जलवायु परिवर्तन के चलते आलू उत्पादक राज्यों के किसानों ने केले की खेती का किया तेजी से प्रसार
पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई के पूरे इलाके में गोरखपुर से लेकर बनारस तक केले की खेती जोर पकड़ने लगी है।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन का असर खेती में परंपरागत फसलों पर दिखाई देने लगा है। तापमान बढ़ने से आलू जैसी प्रमुख फसल की उत्पादकता बढ़ाये नहीं बढ़ पा रही है। इन्ही चुनौतियों के चलते आलू उत्पादक राज्यों के किसानों को केला भाने लगा है। क्षेत्रों के किसान वैकल्पिक फसलों की खेती की ओर आकर्षित होने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में केले की खेती का तेजी से प्रसार हुआ है।
जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ाये नहीं बढ़ रही आलू की उत्पादकता
भारत में सालाना चार करोड़ टन से अधिक आलू की पैदावार होती है। इसमें आलू का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में होता है। इन राज्यों में उचित तापमान होने की वजह से आलू की खेती होती है। लेकिन इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू की उत्पादकता फिलहाल औसतन 24 टन प्रति हेक्टेयर है। जबकि वैश्विक स्तर पर आलू की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 65 से 90 टन तक है।
आलू खेती की चुनौतियों के चलते किसानों को भाया केला
बढ़ते तापमान और ठंड पड़ने की अवधि घटने की वजह से आलू की खेती पर विपरीत असर पड़ना शुरु हो चुका है। किसानों ने इसका रास्ता तलाशना शुरु कर दिया है। इसकी जगह केला की खेती को आजमाया जाने लगा है। आलू भंडारण के क्षेत्र में भारत सबसे बड़ा देश है, जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश की भागीदारी 54 फीसद है। कोल्ड स्टोर की क्षमता बहुत अधिक है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के असर से यह क्षेत्र आने वाले दिनों में घाटे का सौदा बन सकता है।
तापमान बढ़ने का असर आलू खेती पर, बढ़ने लगा केले का रकबा
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के उप महानिदेशक डाक्टर आनंद कुमार सिंह ने बताया कि देश के उत्तरी राज्यों में आलू की खेती को उच्च प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन अब यहां के किसान आलू की खेती से हटकर केले की खेती की ओर बढ़ने लगे हैं। केले की खेती का अच्छा भविष्य देखते हुए अकेले पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसका रकबा 90 हजार हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जहां कभी केले की व्यावसायिक खेती नहीं के बराबर ही होती थी।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की मंडियों में केले की आपूर्ति महाराष्ट्र के भुसावल से होती थी। अकेले बनारस की मंडी में रोजाना 80 ट्रक केले की आपूर्ति होती थी, जो अब घटकर 15 से 20 ट्रक रह गई है। बाकी केले की आपूर्ति स्थानीय स्तर पर होती है।
डाक्टर सिंह के मुताबिक पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई के पूरे इलाके में गोरखपुर से लेकर बनारस तक केले की खेती जोर पकड़ने लगी है। नौ महीने में तैयार होने वाले केले की खेती में जहां पानी कम लगता है, वहीं साल के किसी भी महीने में इसकी खेती की जा सकती है। जबकि तापमान बढ़ने से आलू की उत्पादकता घटी है और बहुत सी बीमारियां पकड़ रही हैं।