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Engineers Day 2021: विकास का जो रास्ता मोक्षगुंडम विश्‍वेश्‍वरैया ने दिखाया था, भारत उसी पथ पर आगे बढ़ रहा

देश में जिस उत्‍कृष्‍ट बुनियादी ढांचे का निर्माण हो रहा है उसके पथ प्रदर्शक अभियंता शिरोमणि मोक्षगुंडम विश्‍वेश्‍वरैया ही थे। विश्वेश्वरैया ने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण में चीफ इंजीनियर की भूमिका निभाई थी। इस बांध को बनाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब देश में सीमेंट नहीं बनता था।

By TilakrajEdited By: Published: Wed, 15 Sep 2021 10:09 AM (IST)Updated: Wed, 15 Sep 2021 10:09 AM (IST)
Engineers Day 2021: विकास का जो रास्ता मोक्षगुंडम विश्‍वेश्‍वरैया ने दिखाया था, भारत उसी पथ पर आगे बढ़ रहा
15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर में जन्मे विश्वेश्वरैया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में अभियंता दिवस मनाया जाता है

देवेंद्रराज सुथार। भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया एक युगद्रष्टा इंजीनियर थे। 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर में जन्मे विश्वेश्वरैया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में ही अभियंता दिवस मनाया जाता है। अल्पायु में पिता के निधन के कारण उनके परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा, परंतु विश्वेश्वरैया ने अपना परिश्रम जारी रखा। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर मैसूर रियासत ने उन्हें छात्रवृत्ति दी। वर्ष 1883 में उन्होंने एलसीई और एफसीई परीक्षाओं में पहला स्थान हासिल किया, जिन्हें वर्तमान में बीई डिग्री के बराबर माना जाता है। उनकी योग्यता को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें नासिक जिले में सहायक अभियंता के रूप में नियुक्त किया।

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एक इंजीनियर यानी अभियंता के रूप में विश्वेश्वरैया को पुणे के खड़गवासला बांध की ऊंचाई बढ़ाए बिना ही बांधों के जल भंडारण स्तर में वृद्धि करने के लिए ख्याति मिली। विश्वेश्वरैया ने स्वचालित जलद्वारों का उपयोग खड़गवासला बांध पर ही किया था। वर्ष 1909 में उन्हें मैसूर राज्य का मुख्य अभियंता नियुक्त किया गया।

विश्वेश्वरैया ने कृष्णराज सागर बांध के निर्माण में चीफ इंजीनियर की भूमिका निभाई थी। इस बांध को बनाना इतना आसान नहीं था, क्योंकि तब देश में सीमेंट नहीं बनता था। फिर भी विश्वेश्वरैया ने हार नहीं मानी। उन्होंने इंजीनियरों के साथ मिलकर मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। यह बांध कर्नाटक राज्य में स्थित है। उस समय यह एशिया के सबसे बड़े बांध के रूप में प्रतिष्ठित हुआ था, जिसकी लंबाई 2621 मीटर और ऊंचाई 39 मीटर रही। आज कृष्णराज सागर बांध से निकली 45 किलोमीटर लंबी विश्वेश्वरैया नहर एवं अन्य कई नहरों से कर्नाटक के तमाम क्षेत्रों की करीब 1.25 लाख एकड़ भूमि में सिंचाई होती है।

विद्युत उत्पादन के साथ ही मैसुरु और बेंगलुरु जैसे शहरों को पेयजल आपूर्ति करने वाला कृष्णराज सागर बांध विश्वेश्वरैया के तकनीकी कौशल और प्रशासनिक योजना की सफलता का प्रमाण है। दक्षिणी बेंगलुरु में जयनगर की उत्कृष्ट डिजाइन के लिए भी वह विख्यात हुए। आज चाहे चिनाब नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा ब्रिज हो या अटल टनल से लेकर बार्डर के नजदीकी इलाकों या फिर देश में सुगम राजमार्गों का जाल, ऐसे उत्कृष्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के साथ देश के विकास का जो रास्ता विश्वेश्वरैया ने दिखाया था, भारत उसी पथ पर आगे बढ़ रहा है। उन्होंने अपने करियर के शुरुआती दौर में कोल्हापुर, बेलगाम, धारवाड़, बीजापुर, अहमदाबाद और पुणे समेत कई शहरों में जलापूर्ति परियोजनाओं पर काफी काम किया था। देश भर में कई नदियों पर बने बांध, पुल और पेयजल परियोजनाओं को पूर्ण रूप से सफल बनाने में सर विश्वेश्वरैया का अहम योगदान रहा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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