जानिए, क्यों पनामा पेपर्स मामले में कर चोरों के नाम गुप्त रख सकता है ईडी
अब केंद्रीय सूचना आयोग ने स्थापित किया है कि पनामा पेपर्स लीक मामले में प्रवर्तन निदेशालय कर चोरी करने के आरोपितों के नाम को अपने तक सीमित रख सकता है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। पनामा पेपर्स लीक का बम भारत, पाकिस्तान समेत कई देशों पर एक साथ फूटा था। शायद यह पहला ऐसा बम विस्फोट था, जिसके धमाके की आवाज तो नहीं आई, लेकिन इसने हजारों लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। भारत में भी कई लोगों से इसके तार जुड़े। अब केंद्रीय सूचना आयोग ने स्थापित किया है कि पनामा पेपर्स लीक मामले में प्रवर्तन निदेशालय कर चोरी करने के आरोपितों के नाम को अपने तक सीमित रख सकता है।
सूचना आयुक्त बिमल जुल्का ने कहा कि इस मामले के तथ्यों और दोनों पक्षों की दलीलों के आधार पर जवाबदेह जनप्रशासन आरटीआइ अधिनियम, 2005 की धारा 24(1) के तहत इस मामले में अब और दखल की जरूरत नहीं है। दुर्गा प्रसाद चौधरी की आरटीआइ याचिका में केंद्रीय जांच एजेंसी से कोई संतोषजनक जवाब न मिलने पर केंद्रीय सूचना आयोग ने यह फैसला सुनाया है।
वर्ष 2017 में चौधरी ने पनामा पेपर्स के मामले में तीन बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। पहला : सूची में शामिल लोगों के नाम, दूसरा : लीक पर की गई कार्रवाई और तीसरा : जांच में देरी के लिए जिम्मेदार अफसर। जब जांच एजेंसी ने धारा 24 (1) के तहत मामले की जानकारी देने से इन्कार किया तो यह मामला आरटीआइ मामलों की सर्वोच्च संस्था में पहुंच गया।
मामले की सुनवाई के दौरान चौधरी ने कहा कि उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार का यह गंभीर मामला है। उसके बाद भी उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई है। उन्होंने आयोग का ध्यान पनामा मामले की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्टों की ओर भी आकृष्ट किया। इनमें कुछ नामों का उल्लेख किया गया था, जो पनामा पेपर्स मामले से जुड़े हुए थे।
इस पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का भी कहना था कि उन्हें कोई भी जानकारी नहीं देने की छूट है, क्योंकि मामला अदालत में विचाराधीन है। इसलिए मामले से जुड़ी जानकारियां साझा नहीं की जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि आरटीआइ अधिनियम की धारा 24(1) के तहत कुछ खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को पारदर्शिता कानून से छूट दी गई है। इन्हें तभी जारी किया जा सकता है, अगर आरोप भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन के हों।