विश्व एंटीबायोटिक्स जागरूकता सप्ताह, 7 लाख मौतों की वजह बन रही ये छोटी सी गलती
एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल दुनिया के लिए बड़ा खतरा बन चुका है। एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस के कारण दुनियाभर में 7 लाख मौत सालाना होती हैं। 2050 तक यह आंकड़ा एक करोड़ तक हो सकता है।
नई दिल्ली [जागरण विशेष]। एंटीबायोटिक दवाओं से आप भलीभांति परिचित होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रोगों को सही करने वाली ये दवा आपको गंभीर परेशानी में भी डाल सकती है। एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल पूरी दुनिया में बड़ा खतरा बनता जा रहा है। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), विश्व एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह मनाता है। 12 से 18 नवंबर 2018 तक चलने वाले इस जागरूकता सप्ताह का मकसद लोगों को एंटीबायोटिक दवाओं के साइड इफेक्ट के प्रति जागरूक करना है।
एक रिपोर्ट के अनुसार एंटी बायोटिक्स अमेरिका के लिए सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में भी एंटीबायोटिक्स दवाओं का गलत इस्तेमाल गंभीर समस्या का रूप लेता जा रहा है। अध्ययनों से पता चला है कि एंटीबायोटिक दवाओं का सही प्रयोग न केवल क्लॉस्ट्रिडियम डिफिसाइल संक्रमण और एंटीबायोटिक प्रतिरोध की दरों को कम करने में मदद करता है, बल्कि इलाज की लागत को कम करने के दौरान रोगी के चिकित्सा परिणामों में भी सुधार कर सकता है।
क्या हैं एंटीबायोटिक दवाएं
WHO के मुताबिक एंटीबायोटिक दवाएं, वायरस संक्रमण को रोकने और इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोध तब होता है, जब इन दवाओं के उपयोग के जवाब में बैक्टीरिया अपना स्वरूप बदल लेता है।
ये है एंटीबायोटिक का खतरा
एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल से बैक्टीरिया प्रतिरोधी बन जाते हैं। ये बैक्टीरिया मनुष्यों और जानवरों को संक्रमित कर सकते हैं। गैर-प्रतिरोधी बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण से उनका इलाज कठिन हो जाता है। एंटीबायोटिक प्रतिरोध, इसके दुरुपयोग और बहुत ज्यादा उपयोग से भी तेज होता है।
दुनिया भर में कम हो रही हैं एंटीबायोटिक
एंटीबायोटिक दवाओं के गलत इस्तेमाल का ही नतीजा है कि ये अब पूरी दुनिया में जीवाणुओं पर बेअसर साबित हो रही हैं। प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर चुके इन जीवाणुओं को निष्क्रिय करने के लिए नई एंटीबायोटिक दवाएं विकसित नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में असरदार एंटीबायोटिक का संकट पैदा हो गया है। यह समस्या इतनी गंभीर है कि पिछले वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस बारे में अलर्ट जारी करना पड़ा था। रिपोर्ट के अनुसार, अभी दुनिया में कुल 51 एंटीबायोटिक दवाओं पर काम चल रहा है। मगर, डब्ल्यूएचओ का मानना है कि इनमें से आठ ही नई हैं, इसलिए इन आठ दवाओं पर ही उम्मीद टिकी है।
एंटीबायोटिक से बढ़ सकता है मौतों का आंकड़ा
WHO ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ पैदा हो रही प्रतिरोधक क्षमता के कारण आने वाले समय में दुनिया भर में होने वाली मौतों की संख्या काफी बढ़ सकती है। एंटीबायोटिक को लेकर एक और समस्या यह है कि एंटीबायोटिक दवाओं को विकसित करने में काफी खर्च होता है। गौरतलब है कि अभी एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस की वजह से दुनियाभर में सात लाख मौतें सालाना होती हैं। कहा जा रहा है कि साल 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर एक करोड़ तक हो सकता है। भारत के बारे में अलग से आंकड़ा नहीं है। लेकिन जिन देशों में एंटीबायोटिक का अंधाधुंध इस्तेमाल होता है, उनमें भारत भी प्रमुख रूप से शामिल है। डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति है। विश्व को इससे निपटने के लिए एकजुट होकर रणनीति बनानी होगी।
1928 में खोजी गई थी पहली एंटीबायोटिक
पहली एंटीबायोटिक, पेनसिलिन की खोज वर्ष 1928 में हुई थी। इसके बाद से अब तक तकरीबन 51 एंटीबायोटिक्स दवाओं की खोज हो चुकी है। इनका 5 से 15 दिन का कोर्स होता है, जिसे पूरा करना जरूरी होता है। कोर्स पूरा न करने पर संक्रामक बीमारी और खतरनाक हो सकती है।
एंटीबायोटिक के लिए WHO के दिशा-निर्देश
WHO ने एंटीबायोटिक दवा के इस्तेमाल के लिए प्रोटोकाल तैयार किया है। इसके अनुसार मरीज के शरीर में बैक्टीरिया संक्रमण की पुष्टि होने के बाद डॉक्टर की सलाह पर ही एंटीबायोटिक लेना चाहिए। बिना जांच के एंटीबायोटिक लेने पर उसके साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं।
भारत में बिना जांच लिखी जाती है एंटीबायोटिक
एंटीबायोटिक के बारे में भारतीय डॉक्टरों का कहना है कि भारत जैसे विकाशील देश में जांच की सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे में अमूमन डॉक्टर अपने अनुभवों के आधार पर ही मरीज के शरीर में संदिग्ध वायरस को मानकर एंटीबायोटिक दवा लिख देते हैं। ऐसे में कई बार मरीजों में इसके साइड इफेक्ट भी दिखने लगते हैं। इसलिए WHO को इसके इस्तेमाल के लिए हस्तक्षेप करना पड़ता है।
एंटीबायोटिक के साथ प्रोबायोटिक्स
- इंफेक्शन, दर्द और मौत के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया को खत्म करने में एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल होता है। इसके कुछ साइड इफेक्ट भी होते हैं। पेट की समस्या इनमें आम है।
- एंटीबायोटिक्स संग प्रोबायोटिक्स लेने से साइड इफेक्ट्स कम हो जाते हैं।
- प्रोबायोटिक्स कुछ साल पहले लॉन्च हुई है। ऐसे में इनका कितना और किस तरह का फायदा या नुकसान होता है, इस पर ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है। ऐसे में लंबे समय तक चलने वाली और ऐसी एंटीबायोटिक्स, जिनसे साइड इफेक्ट होना तय है संग ही प्रोबायोटिक्स ले सकते हैं।
- फिलहाल प्रोबायोटिक्स, कैप्सूल व पेय पदार्थ की फॉर्म में आ रहे हैं।
- दही एक अच्छा प्रोबायोटिक्स है। अगर आप खाने में नियमित रूप से दही का इस्तेमाल करते हैं, तो बहुत अच्छा है।