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विदेश मंत्री एस जयशंकर बोले, भारत में जापानी कंपनियों की संख्या बढ़ी, कई प्रोजेक्ट्स में आई काफी तेजी

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि कई तरीकों से भारत और जापान ने हिंद-प्रशांत के क्षेत्र में नैरेटिव को आकार देने की कोशिश की है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 07:09 PM (IST)Updated: Fri, 18 Sep 2020 07:09 PM (IST)
विदेश मंत्री एस जयशंकर बोले, भारत में जापानी कंपनियों की संख्या बढ़ी, कई प्रोजेक्ट्स में आई काफी तेजी
विदेश मंत्री एस जयशंकर बोले, भारत में जापानी कंपनियों की संख्या बढ़ी, कई प्रोजेक्ट्स में आई काफी तेजी

नई दिल्ली, एएनआइ। भारतीय वाणिज्यिक और उद्योग मंडल परिसंघ-फिक्‍की द्वारा भारत-जापान रिपो‍र्ट जारी करने के अवसर पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वर्चुअल बैठक में हिस्सा लिया। इस दौरान एस जयशंकर ने कहा कि भारत और जापान ने आर्थिक सहयोग में काफी बढ़ोतरी देखी है। जापान से एफडीआइ में बढ़ोतरी हुई है। भारत में जापानी कंपनियों की संख्या बढ़ी है। जापान के साथ प्रोजेक्ट्स में तेजी आई है। इसके साथ ही विदेश मंत्री ने कहा कि भारत के पास हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर विजन है। जापान के पास भी अपना विजन है। कई तरीकों से हम दोनों हिंद-प्रशांत के क्षेत्र में नैरेटिव को आकार देने की कोशिश की है।

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विदेश मंत्री ने कहा कि प्रशांत और हिंद महासागर में जो कुछ होता है उसका असर सभी देशों पर पड़ता है और इसी से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की परिकल्‍पना के महत्‍व और प्रासंगिता का पता चलता है।

फिक्की द्वारा आयोजित भारत जापान रिपोर्ट पर बात करते हुए एस जयशंकर ने कहा कि जापान एकमात्र ऐसा देश है, जिसके साथ हमारी वार्षिक शिखर बैठक के साथ-साथ 2+2 संवाद भी हुए हैं। यह बताता है कि हम दुनिया को कैसे देखते हैं और हम एक दूसरे के हितों को परिभाषित करते हैं।

भारत को होता दिख रहा है फायदा

बता दें कि भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के व्यापारिक समूह बनने से भारतीय निर्यात को बूस्टर डोज मिलने की उम्मीद है। इस व्यापारिक समूह को लेकर भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्रियों के बीच बैठक भी हो चुकी है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस समूह में जल्द ही अमेरिका भी शामिल हो सकता है। इन चार देशों के बीच व्यापारिक समूह बनने से विश्व के सप्लाई चेन में चीन का वर्चस्व भी समाप्त होगा। जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका तीनों ही देश चीन से व्यापारिक रिश्ता कम करना चाहते हैं जिसका सीधा फायदा भारत को होता दिख रहा है।


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