फंगल रोग से गेहूं की फसल को बचाने के लिए सरकार ने किए पुख्ता बंदोबस्त
रतुआ और करनाल बंट जैसे फंगल रोग महामारी के रूप में फैलते हैं। गेहूं की फसल को लेकर सरकार किसी तरह की चूक नहीं करना चाहती है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। रबी सीजन की फसलों की बुवाई शुरु हो चुकी है। अगले महीने से तापमान घटते ही गेहूं की बुवाई भी चालू हो जाएगी। सीजन की प्रमुख और खाद्य सुरक्षा के लिए बेहद अहम गेहूं की फसल को लेकर सरकार किसी तरह की चूक नहीं करना चाहती है। इसीलिए गेहूं उत्पादक सभी राज्यों की सोमवार को बुलाई बैठक में गेहूं के लिए अत्यंत घातक रतुआ (येलो रस्ट) और करनाल बंट जैसी बीमारियों से निपटने को आगाह किया गया।
गेहूं उत्पादक राज्य सतर्क
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात में गेहूं की कुल 96 फीसद गेहूं की पैदावार होती है। रतुआ और करनाल बंट जैसे फंगल रोग महामारी के रूप में फैलते हैं। इसे लेकर दुनिया के सभी गेहूं उत्पादक देश पहले से ही सतर्कता बरतते हैं। केंद्रीय कृषि सचिव की अध्यक्षता वाली आपदा प्रबंधन समूह की सोमवार को हुई बैठक में रतुआ और करनाल बंट के खतरे से आगाह किया गया।
बैठक में राज्यों के प्रतिनिधियों के अलावा कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि संस्थानों के वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अंतरराष्ट्रीय मक्का एवं गेहूं सुधार केंद्र (सिमिट) के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया। कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने बैठक की अध्यक्षता ने की। अग्रवाल ने चालू सीजन में गेहूं की फसल की सुरक्षा को लेकर सभी राज्यों को इस बात से ताकीद किया कि जिस भी राज्य में इसके फैलने के संकेत भर मिलें, तत्काल इसकी सूचना केंद्र को पहुंचाई जाए।
वर्ष 2011 में रतुआ और करनाल बंट का प्रकोप 4.70 लाख हेक्टेयर रकबा में हुआ था। फफूंदी (फंगस) वाला यह रोग हवा के मार्फत तेजी से फैलता है। इसकी गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने कृषि सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय आपदा प्रबंधन समूह का गठन कर दिया था। इस समूह की बैठक हर साल रबी सीजन में गेहूं की बुवाई चालू होने से पहले होती है। फफूंदी वाले इन रोगों का प्रकोप 10 से 16 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान में ज्यादा तेजी से होता है।
इन रोगों की निगरानी ट्रैप प्लॉट नर्सरी प्रणाली, मोबाईल रोविंग सर्वेक्षण और इसरो के सैटेलाइटों से लगातार की जाती है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर लोगों को जागरुक किया जाता है, जो समय पर इसकी जानकारी संबंधित संस्थानों को दें। जानकारी मिलते ही प्रभावित क्षेत्र में कीटनाशकों व अन्य तरीकों से इस पर काबू पाने की कोशिश की जाती है। पिछले साल इसका प्रकोप नगण्य रहा है।