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दुनिया की पहली महिला इंजीनियर का BirthDay आज, होना पड़ा था लिंग भेदभाव का शिकार

एलिसा की सफलता की राह इतनी आसान भी नहीं थी। शिक्षा से लेकर करियर बनाने तक में उन्‍हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

By Arti YadavEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 09:28 AM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 09:28 AM (IST)
दुनिया की पहली महिला इंजीनियर का BirthDay आज, होना पड़ा था लिंग भेदभाव का शिकार
दुनिया की पहली महिला इंजीनियर का BirthDay आज, होना पड़ा था लिंग भेदभाव का शिकार

नई दिल्ली, जेएनएन। दुनिया की पहली महिला इंजीनियर एलिसा लेओनिडा जमफिरेसको की आज 131 वीं जयंती है। इस मौके पर गूगल ने डूडल बना कर उन्हें श्रंद्धाजलि अर्पित की है। एलिसा जनरल असोसिएशन ऑफ रोमानियन इंजिनियर्स (एजीआईआर) की पहली महिला सदस्य थीं और जिअॉलॉजीकल इंस्टिट्यूट ऑफ रोमानिया के कई प्रयोगशालाओं का नेतृत्व किया। एलिसा का जन्म 10 नवंबर, 1887 को रोमानिया के गलाटी शहर में हुआ था। एलिसा की सफलता की राह इतनी आसान भी नहीं थी। शिक्षा से लेकर करियर बनाने तक में उन्‍हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने रोमानिया के प्राकृतिक संसाधनों का अध्ययन किया और पुरुषों के वर्चस्व वाले मैदान में अपना अलग मुकाम बनाया।

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एलिसा ने बुचारेस्ट स्थित सेंट्रल स्कूल ऑफ गर्ल्स से अच्छे नंबरों के साथ हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी, लेकिन जब उन्होंने स्कूल ऑफ हाइवेज ऐंड ब्रिजेज, बुचारेस्ट में हायर स्टडीज के लिए आवेदन किया, तो उन्हें भेदभाव का शिकार होना पड़ा और लड़की होने के कारण उनका आवेदन रद कर दिया गया। इसके बाद एलिसा ने जर्मनी की रॉयल टेक्निकल एकेडमी में एडमिशन के लिए अप्लाई किया, जहां साल 1909 में उनका आवेदन स्वीकार कर लिया गया। हालांकि यहां भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार संस्थान के प्रमुख ने उनसे कहा, 'बेहतर होता कि आप चर्च, बच्चे और रसोई पर फोकस करतीं।' एलिसा ने लेकिन हार नहीं मानी और अपने इंजीनियर बनने के अपने सपने को पूरा किया।

तीन साल बाद यानी 1912 में उन्होंने इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की और यूरोप की पहली महिला इंजीनियरों में से एक बन गईं। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने बुचारेस्ट स्थित जिअॉलॉजीकल इंस्टिट्यूट में बतौर असिस्टेंट काम करना शुरू कर दिया। पहले विश्व युद्ध के दौरान उनकी मुलाकात कॉन्सटैंटिन जमिफरसको से हुई और यह मुलाकात प्यार में बदल गई। बाद में दोनों ने शादी कर ली और उनको दो बेटियां हुईं।

उन्होंने पीटर मॉस स्कूल ऑफ गर्ल्स के साथ-साथ स्कूल ऑफ इलेक्ट्रिशंस और मकैनिक्स, बुचारेस्ट में फिजिक्स और केमिस्ट्री पढ़ाया। अपने लैब के प्रमुख के तौर पर उन्होंने मिनरल्स और अन्य चीजों के अध्ययन के लिए नए तरीके एवं तकनीक का सहारा लिया। उनको ऐसे समर्पित इंजिनियर के तौर पर जाना जाता है जो सुबह से लेकर शाम तक काम करती थीं। 25 नवंबर 1973 में रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में आखिरी सांस ली थी। रोमानियाई सरकार ने उनके योगदान को सम्‍मान देते हुए वर्ष 1993 में राजधानी बुखारेस्‍ट की एक स्‍ट्रीट का नाम उनके नाम पर रखा।


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