साल 2500 तक बहुत बदल जाएगी धरती, वैज्ञानिकों ने किया आगाह, भारत हो जाएगा बेहद गर्म
मौजूदा वक्त में हमारी धरती जलवायु परिवर्तन के चलते तेजी से बदल रही है। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि यदि हम समय रहते नहीं चेते और उचित कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2500 तक धरती काफी बदल जाएगी। पढ़ें यह रिपोर्ट...
वाशिंगटन, एएनआइ। मौजूदा वक्त में हमारी धरती कई चुनौतियों का सामना कर रही है। इसमें जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या है। इसके पीछे मानवीय गतिविधियां भी जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि धरती तेजी से बदल रही है। यदि समय रहते नहीं चेते और उचित कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2500 तक हमारी धरती काफी बदल जाएगी। यह चिंता अंतरराष्ट्रीय विज्ञानियों के एक दल ने जताई है। अध्ययन के आधार पर उन्होंने यह सलाह दी है कि वर्ष 2100 तक जलवायु अनुमान को नहीं रोका जाना चाहिए जब तक कि कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन में उल्लेखनीय रूप से गिरावट नहीं आती है।
भारत हो जाएगा बेहद गर्म
वैज्ञानिकों ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि ग्लोबल वार्मिग यूं ही जारी रहती है तो वर्ष 2500 तक अमेजन बंजर, अमेरिका का मध्य पश्चिमी क्षेत्र ट्रापिकल (ऊष्णकटिबंधीय) और भारत बेहद गर्म हो जाएगा। ग्लोबल चेंज बायोलाजी नामक जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन भविष्य की ऐसी धरती के बारे में बताता है जो बिल्कुल अलग होगी।
...ताकि सुरक्षित रहें पीढ़ियां
मैकगिल विश्र्वविद्यालय में प्रोफेसर एलेना बेनेट की देखरेख में पोस्टडाक्टरल शोधकर्ता क्रिस्टोफर लियोन के मुताबिक, हमें उस पृथ्वी की कल्पना करने की जरूरत है, जिस पर हमारे बच्चे और पोते-पोतियां रहेंगे। साथ ही हमें यह भी देखना होगा कि किस प्रकार हम उसे रहने योग्य बनाए रखने में अपना योगदान दे सकते हैं।
दुनिया में होंगे बड़े बदलाव
एलेना के मुताबिक यदि हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहते हैं और कार्बन उत्सर्जन बढ़ता रहता है तो दुनिया में कई जगह नाटकीय रूप से बदलाव देखने को मिलेंगे। नए अध्ययन में हमने वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता के आधार पर 2500 की स्थितियों को अनुमान लगाया है। यानी ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता निम्न, मध्यम या उच्च होने की स्थिति में धरती कैसी होगी इसके बारे में अनुमान लगाया गया है।
ये दिख सकते हैं बदलाव
शोधकर्ताओं के मुताबिक यदि हम पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने में असफल रहते हैं और वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस से अधिक की बढ़ोतरी होती है तो हमें कई बदलाव देखने को मिल सकते हैं। मसलन, सब्जियों व अन्य फसलों के लिए उपयुक्त क्षेत्र ध्रुवों की ओर बढ़ सकता है। साथ की कुछ फसलों के लिए उपयुक्त क्षेत्र में कमी भी आ सकती है। अमेजन बेसिन जैसे पारिस्थितिक तंत्र से समृद्ध क्षेत्र बंजर हो सकते हैं।
सागरों का जलस्तर बढ़ेगा
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि अत्यधिक आबादी वाले ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मनुष्यों के लिए हीट स्ट्रेस घातक स्तर पर पहुंच सकता है। वहीं शोधकर्ताओं ने इस बात की भी आशंका जताई है कि यदि ग्लोबल वार्मिग अपना और गंभीर असर दिखाती है और तापमान में अधिक वृद्धि होती है तो सागरों का जलस्तर बढ़ेगा।
2100 के बाद की स्थितियों पर भी नजर रखने की जरूरत
शोधकर्ताओं के दल का कहना है कि वैज्ञानिक अनुसंधान पर आधारित कई रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के दूरगामी प्रभावों के बारे में बताती हैं। जैसे कि वे 2100 तक ग्रीनहाउस गैसों, तापमान और समुद्र स्तर में वृद्धि को लेकर हमें सचेत करती हैं, लेकिन ये रिपोर्ट 2100 के बाद क्या स्थितियां होंगी, उसके बारे में नहीं बताती हैं। यदि हमें जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में उचित कदम उठाने हैं तो शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को 2100 के बाद की स्थितियों को भी मस्तिष्क में रखना होगा।
कदम उठाने की दरकार
लियोन के मुताबिक, पेरिस समझौता... संयुक्त राष्ट्र और जलवायु परिवर्तन की वैज्ञानिक मूल्यांकन रिपोर्ट पर आंतरिक सरकारी पैनल... हमें दिखाते हैं कि हमें अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2100 से पहले क्या करने की आवश्यकता है और यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो क्या हो सकता है। हालांकि यह बेंचमार्क जिसका उपयोग 30 वर्षों से अधिक समय से किया जा रहा है वह अदूरदर्शी है।
यह सलाह दी
शोधकर्ताओं ने सलाह दी है कि जलवायु अनुमान और नीतियां 2100 तक नहीं रुकनी चाहिए क्योंकि इसकी पूरी आशंका है कि जलवायु परिवर्तन का असर उसके बाद के वर्षों में और अधिक देखने को मिलेगा। साथ ही शोधकर्ताओं ने कहा है कि धरती को बचाने के लिए पेरिस समझौते के लक्ष्य के प्रति एकजुटता के साथ ध्यान केंद्रित करना चाहिए।