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स्वदेशी लड़ाकू विमानों का पहला दस्ता तीन साल में

भारत के पहले स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू विमान तेजस के 18 विमानों की पहली स्क्वाड्रन (दस्ता) वर्ष 2017-18 तक तैयार हो जाएगी। आपूर्ति में 17 साल की लंबी देर के बाद अब इस विमान की विकास परियोजना अपनी कामयाबी के पहले पड़ाव पर पहुंचने की ओर बढ़ रही है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 17 May 2015 07:56 PM (IST)Updated: Sun, 17 May 2015 09:02 PM (IST)
स्वदेशी लड़ाकू विमानों का पहला दस्ता तीन साल में

नई दिल्ली। भारत के पहले स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू विमान तेजस के 18 विमानों की पहली स्क्वाड्रन (दस्ता) वर्ष 2017-18 तक तैयार हो जाएगी। आपूर्ति में 17 साल की लंबी देर के बाद अब इस विमान की विकास परियोजना अपनी कामयाबी के पहले पड़ाव पर पहुंचने की ओर बढ़ रही है।

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रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक तेजस की पहली स्क्वाड्रन की आपूर्ति वर्ष 2017-18 तक हो जाएगी। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को इसके उत्पादन के लिए शुरुआती परिचालन की मंजूरी दिसंबर, 2013 में मिली थी। तेजस का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास जारी हैं। अभी पूर्ण परिचालन की मंजूरी मिलनी बाकी है, जो दिसंबर, 2015 तक मिल सकती है।

संसद के हालिया सत्र में पेश नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि तेजस के उत्पादन और आपूर्ति में लगातार देरी के कारण वायुसेना को वैकल्पिक कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इन उपायों के तहत सेना अपने मिग-21एस, मिग-29एस, जगुआर और मिराज विमानों के उन्नयन (अपग्रेडिंग) पर 20,037 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। साथ ही सोवियत काल के मिग 21एस विमानों को परिचालन से बाहर करने की अपनी निर्धारित योजना पर पुनर्विचार कर रही है।

हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) की विकास परियोजना की नींव वर्ष 1983 में इस उद्देश्य के साथ रखी गई थी कि 10 वर्ष में इस विमान का विकास कर लिया जाएगा और वर्ष 1994 तक इसे सेना में शामिल किया जाएगा। लेकिन, तेजस को साकार होने में बेशुमार परेशानियों का सामना करना पड़ा। कभी सही डिजाइन का अभाव, डिजाइन में बदलाव की जरूरत, कभी स्वदेशी कावेरी इंजन की अनुपलब्धता तो कभी अन्य परिचालनगत कारणों से तेजस परियोजना वर्षो तक जूझती रही।

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