पुरानी बोतल में नई शराब जैसे हैं चीन के लड़ाकू विमान, डिफेंस एक्सपर्ट नहीं देते हैं तवज्जो
चीन ने भारतीय सीमा के नजदीक एयरफील्ड पर अपनी वायुसेना के स्क्वार्डन की तैनाती की हुई है उनके पास विमान पुरानी पीढ़ी के हैं। लेकिन चीन इनका प्रचार नए की तरह करता है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। राफेल के साथ भारतीय वायुसेना की बढ़ती ताकत के बाद चीन के माथे पर पड़ी शिकन को आसानी से महसूस किया जा सकता है। यूं तो चीन लगातार अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है और उसको आधुनिक कर रहा है। लेकिन जानकार मानते हैं कि उसका ये आधुनिकीकरण जमीनी हकीकत से काफी दूर है। आपको बता दें कि कुछ समय पहले चीन ने अपने लड़ाकू विमान जे-20 को स्वदेशी को स्टील्थ और 5 वीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान बताकर उसका प्रचार प्रसार भारत को डरान के लिए किया था। लेकिन भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी एयर मार्शल अनिल चोपड़ा ऐसा नहीं मानते हैं।
रिटायर्ड एयर मार्शल अनिल चोपड़ा के मुताबिक चीन काफी समय से अपने लड़ाकू विमानों के लिए एक इंजन बनाने की कवायद कर रहा है लेकिन इसमें उसको आज तक सफलता हाथ नहीं लगी है। उनके मुताबिक चीन के लड़ाकू विमानों में रूस के लड़ाकू विमानों का इंजन लगा है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि चीन का वर्तमान में प्रमुख फाइटर जेट जे-10 है। इसको उन्होंने उन्होंने लद्दाख से कुछ दूरी पर मौजूद अपनी एयर फील्ड पर तैनात किया है। ये फाइटर जेट एफ-16 का पुराना वर्जन है। इसके अलावा जो फाइटर जेट चीन ने अब तक अपना स्वदेशी बताकर तैनात किए हैं वो सभी सुखोई-30 की ही नकल हैं। इनमें जे-11, जे-15 और जे-20 शामिल है। इनमें से कोई भी इससे बेहतर नहीं है। कुछ समय पहले चीन के पास सुखोई-35 लड़ाकू विमान आया है। इसकी दो स्क्वार्डन चीन के पास मौजूद हैं। ये भी मिग 230 के बराबर ही गिना जाता है।
आपको बता दें कि कुछ समय पहले जे-20 को अपनी वायु सेना का हिस्सा बनाया है। इसको एक स्टील्थ फाइटर जेट बताया गया है। स्टील्थ फाइटर जेट खुद को दुश्मन से छिपाकर हमला करने की काबलियत रखता है। इनमें वो तकनीक होती है जो दुश्मन के राडार पर इसको नजर नहीं आने देती है और ये अपना काम बखूबी अंजाम देकर वापस लौट आता है। हालांकि पूर्व वायुसेना अधिकारी एयर मार्शल चोपड़ा चीन के इस फाइटर जेट को स्टील्थ मानने से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि चीन ने ये महज खुद के प्रचार और प्रसार के लिए किया है। उनके मुताबिक कहने के लिए ये फाइटर जेट 5वीं पीढ़ी का है लेकिन स्टील्थ के नाम पर वो राफेल के मुकाबले काफी पीछे है। इसमें भी पुराने रूसी लड़ाकू विमानों का ही इंजन लगा है। इसका राडार सिस्टम भी राफेल के मुकाबले पिछड़ा हुआ है। चोपड़ा ये भी मानते हैं कि इसको पूरी तरह से ऑपरेशनल होने के लिए 5-6 वर्ष लग जाएंगे। वहीं यदि राफेल की बात करें तो ये सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, लीबिया समेत कई जगहों पर अपनी काबलियत का लोहा मनवा चुका है। उनके मुताबिक 20 वर्षों के दौरान ये पांच जंग लड़ चुका है। इसका कॉम्बेट एक्सपीरियंस काफी अधिक है। लिहाजा ये कहना गलत नहीं होगा कि ये पुरानी बोतल में नई शराब पेश करने जैसा ही है।
अनिल चोपड़ा का कहना है कि 2021 के अंत तक भारत के पास राफेल के सभी 36 विमान आ जाएंगे जो वायुसेना को जबरदस्त मजबूती प्रदान करेंगे। उन्होंने इस दौरान बताया कि भारतीय वायु सेना की ऑथराइज्ड स्क्वार्डन 42 हैं जबकि वर्तमान में केवल 30 ही मौजूद हैं। ऐसे में उनका ये भी मानना है कि यदि भारत सरकार को राफेल हर लिहाज से बेहतर लगेगा तो आगे भी इसकी खरीद हो सकेगी। उनके मुताबिक भारतीय वायुसेना की आधुनिकता के लिए राफेल का आना बेहद जरूरी था। उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि आने वाले समय में भारतीय वायु सेना की सभी 42 स्क्वार्डन देखी जा सकेंगी।
चीन के साथ मौजूदा तनाव को देखते हुए उन्होंने कहा कि चीन हमेशा से ही करता कुछ है और कहता कुछ है। इसलिए उस पर विश्वास करना सही नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि अब तक लद्दाख के गलवन वैली को लेकर जितनी भी बातचीत हुई है उसमें उन्होंने पीछे जाने की बात कही जरूर है लेकिन उस पर अमल नहीं किया है। जबकि भारत अप्रैल वाली स्थिति वापस चाहता है। ऐसे में हर बार क्रॉस चेक करने की जरूरत होती है। चीन के इस रवैये के चलते देश की जनता में भी ये आम राय बन रही है कि चीन पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
पूर्व एयर मार्शल ने दैनिक जागरण को बताया कि जब से लद्दाख में तनाव बढ़ा है तब से चीन ने अपनी दो डिवीजन वहां पर तैनात की हैं। हालांकि भारत की पहले से ही वहां पर दो डिवीजन तैनात रहती हैं। इसकी वजह ये भी है कि भारत को वहां पर पाकिस्तान और चीन दोनों को ही देखना होता है। लेकिन हाल के तनाव को देखते हुए भारत ने भी अपपनी डिवीजन वहां पर बढ़ा दी हैं।
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