कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसान संगठनों के नेताओं में गहरी होती जा रही अविश्वास की खाई
तीन कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसान संगठनों के नेताओं के बीच अविश्वास की खाई और गहरी होती जा रही है। 26 जनवरी को दिल्ली में उपद्रव के बाद संयुक्त किसान मोर्चे की सात सदस्यीय कोर कमेटी के नेता लगभग नेपथ्य में चले गए हैं।
बिजेंद्र बंसल, नई दिल्ली। तीन कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसान संगठनों के नेताओं के बीच अविश्वास की खाई और गहरी होती जा रही है। 26 जनवरी को दिल्ली में उपद्रव के बाद संयुक्त किसान मोर्चे की सात सदस्यीय कोर कमेटी के नेता लगभग नेपथ्य में चले गए हैं, जबकि राकेश टिकैत, जो कोर कमेटी में थे भी नहीं, उनके दो बूंद आंसुओं ने उन्हें नायक बना दिया। अब सिंघु बार्डर और टीकरी र्बाडर दोनों धरनास्थलों पर हरियाणा के लोग जो टिकैत के समर्थक हैं प्रभावी हैं, जबकि 26 जनवरी से पहले पंजाब के लोग प्रभावी थे। गाजीपुर बार्डर पर तो पहले से टिकैत समर्थक प्रमुख भूमिका में थे।
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष ने की राकेश टिकैत पर टिप्पणी
कोर कमेटी में शामिल हरियाणा में सक्रिय भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने राकेश टिकैत पर टिप्पणी भी कर दी। जब उसकी वीडियो क्लिप वायरल हुई तो उन्होंने वीडियो क्लिप को फेक बता दिया, लेकिन चेहरा उनका, आवाज उनकी, अंदाजे बयां उनका, ये प्रमाणित कर रहे थे कि वीडियोक्लिप उन्हीं की है।
दूरियां नजदीकियों में नहीं बदल पा रहीं
इसके पहले दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के तुरंत बाद पंजाब के किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने हरियाणा के आंदोलनकारियों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने जाट आंदोलन की तरह किसान आंदोलन भी फेल करने का प्रयास किया। हालांकि राजेवाल ने भी अपने इस बयान पर खेद व्यक्त किया था। लेकिन तीर कमान से और बात जुबान से निकाल जाते हैं तो वापस नहीं आते। खेद व्यक्त करने के बाद भी राजेवाल को हरियाणा के लोग अब गंभीरता से नहीं ले रहे हैं तो चढूनी और टिकैत के बीच पनपीं दूरियां नजदीकियों में नहीं बदल पा रही हैं।
विश्वसनीयता का संकट बढ़ा
एक अन्य प्रकरण ने भी विश्वसनीयता का संकट बढ़ाया। किसान संगठनों के नेताओं ने 26 जनवरी की परेड से पहले 25 जनवरी को जम्मू कश्मीर के दो नेताओं तनवीर अहमद डार और इम्तियाज अहमद को 28 जनवरी तक सिंघु बार्डर पर अलग-थलग कर रोक लिया। इन दोनों को सिंघु बार्डर से तब मुक्त किया गया जब उन्होंने अपने पैतृक जिला हंदवाड़ा से जम्मू कश्मीर पुलिस से चरित्र प्रमाण पत्र मंगवाकर पेश किया।
अविश्वास पनपने के प्रमुख कारण
-केंद्र सरकार से बातचीत करने के लिए जो चालीस संगठनों के नेता अधिकृत किए गए उनमें अकेले पंजाब के 31 संगठन थे। इससे अन्य प्रदेशों के नेता भीतर ही भीतर नाखुश थे, हालांकि मुखर नही हुए।
-टीकरी बार्डर पर उमर खालिद और शरजील इमाम सहित कई विवादित लोगों की रिहाई के पोस्टर लगाए गए। इस संबंध में जब भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसी मांग किसान संगठनों की नहीं है। लेकिन वामपंथी किसान संगठनों ने कहा कि यह हमारी मांगों में सातवें नंबर पर शामिल है।
-सिंघु बार्डर पर भिंडरावाले के चित्रों और खालिस्तान समर्थकों से भी बहुत से किसान नेता क्षुब्ध थे, पर कुछ कहते नहीं थे।
-नरेश टिकैत ने केंद्र सरकार से होने वाली वार्ताओं को लेकर दो तीन वामपंथी विचारों वाले नेताओं पर निशाना साधा था। कहा था कि बात बन जाती है, लेकिन दो तीन नेता ऐसे हैं जो बात बिगाड़ देते हैं। यह बात केंद्रीय कृषि मंत्री भी कह चुके हैं।
-किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने दिल्ली में संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में हिस्सा लेने के बजाय कांग्रेस व गैर भाजपा विपक्ष के नेताओं की बैठक की अध्यक्षता की। इससे नाराज मोर्चा की छह सदस्यीय कमेटी में चढूनी के खिलाफ जांच कमेटी गठित की गई। इससे चढूनी चिढ़ गए। हन्नान मुल्ला मार्क्सवादी पार्टी के एमपी रहे हैं। पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं। योगेंद्र यादव की अपनी पार्टी है तो केवल चढ़ूनी को राजनीतिक नेताओं के संबंध के आधार पर क्यों निशाना बनाया गया। चढ़ूनी समर्थक सवाल उठाने लगे।
- राकेश टिकैत हरियाणा के विभिन्न जिलों में महापंचायत कर रहे हैं। इन पंचायतों में उन्हें समर्थन भी मिल रहा है। टिकैत ने जब हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी के खिलाफ कुरुक्षेत्र में पंचायत की तो इससे चढूनी यह कहकर अलग रहे कि उनके कार्यक्रम पहले से ही तय थे। लेकिन चढूनी इस दौरान सिंघु बार्डर पर बैठे रहे।
-हरियाणा में टिकैत की महापंचायतों के मद्देनजर चढूनी ने अब संयुक्त किसान मोर्चा से चंदे का हिसाब मांग लिया है, यह अन्य नेताओं को नागवार गुजर रहा है।