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अन्नदाता की पूरी कहानी

देश में अन्न की कमी को दूर करने में अहम भूमिका निभाने वाले हरित क्रांति के जनक डॉ. नारमन बोरलाग के भारत आगमन के 50वें वर्ष की स्मृति में वाशिंगटन में भारत और अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनको भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। बोरलाग ने भारत में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन के साथ मिलकर देश को खाद्यान्न के मामले में

By Edited By: Published: Fri, 09 Aug 2013 11:10 AM (IST)Updated: Fri, 09 Aug 2013 11:15 AM (IST)
अन्नदाता की पूरी कहानी

देश में अन्न की कमी को दूर करने में अहम भूमिका निभाने वाले हरित क्रांति के जनक डॉ. नारमन बोरलाग के भारत आगमन के 50वें वर्ष की स्मृति में वाशिंगटन में भारत और अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनको भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। बोरलाग ने भारत में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन के साथ मिलकर देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया। उन्होंने हरित क्रांति के जरिये भूख से लड़ने वाले वैज्ञानिकों और किसानों की एक बड़ी फौज खड़ी कर दी है। नतीजतन आज दुनिया की सात अरब आबादी का पेट भरने के लिए अन्न की कोई कमी नहीं है।

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भारत आगमन

* 1942 में प्लांट पैथोलॉजी और जेनेटिक्स में पीएचडी करने के दो साल बाद बोरलाग कृषि शोध कार्य के लिए मेक्सिको गए। वहां शुरू के एक दशक संघर्ष करने के बाद उन्होंने गेहूं की छोटे आकार, उच्च पैदावार और रोग निरोधक किस्म को विकसित करने में सफलता अर्जित की। इसमें आधुनिक कृषि तकनीक को भी शामिल किया गया।

* गेहूं की उच्च पैदावार किस्मों के बीजों को 1961-62 में परीक्षण के लिए दुनिया के कई केंद्रों में भेजा गया। उनमें से कुछ को मार्च, 1962 में नई दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) में भी बोया गया।

* मई, 1962 में आइएआरआइ के गेहूं कार्यक्रम से जुड़े सदस्य एमएस स्वामीनाथन ने अपने निदेशक डॉ बीपी पाल को पत्र लिखकर बोरलाग को भारत बुलाने का आग्रह किया। उनके खत को कृषि मंत्रालय के पास भेज दिया गया। नतीजतन बोरलाग और उनके सहयोगी डॉक्टर रॉबर्ट ग्लेन एंडरसन यहां पर कृषि अनुसंधान के लिए मार्च, 1963 में आए।

हरित क्रांति

* यहां उन्होंने अपने उन्नत बीजों को परीक्षण के लिए दिल्ली, लुधियाना, पंत नगर, कानपुर, पुणे और इंदौर में बोया।

* 1965 तक सघन परीक्षण के बाद बोरलाग टीम के बीजों को व्यापक पैमाने पर बोया जाने लगा। उस साल गेहूं की पैदावार 12.3 मिलियन टन थी। 1970 तक वह बढ़कर 20.1 मिलियन टन हो गई।

* उनकी तकनीकों का लाभ उठाकर भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में अनाज उत्पादन की दर जनसंख्या वृद्धि की दर से तेज हो गई। 1968 में जीव विज्ञानी पॉल एरलिच ने अपनी प्रसिद्ध किताब 'द पॉपुलेशन बम' में लिखा कि सभी को अन्न देने की मानवता की लड़ाई अब खत्म हो गई। उसी दौरान यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआइडी) के विलियम गौड ने बोरलाग के काम को 'हरित क्रांति' शब्द दिया।

* 1974 तक भारत अनाज उत्पादन के मामले में पूर्ण रूप से निर्भर हो गया था।

नारमन बोरलाग (1914-2009)

अपने काम से करीब एक अरब लोगों को भुखमरी से बचाने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक बोरलाग को 1970 के नोबेल पुरस्कार समेत देश के पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया।

* उन्होंने मेक्सिको, भारत और पाकिस्तान में हरित क्रांति का प्रयोग शुरू किया।

एमएस स्वामीनाथन

देश में गेहूं और धान की उच्च पैदावार किस्मों के कार्यक्रम के अगुआ। बाद में अन्य नई किस्में विकसित करने में सफलता प्राप्त की। प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने इस कृषि विज्ञानी को 20वीं सदी के सबसे प्रभावी एशियाई व्यक्तियों की सूची में शामिल किया।

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