आखिर दुनियाभर में क्यों मनाया जाता है 'वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे'
किसी भी देश में प्रेस की आज़ादी से ही वहां पर इस बात का अांकलन किया जाता है कि वहां पर अभिव्यक्ति की कितनी आज़ादी है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। कहा जाता है कि किसी भी समाज के लिए प्रेस वहां का आइना होता है। हर साल तीन मई को इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। ज़ाहिर तौर पर किसी भी देश में प्रेस की आज़ादी से ही वहां पर इस बात का अकलन किया जाता है कि वहां पर अभिव्यक्ति की कितनी आज़ादी है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की तरफ से 1993 में यह तय किया गया कि प्रेस की आज़ादी के बारे में तीन मई को हर वर्ष दुनिया में इसे विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाया जाए। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का उद्देश्य प्रेस की आज़ादी के महत्व के प्रति जागरुकता फैलाना है।
जनता का आइना
हालांकि प्रेस जहां एक तरफ़ जनता का आइना होता है, वहीं दूसरी ओर प्रेस जनता को गुमराह करने में भी सक्षम होता है इसीलिए प्रेस पर नियंत्रण रखने के लिए हर देश में अपने कुछ नियम और संगठन होते हैं, जो प्रेस को एक दायरे में रहकर काम करते रहने की याद दिलाते हैं। प्रेस की आज़ादी को छीनना भी देश की आज़ादी को छीनने की तरह ही होता है।
सूचना का अधिकार क़ानून
समूचे विश्व में सूचना तक सुलभ पहुंच के बारे में बढ़ती चिंता को देखते हुए 'भारतीय संसद' द्वारा 2005 में पास किया गया 'सूचना का अधिकार क़ानून' बहुत महत्व्पूर्ण हो गया है। इस क़ानून में सरकारी सूचना के लिए नागरिक के अनुरोध का निश्चित समय के अंदर जवाब देना बहुत जरूरी है। इस क़ानून के प्रावधानों के अंतर्गत कोई भी नागरिक सार्वजनिक अधिकरण (सरकारी विभाग या राज्या की व्यनवस्था ) से सूचना के लिए अनुरोध कर सकता है और उसे 30 दिन के अंदर इसका जवाब देना होता है। संसद में 15 जून, 2005 को यह क़ानून पास कर दिया था, जो 13 अक्टूबर, 2005 से पूरी तरह लागू हो गया
चीन और पाकिस्तान में नहीं प्रेस की पूर्ण स्वतंत्रता
चीन, जापान, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णत: आज़ादी नहीं है। यहां की प्रेस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है। इस लिहाज से हमारा भारत उनसे ठीक है। आज मीडिया के किसी भी अंग की बात कर लीजिये, हर जगह दाव-पेंच का असर है। खबर से ज्यादा आज खबर देने वाले का महत्त्व हो चला है। लेख से ज्यादा लेख लिखने वाले का महत्तव हो गया है। पक्षपात होना मीडिया में भी कोई बड़ी बात नहीं है, जो लोग मीडिया से जुड़ते हैं, अधिकांश का उद्देश्य जन जागरूकता फैलाना न होकर अपनी धाक जमाना ही अधिक होता हैं।
'वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे' की शुरुआत
'अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस' मनाने का निर्णय वर्ष 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के 'जन सूचना विभाग' ने मिलकर किया था। इससे पहले नामीबिया में विन्डंहॉक में हुए एक सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया था कि प्रेस की आज़ादी को मुख्य रूप से बहुवाद और जनसंचार की आज़ादी की जरूरत के रूप में देखा जाना चाहिए। तब से हर साल '3 मई' को 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
भारत जैसे दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक ख़बर वाहक का काम करती हैं, जो हर सवेरे हमारी टेबल पर गरमा गर्म खबरें परोसती हैं। यही खबरें हमें दुनिया से जोड़े रखती हैं। आज प्रेस दुनिया में खबरें पहुंचाने का सबसे बेहतरीन माध्यम है।
प्रेस की आज़ादी
'संयुक्त राष्ट्र महासभा' ने भी '3 मई' को 'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वातंत्रता' की घोषणा की थी। यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में 1993 में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। इस दिन के मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लघंनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना है, जैसे- प्रकाशनों की कांट-छांट, उन पर जुर्माना लगाना, प्रकाशन को निलंबित कर देना और बंद कर देना आदि।
इनके अलावा पत्रकारों, संपादकों और प्रकाशकों को परेशान किया जाता है और उन पर हमले भी किये जाते हैं। यह दिन प्रेस की आज़ादी को बढ़ावा देने और इसके लिए सार्थक पहल करने तथा दुनिया भर में प्रेस की आज़ादी की स्थिति का आकलन करने का भी दिन है।
अधिक व्यावहारिक तरीके से कहा जाए, तो प्रेस की आज़ादी या मीडिया की आज़ादी, विभिन्न इलैक्ट्रोनिक माध्यमों और प्रकाशित सामग्री तथा फ़ोटोग्राफ़ वीडियो आदि के जरिए संचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी है। प्रेस की आज़ादी का मुख्य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दख़लंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्य क़ानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आज़ादी की रक्षा जरूरी है।
शार्ली हेब्दो पत्रिका पर हुआ बड़ा हमला
दुनियाभर में कई ऐसे मामले आए जब प्रेस की आवाज़ को कुचलने की कोशिशें की गई। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है फ्रांस की राजधानी पेरिस में व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली हेब्दो’ पर हमला है। सात जनवरी को फांस की पत्रिका शार्ली अब्दो में हजरत मोहम्मद साहब का विवादित कार्टून छापे जाने के विरोध में आतंकियों ने पत्रिका के कार्यालय पर हमला किया था। सैद और शेरीफ कोआची भाइयों का हमला सात से नौ जनवरी 2015 तक चला था। इसे फ्रांस में 9/11 की तरह का हमला कहा जाता है। इस हमले और तीन दिनों तक हुई इससे जुड़ी अन्य घटनाओं में कुल 16 लोगों की मौत हुई थी।
संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन
'अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस' प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, प्रेस की स्वतंत्रता पर बाहरी तत्वों के हमले से बचाव और प्रेस की सेवा करते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है।