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मामा नहीं तो काना मामा ही सही, ऑनलाइन क्‍लासेस का कुछ यही है ताना-बाना

ऑनलाइन क्‍लासेस से छात्रों को केवल ज्ञान तो मिल जाएगा लेकिन दसूरी जानकारी और शिक्षा से वो वंचित ही रह जाएंगे।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 12 Jul 2020 11:43 PM (IST)Updated: Mon, 13 Jul 2020 06:12 AM (IST)
मामा नहीं तो काना मामा ही सही, ऑनलाइन क्‍लासेस का कुछ यही है ताना-बाना
मामा नहीं तो काना मामा ही सही, ऑनलाइन क्‍लासेस का कुछ यही है ताना-बाना

प्रो निरंजन कुमार। कोविड-19 महामारी के दौरान एहतियात के साथ ऑनलाइन एजुकेशन बेहतर विकल्प नजर आ रही है, लेकिन इसपर सवाल भी उठे हैं। दरअसल भारतीय चिंतन परंपरा में शिक्षा के तीन उद्देश्य माने गए हैं- व्यक्तित्व-चरित्र निर्माण, समाज-कल्याण और ज्ञान का विकास। ये लक्ष्य ऑनलाइन शिक्षा में एक सीमा तक ही हासिल हो पाते हैं। परंपरागत कक्षीय शिक्षा में ज्ञान देने के साथ-साथ व्यक्तित्व-चरित्र निर्माण की प्रक्रिया भी अप्रत्यक्ष रूप से चलती रहती है। कक्षीय परिवेश में सहयोग, साझेदारी, सामूहिकता, सह-अस्तित्व एवं सहिष्णुता का भाव छात्रों में विकसित होता है। विभिन्न सामूहिक शिक्षणेत्तर क्रियाकलाप संतुलित व्यक्तित्व-निर्माण की प्रक्रिया को और भी बढ़ाते हैं। ऑनलाइन पद्धति में विद्यार्थी ज्ञान तो हासिल कर लेगा, पर उपरोक्त मानवीयसामाजिक गुणों और सोशल स्किल का उसमें सम्यक विकास नहीं होगा।

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यूट्यूब, व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम के दौर में पहले ही सामाजिक जड़ों से कटते जा रहे बच्चों-युवाओं, खासतौर से स्कूली बच्चों के संतुलित व्यक्तित्व के निर्माण में ऑनलाइन शिक्षा साधक के बजाय बाधक ही बनेगी। शिक्षा का दूसरा उद्देश्य समाज की बेहतरी  पहले लक्ष्य से ही जुड़ा है। जब लोग ही सामूहिकता, सहअस्तित्व एवं सहिष्णुता जैसे सामाजिक गुणों से रहित होंगे तो ऐसा समाज भौतिक रूप से चाहे संपन्न हो जाए, पर उसमें विसंगितयां होंगी और कई सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी। शिक्षा का तीसरा उद्देश्य ज्ञान का विकास भी ऑनलाइन पद्धति में एक सीमा तक ही संभव है। उसमें ‘कागद लेखी’ अर्थात सैद्धांतिक-पुस्तकीय ज्ञान तो मिलेगा, लेकिन ‘आंखन देखी’ व्यावहारिक ज्ञान से अपेक्षाकृत वंचित ही रहेंगे।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और मेडिकल आदि विषयों की पढ़ाई तो प्रयोग- व्यावहारिक जानकारी के बिना न तो मुमकिन होगी और न ही मुकम्मल। यही नहीं, यह भी देखा गया है कि ऑनलाइन पद्धति में एकाग्रता का समय और एकाग्रता की गहनता अपेक्षाकृत कम होती है। ऑनलाइन शिक्षा में परीक्षा को लेकर भी समस्याएं हैं, जिसकी मीडिया में लगातार चर्चा हो रही है। आधुनिक युग में शिक्षा का एक उद्देश्य रोजगार भी है, पर विशुद्ध ऑनलाइन शिक्षा इसमें बहुत कारगर साबित नहीं होगी। आज मल्टीटास्किंग के दौर में कोरे किताबी ज्ञान के बजाय व्यावहारिक ज्ञान व सोशल स्किल को महत्व दिया जाता है, जो ऑनलाइन में थोड़ा कच्चा ही रह जाएगा।

अमेरिका जैसे देश में भी जहां ऑनलाइन से जीवन का हर क्षेत्र संचालित है वहां भी उच्च शिक्षा की बहुत अधिक फीस होने के बावजूद विद्यार्थियों की यही कामना होती है कि वे कक्षीय पढ़ाई करें। हालांकि हार्वर्ड, एमआइटी, स्टैनफोर्ड आदि विश्वविद्यालयों के ऑनलाइन कोर्स प्लेटफॉर्म ‘एडेक्स’, ‘कोर्सेरा’ या ‘यूडेसिटी’ उपलब्ध हैं। फिर, ऑनलाइन शिक्षा को एकदम खारिज कर दिया जाए? जी नहीं! कामधंधे वालों के लिए यह बहुत उपयोगी होगी जिनके लिए नियमित शिक्षा लेना कठिन है। नए किस्म के रोजगार पाने या प्रमोशन आदि में ऑनलाइन शिक्षा मददगार होगी। यही नहीं, परंपरागत कक्षीय शिक्षा वाले छात्रों के लिए एड-ऑन के रूप में विभिन्न देशी-विदेशी ऑनलाइन कोर्स उनके ज्ञान-कौशल में बढ़ोतरी कर सकेंगे।

खासतौर से गरीब और सुदूर इलाकों के छात्रों के लिए जिन्हें समृद्ध पुस्तकालय या अच्छे शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। उनके लिए श्रेष्ठ संस्थानों द्वारा तैयार ऑनलाइन अध्ययन सामग्री वरदान साबित होगी। कोविड-19 के मौजूदा संकट में जबतक हमें कोरोना के साथ जीना है ऑनलाइन शिक्षा के अलावा कोई और चारा भी नहीं। हमारे यहां एक प्रचलित कहावत भी है-नहीं मामा से, मज़बूरी में काना मामा ही सही। लेकिन सामान्य समय में भारत के सम्यक विकास के लिए ऑनलाइन शिक्षा, परंपरागत कक्षीय शिक्षा के सपोर्टिंग टूल के रूप में ही ज्यादा लाभकारी होगी, न कि उसके विकल्प के रूप में।

(लेखक दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर हैं)

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