Gandhi Jayanti 2020: महात्मा गांधी का जीवन ही एक संदेश, संकल्प, शक्ति और संयम के अद्भुत मेल
Gandhi Jayanti 2020 2 अक्टूबर को हर साल भारत के महापुरुष महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi) की जयंती मनाई जाती है। गांधी की बात करें तो उनका पूरा जीवन की एक संदेश रहा है। इन संदेशों में उनके संकल्प शक्ति और आत्मसंयम की कहानियां हैं। जानिए ऐसी ही कुछ कहानियां।
नई दिल्ली, जेएनएन। महात्मा गांधी कहते थे, उनका जीवन ही संदेश है। उनके जीवन के कुछ प्रसंगों के बहाने हम जान और समझ सकते हैं महात्मा की संकल्प शक्ति और आत्मसंयम को..
प्रकृति पर सबका समान अधिकार
इलाहाबाद की अपनी छ: यात्रओं के दौरान बापू पांच बार आनंद भवन में ही ठहरे थे। एक बार वहां भोजन के बाद जब पंडित जवाहरलाल नेहरू उनके हाथ धुलवा रहे थे, तब किसी ने पीछे से गांधी जी को पुकारा और उन्हें संबोधित करके कुछ कहने लगा। गांधी जी ने पीछे मुड़कर देखा भी और उस सज्जन से बातें भी करने लगे। इसी बीच नेहरू जी उनके हाथों पर पानी गिराते रहे।
जब तक बापू की बातचीत चलती रही, नेहरू जी लगातार उनके हाथों पर पानी उड़ेलते रहे। अपनी बात खत्म करके महात्मा ने कहा, ‘जवाहर लाल, तुमने पानी भी बर्बाद किया और देखो, मेरे हाथ भी ठीक से नहीं धुल पाए।’ नेहरू जी ने जवाब दिया, ‘गांधी जी, आप कतई परेशान न हों, यह वर्धा नहीं, इलाहाबाद है और यहां गंगा और यमुना दोनों बहती हैं।’
‘जरूर, जवाहर लाल, पर ये गंगा और यमुना आपके और मेरे लिए नहीं, ये पूरे विश्व के लिए हैं, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों के लिए भी हैं’, गांधी जी का उत्तर था। ऐसी थी गांधी जी की दृष्टि।
आत्मसंयम के नायाब उदाहरण
गांधी चाय के शौकीन हुआ करते थे और एक दिन उनके एक मित्र ने उनसे कहा कि चाय तो उत्तेजक पदार्थ है और इसका टैनिन शरीर के लिए अच्छी चीज नहीं, तो फिर वे क्यों इसे लेते हैं? गांधी जी ने बिना देरी किए उसी क्षण से चाय पीना छोड़ दिया। एक दूसरा प्रसंग अमेरिकी लेखक लुई फिशर की गांधी जी पर लिखी जीवनी से है। इसके अनुसार, मई 1942 की प्रचंड गर्मी में वह गांधी जी के साथ उनके सेवाग्राम आश्रम में ठहरे थे।
फिशर ने उनके साथ बगैर नमक का खाना खाया और जब उन्हें थोड़ी परेशानी हुई तो गांधी जी ने उनसे कहा कि वे चाहे तो उसमें नींबू मिला सकते हैं, पर खाने का स्वाद मर जाएगा। इस पर फिशर ने मजाक में उनसे कहा, गांधी जी, आप इतने अहिंसक हैं कि स्वाद को भी मारना नहीं चाहते! फिशर की किताब ‘द लाइफ ऑफ महात्मा’ पर ही रिचर्ड एटनबरो गांधी पर अपनी मशहूर फिल्म बनाने के लिए प्रेरित हुए थे।
गांधी जी जब 21 दिन के उपवास पर होते थे, तो अंग्रेज शासक हैरत में पड़ जाते और इस बात की जांच के लिए विशेषज्ञों को बुलवाया जाता था कि आखिर एक बेहद दुबला-पतला सा दिखने वाला कोई शाकाहारी इंसान भला 21 दिन तक बगैर भोजन के कैसे रह सकता है!
जब बापू ने वास्तुकार हरमन को संयम सिखा दिया
यहूदी वास्तुकार हरमन केलेनबाख दक्षिण अफ्रीका में 1903 से 1914 के बीच गांधी जी के संपर्क में थे और इस बीच गांधी जी के सान्निध्य में रहते हुए हरमन की जीवन शैली में आमूल चूल बदलाव आया। हरमन बहुत शौकीन इंसान थे और तब के समय में उनका हर महीने का खर्च था करीब 1200 रुपये। गांधी जी से मित्रता के बाद उनका खर्च घट कर करीब 120 रुपये प्रति माह हो गया! ऐसा था महात्मा की संगत का असर!