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Decade Ender : जीन एडिटिंग, डिजाइनर बेबी और एचआईवी की दवा समेत पिछले 10 साल की 5 बड़ी वैज्ञानिक खोज, जिन्होंने दुनिया बदल दी

Decade Ender 2010 से 2019 के बीच विज्ञान के क्षेत्र में कई खोज हुईं। इसमें साल 2012 में खोजा गया हिग्स बोसॉन यानी गॉड पार्टिकल और जीन एडिटिंग तकनीक शामिल है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Thu, 02 Jan 2020 12:26 PM (IST)Updated: Thu, 02 Jan 2020 12:40 PM (IST)
Decade Ender : जीन एडिटिंग, डिजाइनर बेबी और एचआईवी की दवा समेत पिछले 10 साल की 5 बड़ी वैज्ञानिक खोज, जिन्होंने दुनिया बदल दी
Decade Ender : जीन एडिटिंग, डिजाइनर बेबी और एचआईवी की दवा समेत पिछले 10 साल की 5 बड़ी वैज्ञानिक खोज, जिन्होंने दुनिया बदल दी

नई दिल्ली, जेएनएन। Decade Ender : यह दशक खत्म हो गया है। 2010 से 2019 के बीच विज्ञान के क्षेत्र में कई ऐसी खोज हुईं, जिन्होंने दुनिया को नई दिशा दी है। इसमें साल 2012 में खोजे गए हिग्स बोसॉन यानी गॉड पार्टिकल और 2010 से 2012 के बीच खोजी गई जीन एडिटिंग तकनीक शामिल हैं। आइये आज हम इस दशक में हुई सबसे बड़ी खोज के बारे में जानते हैं। 

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जीन एडिटिंग और डिजाइनर बेबी

2010 में इस दिशा में परिणाम आने शुरू हुए। जीन एडिटिंग का उद्देश्य जीन थेरेपी है जिससे खराब जीन को निष्क्रिय किया जा सकता है या किसी अच्छे जीन के नष्ट होने की स्थिति में उसमें सुधार किया जा सकता है। इस तकनीक को क्रिस्पर-कैस 9 (Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats-9) जीन एडिटिंग तकनीक कहते हैं। यह DNA को काटने और जोड़ने की अनुमति देती है। किसानों द्वारा भी फसलों को रोग प्रतिरोधी बनाने के लिये क्रिस्पर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। वहीं इस तकनीक से चिकित्सकीय रूप से बीमारी पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय किया जा सकता है। इससे भविष्य में ‘डिज़ाइनर बेबी’ के जन्म की अवधारणा को और बल मिलेगा। यानी बच्चे की आँख, बाल और त्वचा का रंग ठीक वैसा ही होगा, जैसा उसके माता-पिता चाहेंगे। नवंबर 2018 में चीन के वैज्ञानिक हे जिआन्की ने दावा किया था कि उन्होंने सीआरआईएसपीआर-केस9 जीन संशोधन तकनीक का इस्तेमाल कर दो जुड़वां लड़कियों के जीन को संशोधित किया था।

हिग्स बोसॉन यानी गॉड पार्टिकल की खोज

4 जुलाई 2016 को स्विटज़रलैंड में वैज्ञानिकों ने घोषणा की थी कि हिग्स कण की खोज कर ली गई है। हिग्स बोसोन से ही कणों को भार मिलता है। यह सुनने में सामान्य बात लगती है, लेकिन अगर कणों में भार नहीं होता तो फिर तारे नहीं बन सकते थे। आकाशगंगाएं न होतीं और परमाणु भी नहीं होते। लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर नामक इस परियोजना में दस अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं। दुनिया के इस सबसे बड़े महाप्रयोग में 100 से ज़्यादा देशों के करीब 8,000 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया। दावा है कि इस खोज से ब्रह्मांड के जन्म की गुत्थी सुलझ जाएगी। 

हमने ब्रह्मांड को करीब से देखा

इस दशक में कई नए ग्रह और उपग्रहों की खोज हुई। ऐसे ग्रह भी मिले जो बिल्कुल हमारी धरती जैसे हैं और उन पर जीवन संभव है।  2019 में रेडियो टेलीस्कोप से ब्लैक होल की पहली तस्वीर लेने में सफलता हासिल हुई। 2013 में यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने एक स्पेसक्रॉफ्ट गिया (Gaia) लांच किया जो हमारी गैलेक्सी के अरबों तारों की दूरी का डाटा माप रहा है। इस डाटा से हमारी गैलेक्सी की थ्रीडी मूवी बनाई गई है। 

इबोला और एचआईवी की दवा की खोज

2014 से 2016 के बीच इबोला ने पश्चिमी अफ्रीका में काफी कहर बरपाया। पर फॉर्मास्यूटिकल कंपनी मर्क ने 2015 में इबोला वैक्सीन की खोज की जो इस बीमारी से लड़ने में काफी सहायक सिद्ध हुई। वहीं 2011 में एचआईवी की एक एंटीरेट्रोवायरल दवा की खोज हुई जो इस बीमारी को फैलने से रोकती है।

टूटती प्रजनन की सीमाएं

2016 में वैज्ञानिकों ने दावा किया एक ऐसे बच्चे ने जन्म लिया है, जिसमें तीन पैरेट्स के जीन हैं। पिता का स्पर्म, एक मां की कोशिका का न्यूक्लियस और  दूसरी मां का एग (जिसमें न्यूक्लियस नहीं था)।  इस प्रयोग का मकसद था कि मां की बीमारी बच्चे में न जाए। वहीं 2018 के एक शोध मे पता चला कि त्वचा और खून की कोशिकाओं से भी मानव स्पर्म और एग बन सकते हैं। वहीं एक अन्य प्रयोग में साबित हुआ कि एक सेक्स के चूहे भी जीन एडिटिंग से कंसीव हो सकते हैं।  


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