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DATA STORY: भारत समेत दुनियाभर में ताजे पानी की मछलियों पर मंडरा रहा है संकट

रिपोर्ट के अनुसार नदियों और वेटलैंड का गंदा होना सिंचाई के लिए अधिक पानी का प्रयोग बिना शोधित वेस्ट पानी को नदियों में प्रवाहित करना क्लाइमेट चैंज आदि भी इसके लिए दोषी हैं। 1970 से प्रवासी फ्रेशवाटर मछलियों की आबादी में 76 फीसत की कमी आई है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Wed, 03 Mar 2021 08:27 AM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 02:57 PM (IST)
DATA STORY: भारत समेत दुनियाभर में ताजे पानी की मछलियों पर मंडरा रहा है संकट
द वर्ल्डस फॉरगॉटन फिशेज की हाल में आई रिपोर्ट ताजे पानी की मछलियों पर आई विपत्ति की दास्तां बताती है।

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। नदियां, झीलें और वेटलैंड पृथ्वी के सबसे अधिक जैव-विविधता वाले क्षेत्र होते हैं। वे प्लेनेट की कुल सतह के एक प्रतिशत से भी कम हिस्से को कवर करते हैं, पर वे एक-चौथाई से अधिक कशेरूकी प्रजातियों के घर हैं। ये दुनियाभर की आधी मछलियों की प्रजातियों का आशियाना हैं। पर इन ताजे पानी की मछलियों के अस्तित्व पर अब संकट बढ़ रहा है। द वर्ल्डस फॉरगॉटन फिशेज की हाल में आई रिपोर्ट ताजे पानी की मछलियों पर आई विपत्ति की दास्तां बताती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत सहित दुनियाभर में ताजे पानी की हर तीसरी मछली पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।

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रिपोर्ट के अनुसार, नदियों और वेटलैंड का गंदा होना, सिंचाई के लिए अधिक पानी का प्रयोग, बिना शोधित वेस्ट पानी को नदियों में प्रवाहित करना, क्लाइमेट चैंज आदि भी इसके लिए दोषी हैं। 1970 से प्रवासी फ्रेशवाटर मछलियों की आबादी में 76 फीसत की कमी आई है। फेशवाटर मेगा-फिशेज (30 किलोग्राम से अधिक वजन वाली) में 94 प्रतिशत की कमी आई है।

भारत में ऐसा है हाल

भारत के गंगा नदी बेसिन को ही देखें तो यहां रहने वाली आधी से अधिक आबादी गरीबी का शिकार है। यहां की बड़ी आबादी पोषण के लिए इन मछलियों पर ही निर्भर है। लेकिन पिछले 70 वर्षों में इस नदी पर बढ़ते दबाव के चलते यहां की मछलियों की आबादी में काफी कमी आई है। इसमें सबसे ज्यादा कमी हिल्सा में देखी गई है। वहां फरक्का बांध के निर्माण के बाद इन मछलियों पर व्यापक असर पड़ा है। 43 फीसदी मीठे पानी की मछलियां उन 50 कम आय वाले देशों में पकड़ी जाती हैं, जो पहले ही खाद्य सुरक्षा का संकट झेल रहे हैं।

16 देशों में ही पकड़ी गईं दो-तिहाई मछलियां

2018 के आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ 16 देशों से 80 फीसदी मछली पकड़ी गई। इनमें से दो-तिहाई एशिया से थी। इनमें भारत, चीन, बांग्लादेश, म्यांमार, कंबोडिया और इंडोनेशिया थे। वहीं अफ्रीकी देशों से 25 फीसदी मछली पकड़ी गई। इनमें युगांडा, नाइजीरिया, तंजानिया, मिस्र और मालावी प्रमुख देश थे। इंटरनेशनल फिशरीज इंस्टीट्यूट और एफएओ की रिपोर्ट के अनुसार, 50 फीसद से अधिक ग्लोबल फ्रेशवाटर फिश सात रिवर बेसिन से पकड़ी गई थी। ये मैकांग, नील, यांगेज, इराब्दी, ब्रह्मपुत्र, अमेजन और गंगा का बेसिन था।

इतने लोगों को मिलता है रोजगार

फ्रेशवाटर फिशरीज से दुनियाभर में 60 मिलियन लोगों को रोजगार मिलता है, जिसमें से आधी से अधिक महिलाएं हैं। दुनियाभर के करोड़ों लोग अपने भोजन और जीविका के लिए इन मीठे पानी की मछलियों पर ही निर्भर करते हैं। दुनिया के सबसे कमजोर और पिछड़े तबके की एक बड़ी आबादी इन्हीं पर निर्भर है। भारत के गंगा रिवर बेसिन में तकरीबन आधी आबादी प्रोटीन के मुख्य स्रोत के लिए फ्रेशवाटर फिश पर ही निर्भर होती है।

फ्रेशवाटर फिश को लेकर दुनिया में होते हैं फेस्टिवल

दुनियाभर के कुछ देशों में फ्रेशवाटर फिश को लेकर फेस्टिवल का आयोजन होता है। इंग्लैंड में ईल फेस्टिवल का आयोजन होता है। इसमें यूरोपियन ईल फिश के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाया जाता है। इसमें इस बात के बारे में भी बताया जाता है कि जब ईल फिशिंग शहर का मुख्य उद्योग था। वहीं न्यूजीलैंड में ईल खान-पान और आय के साथ-साथ धार्मिक प्रतीक भी मानी जाती थी। कंबोडिया में इसे आदिवासी नेशनल वाटर फेस्टिवल के तौर पर मनाते हैं।

तीसरी शताब्दी में भारतीय शासक अशोक ने मीठे पानी की शार्क और ईल सहित अन्य मछलियों को संरक्षित कर दिया था। आज से करीब 1200 वर्ष पहले भारत में इन मछलियों के लिए पहला मंदिर और अभयारण्य स्थापित किया गया था। आज भी खतरे में पड़ी मछली प्रजाति हिमालयन गोल्डन महाशीर को भारत और भूटान के स्थानीय समुदायों द्वारा पूजी जाती है। गंगा के किनारे बने मंदिरों में आज भी ये मछलियां संरक्षित हैं। यहां आज भी श्रद्धालु इन्हें चावल खिलाते हैं। 2008 में माशीर मछली के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से माशीर ट्रस्ट का गठन किया गया।

रिपोर्ट में दिए गए सुझाव

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि हमें इस बात को समझने की आवश्यकता है कि मौजूदा समय में 18,075 फेशवाटर फिश की प्रजातियां हैं। इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि यह हमारी प्रकृति और हमारे लिए कितनी अहम है। हमें यह समझना होगा कि इनका समाज, अर्थव्यवस्था और इकोसिस्टम के लिए कितना योगदान है। इसके लिए इमरजेंसी प्लान बनाने के साथ-साथ उसे लागू करने की भी जरुरत है। सरकार, बिजनेस घरानों, शहर और समुदाय को इस बारे में एकजुट होकर बोलने की आवश्यकता है, ताकि इस खतरे को टाला जा सके।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के कार्यकारी निदेशक डॉ जॉन हट्टन कहते हैं कि हमें इसके महत्व को समझना होगा। करोड़ों लोग अपनी आजीविका और खाने के लिए फिश पर निर्भर है। फ्रेशवाटर फिश इकोसिस्टम की सेहत के लिए भी काफी जरूरी है। इसके लिए यह मल्टीबिलियन इंडस्ट्री भी चलाती है। यह चिंता का विषय है कि फ्रेशवाटर फिश बड़े संकट में है। सभी इस बात को जानते हैं कि प्रदूषण, खराब तरीके से हाइड्रोपावर का प्रबंधन, सैंड माइनिंग, क्लाइमेट चेंज आदि इसके बड़े कारण है। हम सबको मिलकर इस पर लगाम लगानी होगी और फ्रेशवाटर फिश को बचाना होगा। 


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