Move to Jagran APP

फादर्स डे की पूर्व संध्या पर तोहफा, बाबुल के अंगना चहकी लाडो

इसे अद्भुत संयोग ही कहेंगे कि 14 साल पहले जो लाडो विक्षिप्त होकर अपने घर से बहुत दूर चली गई थी, आज फिर अपने बाबुल के आंगन में चहक रही है। फादर्स डे की पूर्व संध्या पर किसी भी पिता के लिए भला इससे नायाब तोहफा और क्या हो सकता है। पिता-पुत्री के विछोह व मिलन की यह कहानी वर्ष 2000 में शुरू हुई। उत्तराखंड के

By Edited By: Published: Sun, 15 Jun 2014 08:42 AM (IST)Updated: Sun, 15 Jun 2014 09:42 AM (IST)
फादर्स डे की पूर्व संध्या पर तोहफा, बाबुल के अंगना चहकी लाडो

संगरुर, [सचिन धनजस]। इसे अद्भुत संयोग ही कहेंगे कि 14 साल पहले जो लाडो विक्षिप्त होकर अपने घर से बहुत दूर चली गई थी, आज फिर अपने बाबुल के आंगन में चहक रही है। फादर्स डे की पूर्व संध्या पर किसी भी पिता के लिए भला इससे नायाब तोहफा और क्या हो सकता है।

loksabha election banner

पिता-पुत्री के विछोह व मिलन की यह कहानी वर्ष 2000 में शुरू हुई। उत्तराखंड के टिहरी जिले के मात गांव के ओमप्रकाश की बेटी राजेश्वरी मानसिक रूप से विक्षिप्त होकर घर से निकल पड़ी। तब वह 15 साल की थी। इस अवस्था में वह उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा को मिली। उन्होंने उसका घर तलाशने की कोशिश की तो पता नहीं लग पाया। बहुगुणा का संपर्क अमृतसर स्थित पिंगलवाड़ा (अनाथ आश्रम) के संचालकों से था। उन्होंने लड़की को वहां भिजवा दिया। राजेश्वरी 1 जुलाई 2000 को पिंगलवाड़ा में दाखिल हुई। 6 जनवरी 2003 को पिंगलवाड़ा की संगरूर ब्रांच खुलने पर उसे संगरूर शिफ्ट कर दिया गया।

साल दर साल बीतते गए। संगरूर में ही उसे 11 साल का अरसा हो गया। इस बीच लड़की की हालत में कोई तब्दीली नहीं आई और वह संगरूर पिंगलवाड़ा को ही अपना आशियाना समझने लगी। हालांकि डॉक्टर अपनी कोशिशों में जुटे थे और उन्हें उम्मीद थी कि एक दिन ये कोशिशें जरूर रंग लाएंगी। हुआ भी ऐसे ही। मानसिक रोगों के माहिर डॉ. त्रिलोचन सिंह चीमा व डॉ. सुरिंदर वोहरा के प्रयासों से राजेश्वरी ठीक होकर अपनी सामान्य जिंदगी में लौट आई।

करीब 15 दिन पहले लड़की को भूला-बिसरा सब याद आ गया और उसने अपने परिवार तथा घर का पता बताया। पिंगलवाड़ा चेरिटेबल सोसायटी ने लड़की के बताए पते पर संपर्क किया। सौभाग्य से इतने वर्ष बाद भी उसके पिता ओम प्रकाश उस पते पर मिल गए। 14 वर्ष पहले बिछड़ी बेटी की जिंदा और सकुशल होने की खबर मिली तो दौड़े-दौड़े संगरूर के पिंगलवाड़ा पहुंचे। सामने किशोरी से पूरी जवान हो चुकी बेटी को देखा तो आंखें छलक आईं। भावपूर्ण मिलन के इन क्षणों के साक्षी बने अन्य लोगों के नयन भी भला कैसे सूखे रह पाते। वे भी आंसुओं में डूब गए। पिंगलवाड़ा के मैनेजर सहित सभी की जेबों से रुमाल बाहर निकल आए। बार-बार आंसू पोंछते और फिर जेबों में चले जाते।

ओम प्रकाश को वर्षो बाद बिछड़ी बेटी मिली थी तो हृदय पिंगलवाड़ा सोसायटी के प्रति कृताज्ञता से भरा था। बोले-हम तो उम्मीद ही खो चुके थे। पिंगलवाड़ा सोसायटी का यह अहसान तो ताउम्र नहीं भूलूंगा। फिर बेटी का हाथ थामा और चल पड़े राजेश्वरी को लेकर वापस उन पहाड़ों की तरफ, जहां से गंगा निकलती है मैदानों की तरफ, पर लौटकर नहीं जाती है। शायद पहली बार गंगा लौटकर जा रही थी वापस अपने घर।

जाते वक्त राजेश्वरी के दिल में भी एक हूक थी। उस घर से जुदा होने की, जिसमें 11 साल तक वह जीती रही एक बेटी की तरह। आंखें उसकी भी नम हो चलीं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.