है कि अगर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा शुरू हुई तो इससे योग्य लोगों का न्यायिक सेवा पूल सृजित होगा जो बाद में प्रोन्नत होकर देशभर के उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय तक जाएंगे। अभी विभिन्न उच्च न्यायालय और राज्य सेवा आयोग निचली अदालतों में जजों की भर्ती की परीक्षा कराते हैं।
अखिल भारतीय न्यायिक सेवा लागू होने से पूरे देश के लिए समान मानकों पर एक साथ भर्ती परीक्षा होगी। हालांकि इसके व्यापक मानदंड तय करने और रूपरेखा तैयार करने के लिए सरकार को संसद में विधेयक लाना होगा। इससे भी पहले इस पर राज्यों के बीच आम सहमति बनाना जरूरी है।
अखिल भारतीय न्यायिक सेवा को लेकर एक सवाल उठता है कि निचली अदालतों में स्थानीय भाषा में सुनवाई और बहस होती है। ऐसे में उत्तर भारत के व्यक्ति के लिए दक्षिण भारत की अदालतों में सुनवाई करना संभव कैसे होगा? सरकार के सूत्र बताते हैं कि यह मुद्दा तो अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा और अखिल भारतीय पुलिस सेवा में भी हो सकता है। लेकिन वहां नहीं होता है। जैसे उन सेवाओं के अधिकारी भाषा संकट से उबर जाते हैं, न्यायिक सेवा के अधिकारियों के लिए भी यह संकट नहीं होगा।