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Mission Gaganyaan: किसी भी आपात स्थिति में यात्रियों को बचाने की होगी सुविधा, भारत के लिए होगा 'लैंडमार्क'

भारत के गगनयान की सबसे बड़ी खासियत ये है कि रॉकेट के लॉन्‍च होने और दूसरी स्‍टेज तक पहुंचने तक यदि कोई आपात स्थिति हुई तो यात्रियों को सुरक्षित निकाला जा सकेगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 28 Dec 2018 06:40 PM (IST)Updated: Sat, 29 Dec 2018 07:50 AM (IST)
Mission Gaganyaan: किसी भी आपात स्थिति में यात्रियों को बचाने की होगी सुविधा, भारत के लिए होगा 'लैंडमार्क'
Mission Gaganyaan: किसी भी आपात स्थिति में यात्रियों को बचाने की होगी सुविधा, भारत के लिए होगा 'लैंडमार्क'

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। भारत जब अपनी आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा होगा तब दूसरी तरफ हम अंतरिक्ष में एक और मील का पत्‍थर स्‍थापित कर लेंगे। वर्ष 2022 में भारत ने गगनयान के जरिए तीन अंतरिक्षयात्रियों को भेजने का ऐलान कर दिया है। इस पूरे प्रोजेक्‍ट पर करीब दस हजार करोड़ रुपये तक खर्च होंगे। मिशन गगनयान का ऐलान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी वर्ष 15 अगस्‍त को किया था। आपको यहां पर ये भी बता दें कि अब तक तीन भारतीय अंतरिक्ष में जा चुके हैं। इसमें 1984 में राकेश शर्मा सोवियत रूस की मदद से अंतरिक्ष में गए थे। इसके अलावा भारत की कल्‍पना चावला और सुनीता विलियम ने भी भारत का नाम इस क्षेत्र में रोशन किया है। 

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भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश होगा। अब तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही अंतरिक्ष में अपना मानवयुक्त यान भेजने में सफलता पाई है। इसरो की योजना के मुताबिक, 7 टन भार, 7 मीटर ऊंचे और करीब 4 मीटर व्यास केगोलाई वाले गगनयान को जीएसएलवी ( एमके-3) राकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा। प्रक्षेपित करने के 16 मिनट में यह कक्षा में पहुंच जाएगा। इसको धरती की सतह से 300-400 किलोमीटर की दूरी वाले कक्षा में स्थापित किया जाएगा। भारत अपने अंतरिक्ष यात्रियों को 'व्योमनट्स' नाम देगा क्योंकि संस्कृत में 'व्योम' का अर्थ अंतरिक्ष होता है।

3.7 टन वजनी गगनयान करीब एक सप्‍ताह तक अंतरिक्ष में रह सकेगा। यह काफी कुछ रूसी सुयोज कैप्‍सूल की ही तरह होगा। इसमें दो लिक्विड प्रोपेलेंट इंजन होंगे। इसके लिए इसरो जीएसएलवी-3 का इस्‍तेमाल करेगा। इसमें लाइफ सपोर्ट सिस्‍टम के अलावा कई दूसरे कंट्रोल सिस्‍टम भी होंगे। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि आपात स्थिति में यात्रियों के बचाव को देखते हुए रॉकेट के लॉन्‍च होने के बाद पहली और दूसरी स्‍टेज पर बाहर निकलने की भी सुविधा होगी। रॉकेट के लॉन्‍च होने के करीब 16 मिनट बाद इस कैप्‍सूल को धरती की कक्षा से करीब 400 किमी ऊपर स्‍थापित किया जाएगा।   

थर्मल शील्ड से तैयार इस स्पेस कैप्सूल में तीन अंतरिक्ष यात्री पांच से सात दिन धरती से 400 किमी दूर कक्षा में रह सकेंगे। वहां वे माइक्रोग्रैविटी पर अध्ययन करेंगे। यह कैप्सूल हर 90 मिनट पर धरती का एक चक्कर लगाएगा। इससे अंतरिक्षयात्री सूर्यास्त और सूर्योदय का दीदार कर सकेंगे। तीनों अंतरिक्षयात्री हर चौबीस घंटे में भारत को अंतरिक्ष से दो बार देख सकेंगे। इसकी मदद से अंतरिक्षयात्री धरती पर वापस आएंगे। माना जा रहा है कि यह कैप्‍सूल पानी पर उतारा जाएगा। वापस लौटते समय जब यह कैप्‍सूल धरती के वायुमंडल में प्रवेश करेगा तो इसमें घर्षण से बढ़े तापमान को इसमें लगी थर्मल शील्‍ड अंदर बैठे यात्रियों तक नहीं पहुंचने देगी। यह शील्‍ड सुनिश्चित करेगी कि कैप्‍सूल के अंदर का तापमान इस दौरान 25 डिग्री सेल्यिस ही रहे। गगनयान अभियान पर भेजे जाने वाले यात्रियों के खास स्‍पेस सूट का प्रोटोटाइप भी सामने आ चुका है। इस स्‍पेस सूट में एक ऑक्सीजन सिलेंडर फिट होगा जो अंतरिक्ष में यात्रियों को 1 घंटे तक ऑक्सीजन उपलब्ध कराएगा। यह स्‍पेससूट इन्‍हें रेडिएशन से भी बचाएगा। इस स्‍पेससूट में आपात स्थिति के दौरान यात्री की जान बचाने की दूसरी चीजें भी उपलब्‍ध होंगी। यह स्‍पेससूट अंतरराष्‍ट्रीय मानको के तहत बनाए गए नारंगी रंग का होगा।    

डॉक्टर वी आर ललिताम्बिका को अंतरिक्ष कार्यक्रम गगनयान की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस अभियान में 10,000 करोड़ रुपए की लागत आने की बात कही जा रही है। डॉक्टर ललिताम्बिका अनुभवी कंट्रोल सिस्टम इंजीनियर हैं। वो लगभग तीन दशकों से इसरो से जुड़ी हुई हैं। 56 वर्षीय डॉक्टर ललिताम्बिका की पढाई -लिखाई केरल में हुई है। वो दो बच्चो की मां हैं। काम के प्रति उनकी लगन और कुशलता को देखते हुए ही उन्हें इस काम के लिए चुना गया है। उन्होंने सभी भारतीय रॉकेट्स पोलर सैटेलाइट लॉन्च वाहन (पीएसएलवी), जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च वाहन (जीएसएलवी) और स्वदेशी अंतरिक्ष शटल पर काम किया है। ललिताम्बिका इसके पहले तिरूवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में बतौर उप निदेशक के रूप में भी कार्य कर चुकी हैं।

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