जंगली जानवरों को मारने के लिए पांच राज्यों ने मांगी अनुमति
हिंसक जंगली जानवरों को मारे जाने के मामले में सियासत हो रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि जानवरों को खत्म करने की जगह दूसरे रास्ते अपनाने की जरुरत है।
नई दिल्ली। हिंसक जंगली जानवरों को मारे जाने के संबंध में पांच राज्यों ने केंद्र सरकार को जवाब दिया है। केंद्र सरकार ने इस संबंध में वर्ष 2014 में एक एडवाइजरी जारी की थी। सरकार ने राज्यों से जंगली जानवरों के संबंध में एक प्रस्ताव मांगा था ताकि उन जानवरों को वन्य जीव अधिनियम के तहत हिंसक घोषित किया जा सके। इसका मतलब ये है कि हिंसक जंगली जानवरों को मारे जाने के लिए नियमों में कुछ छूट हासिल हो सकेगी।
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक कुछ राज्यों ने ये नहीं बताया है कि आखिर किस तरह से ये जानवर आम लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यही नहीं राज्यों ने ये भी नहीं बताया है कि जंगली जानवरों को क्यों मारा जाना चाहिए। जानकारों का कहना है कि हिंसक जंगली जानवरों को मारने के मुद्दे पर सही तरीके से चर्चा भी नहीं हुई है। उदाहरण के लिए उत्तराखंड ने किसानों को हो रहे नुकसान के मद्देनजर सूअरों को मारने की इजाजत मांगी थी। लेकिन उत्तराखंड सरकार उन जानवरों के हैबिटेट मैनेजमेंट पर चुप बैठी रही। यही नहीं सरकार ने कहा कि उनके पास जंगली सूअरों की संख्या के मामले में किसी तरह की जानकारी नहीं है। लेकिन फसलों के नुकसान से ये साबित होता है कि जंगली सूअरों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
बिहार में इतनी संख्या में नीलगायों की हत्या देश के लिए कलंक-मेनका गांधी
बिहार में जंगली सूअरों और नील गाय को हिंसक माना गया है। हाल ही में 200 नीलगायों के मारे जाने की खबर के बाद एनिमल राइट एक्टिविस्ट मेनका गांधी और पर्यावरण मंत्रालय आमने-सामने आ गए गए। बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को भेजे जवाब में कहा कि नीलगायों द्वारा पैदा की दिक्कतों के स्थायी समाधान के लिए उनको मारा जाना ही उचित है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश ने अपने सर्वे के द्वारा ये बताया है कि किस तरह से हिंसक जंगली जानवर फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार ने कहा कि ट्रांसेक्ट मेथड के जरिए बंदरों का आंकलन किया गया।
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक गुजरात सरकार ने कहा कि 2015 में नीलगायों की संख्या 41 हजार से बढ़कर करीब 2 लाख हो गयी है। नीलगायों की बढ़ती संख्या पर लगाम लगाने के लिए चारदीवारी और बाड़ेबंदी की गई, लेकिन उससे किसी तरह का फायदा नहीं मिला। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी की गई एडवायजरी में ये कहा गया है कि सिर्फ नीलगायों के मारे जाने से इस समस्या का समाधान नहीं निकलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि हिंसक जानवरों को मारना समस्या का स्थायी हल नहीं है। मांसाहारी जीवों की संख्या में तेजी से हो रही कमी से इस तरह की समस्य़ायें सामने आ रही हैं।
जानवरों के मारे जाने पर मेनका गांधी-जावडेकर आमने-सामने
मशहूर इकोलॉजिस्ट सी आर बाबू का कहना है कि वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। तीन राज्यों को हिंसक जानवरों को मारे जाने की अनुमति दी गयी है। हालांकि इस संबंध में किसी भी राज्य ने कोई वैज्ञानिक आधार नहीं पेश किया है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री के निदेशक दीपक आप्टे का कहना है कि भारतीय समाज और जानवरों के बीच एक सामांजस्य रहा है। जानवरों को मार देना एक अच्छा रास्ता नहीं है। इन हिंसक जानवरों को रोकने के लिए कई रास्ते हैं। लेकिन वे बहुत खर्चीले हैं।