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छत्तीसगढ़ः बस्तर के माटी कोर्ट में देवता होते हैं न्यायाधीश, पुजारी सुनाते हैं फैसला

बस्तर के गांवों में ऐसी अदालतें लगती हैं, जहां देवी-देवता न्यायाधीश के स्वरूप में विराजमान होते हैं और देवता के प्रतिनिधि के तौर पर पुजारी मामलों में फैसले सुनाते हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 03:05 PM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 03:05 PM (IST)
छत्तीसगढ़ः बस्तर के माटी कोर्ट में देवता होते हैं न्यायाधीश, पुजारी सुनाते हैं फैसला
छत्तीसगढ़ः बस्तर के माटी कोर्ट में देवता होते हैं न्यायाधीश, पुजारी सुनाते हैं फैसला

कोण्डागांव, पूनम मानिकपुरी। देश की न्याय व्यवस्था में सिविल कोर्ट, जिला अदालत, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की संरचना है। किसी भी मामले में न्याय के लिए देश का हर एक नागरिक इस लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा रखता है। इस व्यवस्था से परे छत्तीसगढ़ के बस्तर के कई गांवों में ऐसी अदालतें लगती हैं, जहां देवी-देवता न्यायाधीश के स्वरूप में विराजमान होते हैं। उनके सामने पक्षकार अपनी बात रखते हैं और देवता के प्रतिनिधि के तौर पर पुजारी मामलों में फैसले सुनाते हैं। यहां देवताओं के भय से लोग झूठ बोलने से डरते हैं और लोगों का भरोसा है कि देवता के इस मंदिर में उन्हें निष्पक्ष न्याय मिलता है।

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सदियों से चली आ रही है यह न्याय व्यवस्था

बस्तर अंचल में निवासरत लोगों का सदियों से चली आ रही देवता की इस न्याय व्यवस्था पर अटूट भरोसा है। लोग यहां न्याय के लिए आते हैं और फैसले को पूरी श्रद्धा के साथ स्वीकार भी करते हैं। यहां के प्रत्येक गांव में यह अदालत स्थित है। जिसे ग्रामीण स्थानीय बोली में माटी कोर्ट, देव कोर्ट, बूढ़ा कोर्ट, भीमा कोर्ट जैसे नाम से पुकारते हैं।

न्यायपालिका की तरह इसमें भी अपराधी को सजा और वादी को न्याय मिलता है। यहां न्यायाधीश के रूप में देवी शक्तियां विद्यमान रहती है। गांव के किसी व्यक्ति या परिवार में अनबन, झगड़े या किसी अनहोनी होने पर सर्वप्रथम व्यक्ति या परिवार गांव में स्थित इन्हीं कोर्ट में अपील करता है। पुजारी देवी शक्तियों को साक्षी मानकर न्याय करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट की तरह है माटी कोर्ट

जिले के सामपुर निवासी माटी गायता निर्गत मरकाम (72 वर्ष) ने बताया कि प्रत्येक गांव में अलग-अलग कोर्ट होता है। प्रत्येक कोर्ट का अलग-अलग कार्य होता है। जिनमें से माटी कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट की तरह मुख्य कोर्ट होता है। माटी कोर्ट प्रत्येक गांव में होता है। पुराने समय में जब गांवों की बसाहट यहां शुरू हुई थी उस वक्त जो परिवार गांव में सबसे पहले रहने आए थे उन्होंने गांव की मिट्टी की पूजा की। इस गांव की मिट्टी का नाम उनके गोत्र के नाम पर पड़ा और उस मिट्टी के लिये उस गांव में पुजारी नियुक्त किए गए, जिन्हें गायता कहते हैं। हर गांव में माटी कोर्ट और एक गायता का होते हैं।

माटी कोर्ट के कानून के डर से अपराध करने से बचते हैं ग्रामीण

माटी कोर्ट गांव के निवासियों में किसी प्रकार की अनबन, झगड़े, अंतर जाति विवाह विवाद से जुड़े मामलों में अमीर-गरीब सबको दैविय शक्तियों द्वारा संचालित माटी कोर्ट में गांव के कानून का सामना करना पड़ता है। गांव के कानून से बचने के लिए अधिकांश लोग अपराध कारित करने से घबराते हैं। गांव के कानून का उल्लंघन करने वालों को कई बार गांव के पवित्र देवी स्थलों में ना जाने की सजा भी भुगतनी पड़ती है।

माटी देवता को साक्षी मानकर होता है न्याय

ग्रामीण इस तरह की घटनाओं को गांव की मिट्टी के लिए अपवित्र या अशुभ मानते हैं। पीड़ित परिवार द्वारा जानकारी देने पर गांव में बैठक आयोजित होती है। जिसमें ग्राम प्रमुख, माटी गायता, पुजारी व गांव के बुजुर्ग मिलकर इस समस्या के समाधान का रास्ता तलाशते हैं। इसके बाद गांव की माटी कोर्ट में माटी देवता को साक्षी मानकर दोनों पक्ष को आमने-सामने रखकर न्याय होता है।

अपराध सिद्ध होने पर अपराधी को दंडित किया जाता है। अपराधी को दंड स्वरूप पूजा हेतु नारियल, पैसे और कहीं-कहीं सुअर की बली चढ़ाने जैसी सजा मिलती है। 'माटी किरीया" को ग्रामीण बहुत ही मुश्किल कसम मानते है। किसी भी कीमत पर वे 'माटी किरीया"कसम खाना नहीं चाहते।

कोर्ट की छत्रछाया में होता है वनों का संरक्षण

माटी कोर्ट के परिसर में 50 डिसमिल से लेकर 2 एकड़ तक फैले हुए सघन वृक्षों का जंगल होता है। जहां गांव के माटी देवता स्थापित हुए हैं। वर्ष में एक बार धान बुवाई से पूर्व प्रत्येक गांव में 'माटी तिहार" हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन ग्रामीण मिट्टी की पूजा-अर्चना करते हैं। गांव में स्थित अलग-अलग कोर्ट में अलग-अलग देवी देवताऐं स्थापित होने के चलते यहां के वृक्षों को ग्रामीण नहीं काटते जिससे वनों का संरक्षण भी होता है।


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