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पूर्व सीजेआई जस्टिस गोगोई ने कहा- अयोध्या केस का फैसला सुनाना चुनौतीपूर्ण रहा

माला दीक्षित की पुस्तक अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम को न्याय की संस्मरण यात्रा कहा जा सकता है जो कि कानून के विद्यार्थियों के लिए रिसर्च में काम आएगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 28 Aug 2020 08:24 PM (IST)Updated: Fri, 28 Aug 2020 10:26 PM (IST)
पूर्व सीजेआई जस्टिस गोगोई ने कहा- अयोध्या केस का फैसला सुनाना चुनौतीपूर्ण रहा
पूर्व सीजेआई जस्टिस गोगोई ने कहा- अयोध्या केस का फैसला सुनाना चुनौतीपूर्ण रहा

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। राम जन्मभूमि मामले में फैसला सुनाने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ की अध्यक्षता करने वाले भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा है कि इस केस में फैसला सुनाना चुनौतीपूर्ण काम था। जस्टिस गोगोई ने यह बात पत्रकार माला दीक्षित की पुस्तक 'अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम' (सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन सुनवाई के अनछुए पहलुओं की आंखों देखी दास्तान) पर वर्चुअल परिचर्चा में भेजे अपने संदेश में कही।

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पुस्तक 'अयोध्या से अदालत तक भगवान श्रीराम' पर हुई परिचर्चा

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की पहल पर आयोजित इस परिचर्चा में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस.आर. सिंह, अयोध्या में जन्मभूमि परिसर की खुदाई में शामिल रहे भारतीय पुरातत्व सर्वे के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बी.आर.मणि, जाने-माने पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, न्यास के अध्यक्ष रामबहादुर राय, और वरिष्ठ पत्रकार एन.के. सिंह ने अपने विचार रखे।

जस्टिस गोगोई ने कहा- अंतिम फैसले तक पहुचना एक चुनौतीपूर्ण काम था

जस्टिस गोगोई ने अपने संदेश में कहा कि अंतिम फैसले तक पहुचना कई कारणों से एक चुनौतीपूर्ण काम था। 40 दिन तक निरंतर चली सुनवाई में प्रख्यात वकीलों का बेंच को दिया गया सहयोग अभूतपूर्व था।

जस्टिस गोगोई ने कहा- माला दीक्षित की पुस्तक सभी घटनाओं का वर्णन करती है  

जस्टिस गोगोई ने अपने संदेश में कहा कि पुस्तक सभी घटनाओं का एक परिप्रेक्ष्य के साथ वर्णन करती है, जो मुझे यकीन है कि पाठकों को दिलचस्प लगेगा।

जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने कहा- माला दीक्षित की पुस्तक को न्याय की संस्मरण यात्रा कहा जा सकता है

जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने परिचर्चा में कहा कि आमतौर पर लोगों को बहुत बड़ी वेदना रहती है कि अदालतों में बहुत समय लगता है। इस मामले में भी समय लगा, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने तत्परता दिखाई और निर्णय दिया तो सभी ने इसे सराहा। मेरी समझ से निर्णय तक पहुंचने तक क्या-क्या हुआ ये इस पुस्तक में शायद पहली बार बताया गया है। इस पुस्तक को न्याय की संस्मरण यात्रा कहा जा सकता है जो कि कानून के विद्यार्थियों के लिए रिसर्च में काम आएगी।

जस्टिस सिंह ने कहा- पुस्तक को पढ़ने से पता चलेगा कि अदालतों में देर क्यों होती है

जस्टिस एस.आर. सिंह ने कहा कि भगवान को भी न्याय पाने के लिए 70 साल का समय लग गया तो आम आदमी का क्या कहना। उन्होंने कहा, जब मैं वकील था तब मैंने जो केस दायर किए थे, वे अब भी चल रहे थे। इस पुस्तक को पढ़ने से आपको पता चलेगा कि अदालतों में देर क्यों होती है।

पुस्तक कहती है कि जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट संकट मोचक की भूमिका निभा सकती है

वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने कहा कि पुस्तक यह बताती है कि जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट संकट मोचक की भूमिका में भी आ सकता है।


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