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ममता के लिए आसान नहीं जीटीए के चुनाव की राह

जुलाई, 2012 में जीटीए के गठन के समय तय नियमों में चुनाव की प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लेख है।

By Mohit TanwarEdited By: Published: Thu, 29 Jun 2017 07:49 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jun 2017 07:49 PM (IST)
ममता के लिए आसान नहीं जीटीए के चुनाव की राह
ममता के लिए आसान नहीं जीटीए के चुनाव की राह

जागरण संवाददाता, कोलकाता। ममता सरकार के लिए गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) का चुनाव कराना फिलहाल आसान नहीं है। अलग राज्य 'गोरखालैंड' की मांग पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) द्वारा दार्जिलिंग में किए जा रहे उग्र आंदोलन को दबाने की रणनीति के तहत सरकार चाहकर भी चुनाव नहीं करा पाएगी। इसकी वजह सिर्फ गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरुंग की स्वायत्त संस्था का चुनाव नहीं होने देने की चुनौती ही नहीं है, बल्कि संवैधानिक संकट भी है।

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जुलाई, 2012 में जीटीए के गठन के समय तय नियमों में चुनाव की प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लेख है। दार्जिलिंग, कर्सियांग, कलिंपोंग और सिलीगुड़ी के 18 मौजा को जीटीए में शामिल किया गया था। उन क्षेत्रों में चुनाव कराने के लिए राज्य सरकार को एक चुनाव अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी और यह भूमिका दार्जिलिंग के जिलाधिकारी को ही अदा करनी है।

जीटीए के कानून में कलिंपोंग को महकमा अथवा सब-डिवीजन के तौर पर दिखाया गया है जबकि कुछ महीने पहले ही कलिंपोंग को सरकार ने जिला बना दिया है। यहां जीटीए का चुनाव कराने पर जिलाधिकारी की भी चुनाव अधिकारी के तौर पर नियुक्ति करनी पड़ेगी, जबकि जीटीए के कानून में इसका उल्लेख नहीं है।

राज्य सरकार अगर अभी जीटीए का चुनाव कराना चाहेगी तो उसे विधानसभा में जीटीए कानून में संशोधन कर पारित कराना होगा। फिर उसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। अगले महीने राष्ट्रपति चुनाव है। राजग के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति बनने की सूरत में ममता सरकार के लिए उस विधेयक को मंजूर कराना आसान नहीं होगा। उधर, गुरुंग पहले ही कह चुके हैं कि वे जीटीए का चुनाव होने नहीं देंगे।

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