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परियोजनाओं को वन्यजीव मंजूरी पर पर्यावरण मंत्रालय ने साफ की स्थिति

मंत्रालय ने राज्यों को पत्र लिखकर साफ किया है कि ऐसी परियोजनाओं को वन्यजीव मंजूरी की जरूरत नहीं जिन्हें पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Wed, 05 Aug 2020 07:38 AM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2020 07:38 AM (IST)
परियोजनाओं को वन्यजीव मंजूरी पर पर्यावरण मंत्रालय ने साफ की स्थिति
परियोजनाओं को वन्यजीव मंजूरी पर पर्यावरण मंत्रालय ने साफ की स्थिति

नई दिल्ली, प्रेट्र। पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर साफ किया है कि ऐसी परियोजनाओं को वन्यजीव मंजूरी की जरूरत नहीं है जिन्हें पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। मंत्रालय का कहना है कि ऐसी परियोजनाओं को पूर्व वन्यजीव मंजूरी आवश्यक है जो राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभ्यारण्य के 10 किमी के दायरे में स्थित हैं और जहां इको-सेंसिटिव जोन अधिसूचित नहीं है, साथ ही जिसे पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता है।

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राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रमुख सचिवों को लिखे पत्र में मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इको-सेंसिटिव जोन के भीतर ऐसी परियोजनाओं को पूर्व वन्यजीव मंजूरी की जरूरत नहीं होगी जो संरक्षित क्षेत्र के बाहर हैं और जिन्हें पर्यावरण मंजूरी की जरूरत नहीं है। इसमें यह भी कहा गया है कि एक संरक्षित क्षेत्र को दूसरे से जोड़ने वाले क्षेत्रों में स्थित परियोजनाओं को नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ (एनबीडब्लूएल) की स्थायी समिति की स्वीकृति जरूरी होगी।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने विभिन्न परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी से जुड़े नियमों के अनुपालन की अनदेखी पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को फटकार लगाई है। ट्रिब्यूनल का कहना है कि पर्यावरण संबंधी नियमों की निगरानी का तंत्र पर्याप्त नहीं है। पर्यावरण मंजूरी की शर्तो का पालन हो रहा है या नहीं, इसकी समय-समय पर निगरानी होनी चाहिए। ऐसा कम से कम तिमाही में एक बार अवश्य होना चाहिए। इस संबंध में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान एनजीटी प्रमुख न्यायमूर्ति एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि निगरानी की व्यवस्था खराब है। 

शर्तें तय करने और उनके अनुपालन के बीच बहुत अंतर है। पीठ ने पर्यावरण मंत्रालय से निगरानी तंत्र की समीक्षा करने और इसे मजबूत करने को कहा। इस दौरान ट्रिब्यूनल ने निगरानी तंत्र मजबूत करने को लेकर विभिन्न प्रस्तावों पर मंत्रालय की ओर से पेश हलफनामे पर भी गौर किया। पीठ ने कहा, 'जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किए बिना, मात्र ऐसे प्रस्ताव दिखाने वाली याचिकाओं को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। मंत्रालय के वकील का कहना है कि हलफनामा दाखिल करने के बाद से कई अर्थपूर्ण कदम उठाए गए हैं, लेकिन इन्हें रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया है। इस तरह के बयान को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अगर सच में कदम उठाए गए हैं, तो सुनवाई के दौरान तो इनकी जानकारी पेश की जा सकती थी। मंत्रालय के इस रवैये पर हमें आपत्ति है।' मामले में अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी।


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