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साक्षात्कार: अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए बढ़ेगा खर्चः अरुण जेटली

यूपीए की तुलना में एनडीए शासन में विकास दर बेहतर है, इसलिए कांग्रेस सवाल उठा रही है। कांग्रेस ने राजनीतिक कारणों से जीएसटी पर पलटी मारी

By Atul GuptaEdited By: Published: Sun, 22 May 2016 02:54 AM (IST)Updated: Sun, 22 May 2016 08:29 AM (IST)
साक्षात्कार: अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए बढ़ेगा खर्चः अरुण जेटली

शुरुआती दो वर्षो में अर्थव्यवस्था को सुधारों की डोज देने के बाद मोदी सरकार अब विकास दर को ऊपर ले जाने को खर्च बढ़ाने की तैयारी कर रही है। साथ ही राजनीतिक विरोध के चलते संसद में फंसे जीएसटी सहित अन्य विधायी सुधारों को लागू करना भी सरकार की प्राथमिकता में सबसे ऊपर है। महंगाई, कालाधन और सूखे से निपटने को क्या है सरकार की रणनीति? केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दैनिक जागरण के विशेष संवददाता हरीकिशन शर्मा के साथ विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश---

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पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव नतीजों के बाद क्या जीएसटी विधेयक के पारित होने की उम्मीद बंधी है?

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर प्राय: आम राय है। कांग्रेस ने राजनीतिक कारणों से जीएसटी पर पलटी मारी नहीं तो कोई कारण नहीं था कि जो विधेयक कांगे्रस ने बनाया, उसी के खिलाफ वह खड़ी हो जाए। कांग्रेस की छवि अवरोधक व गैर-जिम्मेदाराना पार्टी की बन गयी है। यही रवैया उसने नीट (राष्ट्रीय प्रवेश पात्रता परीक्षा) के मुद्दे पर दिखाया है। सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस के प्रस्ताव पर ही अध्यादेश लाने की आम राय बनी लेकिन अब अध्यादेश के खिलाफ पहला बयान कांग्रेस का ही आया है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि अवरोध की राजनीति को देश अब अस्वीकार कर रहा है। ऐसे में राज्य सभा में अगर सपा या तृणमूल कांग्रेस की संख्या बढ़ती है और कांग्रेस की घटती है तो उसका स्वाभाविक असर यह है कि जीएसटी समर्थकों की संख्या बढ़ रही है। इसमें कोई एनडीए या गैर-एनडीए नहीं है। जीएसटी का मुद्दा कांग्रेस बनाम अन्य का है। कांगे्रस को आम राय माननी चाहिए, अगर वह ऐसा नहीं करती तो जीएसटी पर संसदीय प्रक्रिया चलने दे।

संसदीय प्रक्रिया से आपका क्या आशय है? सरकार जीएसटी विधेयक को सदन में मतदान के लिए रखेगी।आपको भरोसा है यह पारित होगा?

मुझे विश्र्वास है। हम मानें कि जीएसटी आगामी सत्र में आएगा? ऐसी संभावना है।सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों पर सवाल उठ रहे हैं? केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) विश्र्वसनीय संस्था है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) और विश्र्व बैंक इन आंकड़ों को स्वीकार कर रहे हैं। यूपीए की तुलना में एनडीए शासन में विकास दर बेहतर है, इसलिए कांग्रेस सवाल उठा रही है। आधार वर्ष एक अंतराल पर बदलता है। वैसे भी आधार वर्ष बदलकर 2014 नहीं हुआ, इसे 2011-12 किया गया। यूपीए के अंतिम दो वर्षो में भी यही आधार वर्ष और फार्मूला रहा। मान लें कि आधार वर्ष और फार्मूला में बदलाव का असर पड़ा हो तो वह पहले वर्ष पर पड़ेगा न कि बाद के वर्षो पर। जीडीपी में वृद्धि का दूसरा प्रमाण राजस्व में वृद्धि है जो सबके सामने है।आपने कैश-लैस ट्रांजैक्शन को प्रोत्साहन देने की घोषणा की थी, उस पर कितना अमल हुआ?सरकार ने एक समूह बनाया है जो नकदी रहित लेन-देन को प्रोत्साहित करने पर विचार कर रहा है। अभी सरकारी विभाग को कार्ड के जरिए भुगतान पर चार्ज को हटाया गया है। नकदी से चलने वाली इकॉनामी को अगर कार्ड के माध्यम से औपचारिक अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाए तो उससे जीडीपी में वृद्धि होगी और कराधार भी बढ़ेगा जिससे अंतत: कर की दरें भी नीचे आएंगी।

सूखे की समस्या के निदान को सरकार क्या दूरगामी उपाय कर रही है?

जल प्रबंधन और संचय पूरी दुनिया के समक्ष चुनौती हैं। जहां जल अधिक है वहां से जलाभाव वाले क्षेत्र में पानी ले जाने को राज्यों को पहल करनी होगी। इसमें गुजरात, मध्य प्रदेश और अब आंध्र प्रदेश ने तो पहल की है। सरकार सिंचाई और जल प्रबंधन के लिए आवंटन बढ़ाकर राज्यों की मदद करेगी।आने वाले दिनों में सरकार के सुधारों के एजेंडे पर सबसे ऊपर क्या है?फिलहाल सरकार के चार-पांच विधेयक लंबित हैं जिसमंे जीएसटी, कंपनी कानून संशोधन विधेयक, सरफेसी व डीआरटी विधेयक, कैम्पा फंड और बेनामी कानून संशोधन विधेयक प्रमुख हैं। बेनामी कानून में संशोधन से कालेधन पर रोक लगेगी। संसदीय समिति इस पर रिपोर्ट दे चुकी है। कुछ विधेयकों की घोषणा बजट में हुई थी, उनका मसौदा तैयार किया जा रहा है। इनमें एक- बैंकरप्सी ऑफ फाइनेंशियल कंपनीज और दूसरा- पब्लिक कान्ट्रेक्ट्स में विवाद के समाधान से संबंधित है। इस तरह अगले एक साल तक सुधारों के मामले में सरकार के हाथ भरे हुए हैं। इसके अतिरिक्त ज्यादा कानून नहीं होंगे, अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार का जोर खर्च करने पर रहेगा।

किन क्षेत्रों में खर्च होगा? सरकार ग्रामीण विकास, ढांचागत सुविधाएं और बैंकिंग क्षेत्र की दिक्कतें दूर करने पर धनराशि खर्च करेगी। क्या अर्थव्यवस्था बेहतर होगी?

अर्थव्यवस्था की स्थिति कई कारकों से तय होती है। पहला कारक, विश्र्व स्थिति है जिस पर सरकार का नियंत्रण नहीं है और अभी इसमें सुधार नहीं दिखता। दूसरा कारक मानसून है जो मांग को प्रभावित करता है, इसकी संभावना अभी तक सही दिखती है। तीसरा कारक यह है कि क्या हमारी सुधार प्रक्रिया चलती रहेगी? मुझे संभावनाएं ठीक लगती हैं। चौथा कारक, बैंकों की स्थिति और निजी क्षेत्र पर उसका प्रभाव है। बैंकों की स्थिति चुनौतीपूर्ण है। इस तरह चार में से दो कारक सकारात्मक, एक चुनौतीपूर्ण है जबकि वैश्रि्वक स्थिति कठिन लगती है।कच्चे तेल के दाम बढ़ने लगे हैं, सरकार ने क्या तैयारी की है?इस रेंज (मौजूदा स्तर) में रहें तो हमारे लिए ठीक है। बहुत अधिक बढ़ेंगे तो हमें तकलीफ आएगी।

बैंकों के फंसे कर्ज को वसूलने को क्या रणनीति है?

इस बारे में मेरा स्पष्ट मत है कि आप बैंकों का पूंजी आधार बढ़ाएं ताकि उन्हें ताकत मिले। बैंकरप्सी कोड, सरफेसी और डीआरटी कानून के माध्यम से सरकार ने बैंकों को ताकत देने को एक तंत्र भी बनाया है। लेकिन मीडिया, अदालत और संसद में चर्चा के बाद ऐसी स्थिति बन जाती है कि बैंक सेटलमेंट करने से घबराते हैं। उनका हौसला बुलंद करना है ताकि वे बैंकों के हितों मंे ईमानदारी पूर्वक फैसले ले सकें। एक सुझाव यह है कि एक तंत्र बनाया जाए जिससे बैंकों का हौसला बढ़े। बैंक बोर्ड ब्यूरो ने भी ऐसा संकेत दिया है।बैंकों का विलय होने वाला है, रिजर्व बैंक ने तरह-तरह के बैंक लाइसेंस दिए हैं,

आने वाले समय में सरकारी बैंको की भूमिका क्या होगी?

सरकारी बैंकों को प्रतिस्पर्धी बनना होगा। बीमा और बैंकिंग क्षेत्र मंे प्रतिस्पर्धा आ गयी है अब एकाधिकार के माहौल में नहीं प्रतिस्पर्धी वातावरण में काम करना होगा। लेकिन बैंक कर्मचारी विलय का विरोध कर रहे हैं?स्टेट बैंक ने फिलहाल विलय का प्रस्ताव ही किया है। जब विलय होगा तो कर्मचारियों की चिंता को काफी हद तक दूर किया जाएगा। क्या आपको लगता है कि देश को बड़े बैंक की जरूरत है?हमें वैश्रि्वक संस्थान (बैंक) की जरूरत है। बैंकिंग क्षेत्र में इस समय काफी प्रतिस्पर्धा है। राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजटीय प्रबंधन कानून की समीक्षा की जरूरत क्यों पड़ी?इस बार जब बजट का विचार विमर्श चल रहा था तब अर्थशास्ति्रयों के दो मत थे। एक मत यह कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर अडिग रहा जाए जबकि दूसरा मत था कि देश अब पांच-छह प्रतिशत राजकोषीय घाटे के दौर से निकल चुका है। राजकोषीय घाटा दो से तीन प्रतिशत के बीच होने वाला है, इसलिए लक्ष्य तय करने में इतनी कठोरता क्यों बरती जाए। क्यों न एक रेंज रखी जाए। रेंज होने पर किसी क्षेत्र में अगर निजी निवेश में कम होता है तो सरकार निवेश बढ़ा सकेगी।

कर चोरी रोकने को मॉरीशस की तर्ज पर क्या अन्य देशों से संधियों की समीक्षा भी होगी?

चर्चा के बाद इस संबंध मंे निर्णय करेंगे। कोई देश एकतरफा नहीं कर सकता। किसी देश में एक स्थिति होती है कि पैसा कहां से आ रहा है, कितना आ रहा है, वह आपकी मजबूरी है। लेकिन एक दौर ऐसा आता है जब अर्थव्यवस्था में आपका भरोसा बढ़ता है। कहा जा रहा है कि कालेधन पर आपने उदारता बरती है?अघोषित आय को खुलासा करने संबंधी यह योजना कालाधन रखने वालों को माफी नहीं है। जहां 50 प्रतिशत पेनॉल्टी वसूली जा रही है वह एमनेस्टी योजना कैसे हो सकती है? एमनेस्टी मंे तो माफी होती है। सरकार ने एक अवसर दिया है ताकि जितने भी कर संबंधी विवाद हैं वे धीरे-धीरे कम हो सकें।निर्यात में लगातार गिरावट रोकने को सरकार क्या कदम उठा रही है?इसका मुख्य कारण वैश्रि्वक व्यापार मंे गिरावट है। स्थानीय उद्योग खुद को वैश्रि्वक परिस्थितियों के लिए तैयार करें। हमारे पास जो भी तंत्र हैं, हम उनका उपयोग करेंगे। दालों की महंगाई रोकने को सरकार ने क्या कदम उठाया है?सरकार ने दाल का बफर स्टॉक बनाया है। हर साल एमएसपी भी बढ़ाया जा रहा है। हमारे देश में आवश्यकता के मुकाबले 40 से 50 लाख टन दाल का उत्पादन कम होता है। इसलिए हमारे ऊपर वैश्रि्वक कीमतों का प्रभाव पड़ता है।

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