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सौर ऊर्जा को लेकर सरकार को उठाने होंगे एहतियाती कदम, अन्यथा लक्ष्य अधूरा रह जाएगा

डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी भी एक बड़ी वजह है कि इस क्षेत्र की कंपनियां थोड़ी एहतियात बरतने लगी हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 10:28 PM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 12:13 AM (IST)
सौर ऊर्जा को लेकर सरकार को उठाने होंगे एहतियाती कदम, अन्यथा लक्ष्य अधूरा रह जाएगा
सौर ऊर्जा को लेकर सरकार को उठाने होंगे एहतियाती कदम, अन्यथा लक्ष्य अधूरा रह जाएगा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। देश में सौर ऊर्जा को लेकर सरकार ने जल्द ही एहतियाती कदम नहीं उठाये तो वर्ष 2022 तक इससे एक लाख मेगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य अधूरा ही रह जाएगा। सौर ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियां अब सरकार की तरफ से आमंत्रित की जाने वाली निविदा में हिस्सा लेने से कतराने लगी है। हाल यह है कि 10 हजार मेगावाट की मैन्यूफैक्चरिंग लिंक्ड सोलर प्लांट लगाने के लिए सरकार की तरफ से आमंत्रित की जाने वाली निविदा प्रक्रिया पांच बार स्थगित की जा चुकी है।

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सोमवार को छठी बार इसके लिए बोली आमंत्रित की गई और सिर्फ दो हजार मेगावाट क्षमता के लिए निविदा आई। निजी क्षेत्र की अजुरा पावर ने यह बोली लगाई है। चालू वर्ष में जिस रफ्तार से सोलर प्लांट लगाने की रफ्तार है उसे देखते हुए बमुश्किल 4500 मेगावाट क्षमता के सौर प्लांट लगने के आसार है। जबकि लक्ष्य 16 हजार मेगावाट का रखा गया था।

उद्योग सूत्रों का कहना है कि अभी देश की कुल सौर उर्जा क्षेत्र की स्थापित क्षमता महज 27 हजार मेगावाट हुई है। अगले साढ़े तीन साल में इसमें तकरीबन चार गुणा वृद्धि करनी होगी तब जा कर सरकार के लक्ष्य के मुताबिक मार्च, 2022 तक देश में सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापित क्षमता एक लाख मेगावाट हो सकेगी।

अभी के हालात को देखते हुए यह बहुत बड़ी चुनौती दिख रही है। क्योंकि पिछले कुछ महीनों में पांच बार निविदा प्रक्रिया स्थगित होने से आगे की सारी प्रक्रियाएं भी इसी हिसाब से देरी से पूरी होंगी। इनका कहना है कि पहले सरकार की तरफ से सौर ऊर्जा के लिए बोली लगाने वाली कंपनियों के लिए शुल्क की सीमा 2.5 रुपये प्रति यूनिट तय करने से बेहद नकारात्मक संकेत गया है। इसके बाद सरकार की तरफ से रेट बढ़ा कर 2.75 पैसे प्रति यूनिट की गई है लेकिन इसके बावजूद उद्योग क्षेत्र को बहुत उम्मीद नहीं है।

यह सोमवार को समाप्त हुई निविदा से भी साफ दिख रहा है जबकि सिर्फ एक कंपनी आगे आई है। इसके अलावा आयातित सोलर पैनल पर 25 फीसद की आयात शुल्क लगाने की वजह से विदेशी निवेशकों को गलत संकेत गया है। भारत 90 फीसद से ज्यादा सोलर पैनल अभी मलयेशिया व चीन से आयात करता है।

डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी भी एक बड़ी वजह है कि इस क्षेत्र की कंपनियां थोड़ी एहतियात बरतने लगी हैं। चूंकि इस उद्योग में आयातित उत्पादों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है इसलिए डॉलर की मजबूती भारत में कारोबार करने वाले उद्योगों के हितों के प्रतिकूल बैठता है।

सूचना है कि केंद्र सरकार राज्यों को कहा है कि वे अपने स्तर पर सौर ऊर्जा के लिए निविदा आमंत्रित करने के काम को तेज करे ताकि लक्ष्य को हासिल किया जा सके। बताते चलें कि वर्ष 2017-18 में सरकार की तरफ से 6750 मेगावाट क्षमता के लिए निविदाएं मंगवाई गई थी जबकि 5000 मेगावाट के लिए सफलतापूर्वक बोली लगी थी।


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