Move to Jagran APP

रांचीः तिरंगे के पोल की वजह से दरकने लगी है पहाड़ी, हटाने की चल रही तैयारी

रांची की आनबान और शान में से एक पहाड़ी मंदिर पर अब सबसे बड़ा तिरंगा नहीं फहरेगा। फ्लैग पोल की वजह से पहाड़ी के अस्‍तित्‍व पर ही खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 24 Nov 2018 09:51 AM (IST)Updated: Sat, 24 Nov 2018 09:55 AM (IST)
रांचीः तिरंगे के पोल की वजह से दरकने लगी है पहाड़ी, हटाने की चल रही तैयारी
रांचीः तिरंगे के पोल की वजह से दरकने लगी है पहाड़ी, हटाने की चल रही तैयारी

जागरण संवाददाता, रांची। रांची की आनबान और शान में से एक पहाड़ी मंदिर पर अब सबसे बड़ा तिरंगा नहीं फहरेगा। फ्लैग पोल की वजह से पहाड़ी के अस्‍तित्‍व पर ही खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है। कभी देश के सबसे बड़े तिरंगा व फ्लैग पोल में से एक रहे इस भारी भरकम पोल की वजह से जगह-जगह से पहाड़ी दरकने लगी है। इसलिए इसे जल्‍द हटाने पर विचार किया जा रहा है।

loksabha election banner

शुक्रवार को डीसी राय महिमापत रे और एसडीओ गरिमा सिंह ने रांची पहाड़ी का निरीक्षण किया। रांची पहाड़ी से फ्लैग पोल व तिरंगे को हटाने का निर्णय एक सुंदर ख्‍वाब का खत्‍म होना है। यह एक ऐसी उपलब्‍धि थी, जिसने रांची को पूरे देश में गौरवान्‍वित होने का मौका दिया था। जब इसका निर्माण पूरा हुआ उस वक्‍त इसे देश का सबसे ऊंचा व सबसे लंबा तिरंगा में से एक माना गया।

ढाई साल पहले फहराया गया था तिरंगा
ढाई साल पहले 23 जनवरी, 2016 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 119वीं जयंती पर पहाड़ी मंदिर पर उस समय देश का सबसे ऊंचा और सबसे बड़ा राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। तत्‍कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने रांची शहर के मध्य में स्थित पहाड़ी मंदिर पर 293 फीट ऊंचे फ्लैग पोल पर उस समय देश का सबसे बड़ा तिरंगा फहराया था। जमीन से यह तिरंगा 493 फीट ऊपर है। 30.17 मीटर लंबा और 20.12 मीटर चौड़ा तिरंगा झंडा फहराया गया था।

रांची पहाड़ी के अस्तित्व पर उठा सवाल
फ्लैग पोल लगाए जाने के बाद रांची पहाड़ी के अस्तित्व पर सवाल उठाया जाने लगा। पिछले मानसून की बारिश व इस वर्ष सावन में रांची पहाड़ी से मिट़़टी व पत्‍थर दरकने की घटना में अचानक तेजी आई। जिसने जिला प्रशासन समेत यहां शहरवासियों की चिंता बढ़ा दी। प्रशासन के अधिकारियों ने भी जायजा लिया। पर्यावरण विद नीतीश प्रियदर्शी ने कहा कि विशेषज्ञों की टीम द्वारा की गई जांच में पता चला है कि फ्लैग पोल लगाए जाने से रांची पहाड़ी को काफी नुकसान पहुंचा है।

मेकॉन ने किया था सहयोग
उस समय मेकॉन की टीम की ओर से फ्लैग पोल लगाने को लेकर सहयोग किया गया था। इस क्रम में कई बार पहाड़ी मंदिर के संरक्षण को लेकर सवाल उठाया जाता रहा। मौजूदा समय में इस फ्लैग पोल का रखरखाव भी सही तरीके से नहीं किया जा सका।

जेद्दा की तर्ज पर बनी थी योजना
बताते चलें कि जेद्दा स्थित अब्दुल्लाह स्क्वायर चौक पर सउदी अरब का राष्ट्रीय झंडा लगाया गया है। उसी तर्ज पर रांची पहाड़ी पर झंडा लगाने की योजना बनाई गई थी। पूरी प्लानिंग मेकॉन की थी। देश के प्रसिद्ध इंजीनियर जेके झा को पहाड़ी मंदिर के लिए प्लान तैयार करने को कहा गया था। फ्लैग पोल के अलावा बाकी काम उर्मिला कंस्ट्रक्शन को दिया गया था।

पोल का नहीं हो रहा था उचित रखरखाव
बाद में फ्लैग पोल का सही तरीके से रखरखाव भी नहीं किया जा सका।जिससे कि तिरंगा चढ़ाई जाने वाली मशीनें भी खराब हो गईं। पोल के आसपास निकले पत्थर और छड़े हमेशा से खतरे का आभास कराती रहती हैं।

फ्लैग पोल के निर्माण को व्‍यवसायी विष्णु अग्रवाल ने दिए थे पैसे
झंडे और फ्लैग पोल के लिए उद्योगपति विष्णु अग्रवाल ने पहाड़ी मंदिर विकास समिति को आर्थिक मदद दी थी।

देश का एकमात्र ऐसा मंदिर जहां स्‍वतंत्रता दिवस के दिन फहराया जाता है तिरंगा
पहाड़ी मंदिर का पुराना नाम टिकीबुरा था। यहां अंग्रेज विद्रोहियों को फांसी देने का करते थे। जब देश आजाद हुआ था, तो रांची के ही स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्रदास ने पहला तिरंगा झंडा फहराया था। यहां हर स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है। यह देश का पहला ऐसा मंदिर है जहां स्‍वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराया जाता है। पहाड़ी मंदिर में एक पत्थर लगा हुआ है, जिसमें 14 और 15 अगस्त, 1947 की आधी रात को देश की आजादी का मैसेज लिखा हुआ है। झंडा तो अब भी फहरेगा लेकिन देश के सबसे विशाल झंडे में से एक फ्लैग पोल से नहीं फहरेगा।

दरक गई थीं मंदिर की दीवारें
पिछले वर्ष मानसून की बारिश व इस साल सावन की शुरुआत में ही मंदिर के आसपास पत्थर ढहने और मंदिरों की दीवारों में दरारें पडऩे की बात सामने आयी थी। फ्लैग पोल लगाएजाने के क्रम में रांचीपहाड़ी के आसपास भी कई पेड़ काट डाले गए थे। जिससे मिट्टी कटाव के तेज होने की बात कही जा रही है।

रांची पहाड़ी पर किसी तरह का निर्माण कार्य खतरनाक है। अगर इसे बंद नहीं किया गया, तो पहाड़ी और मंदिर दोनों ही ढह सकते हैं।
नीतीश प्रियदर्शी, पर्यावरणविद। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.