दक्षिण भारत में तेजी से बंजर हो रही उपजाऊ भूमि
भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में दक्षिण भारत के उपजाऊ क्षेत्रों के बंजर भूमि में परिवर्तित होने के चिंताजनक परिणाम सामने आए हैं।
वास्को-द-गामा (गोवा), आइएसडब्ल्यू। देश भर में एक विस्तृत कृषि क्षेत्र अनुपजाऊ या बंजर भूमि में बदल रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में दक्षिण भारत के उपजाऊ क्षेत्रों के बंजर भूमि में परिवर्तित होने के चिंताजनक परिणाम सामने आए हैं। इस अध्ययन में पाया गया है कि वर्ष 2011 से 2013 के बीच आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में इन राज्यों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का क्रमश: 14.35, 36.24 और 31.40 प्रतिशत भूभाग धरती को बंजर बनाने वाली प्रक्रियाओं से प्रभावित हुआ है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, आंध्रप्रदेश में भूमि को बंजर बनाने में सबसे बड़ा कारण पेड़-पौधों तथा अन्य वनस्पतियों में गिरावट होना है। इसके अलावा, जमीन के बंजर होने में जल के कारण मिट्टी का कटाव और जल भराव जैसी प्रक्रियाएं भी उल्लेखनीय रूप से जिम्मेदार पाई गई हैं। कर्नाटक में भूमि को बंजर बनाने में पानी से मिट्टी का कटाव सबसे अधिक जिम्मेदार पाया गया है। इसके अलावा वनस्पतियों में कमी और लवणीकरण भी इसके लिए जिम्मेदार है।
इस अध्ययन के दौरान रिमोट सेंसिंग से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में बंजर हो रही भूमि की वर्तमान स्थिति दर्शाने वाले मानचित्र तैयार किए गए हैं और इन भूमियों में हुए परिवर्तनों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।
ये हैं कारण
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ. राजेंद्र हेगड़े ने बताया कि प्राकृतिक संसाधनों के खराब प्रबंधन और प्रतिकूल जैव- भौतिक और आर्थिक कारकों के कारण दक्षिणी राज्यों की उपजाऊ भूमि का एक बड़ा हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में बंजर हुआ है। भूमि विशेष का अत्यधिक दोहन, मिट्टी के गुण, कृषि प्रथाएं, औद्योगीकरण, जलवायु और अन्य पर्यावरणीय कारक जमीन को बंजर बनाने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होते हैं।
इन्होंने किया अध्ययन
नागपुर स्थित राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो तथा इसके बंगलुरु केंद्र और अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए भूमि सर्वेक्षणों में ये तथ्य उजागर हुए हैं।
इन पर पड़ता है असर
डॉ. हेगड़े के अनुसार, भूमि के बंजर होने से उसका प्रतिकूल प्रभाव मिट्टी की उर्वरता, स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और आजीविका पर पड़ता है। इसलिए उपजाऊ से अनुपजाऊ भूमि में बदल रहे भूभागों का समय-समय पर मूल्यांकन करना जरूरी है।
इन्हें बनाया गया अध्ययन का आधार
पेड़-पौधों तथा वनस्पतियों में गिरावट, पानी एवं हवा से मिट्टी के कटाव, मिट्टी की लवणता में बढ़ोत्तरी, जलभराव, भूमि का अत्यधिक दोहन, पहले से बंजर चट्टानी मिट्टी युक्त भूमि और विभिन्न के समझौतों के तहत भूमि उपयोग जैसी परिस्थितियों को अध्ययन में आधार बनाया गया है।