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कोरोना संकट के चलते बिजली भी हो सकती है महंगी, 90 हजार करोड़ रुपये के पैकेज नाकाफी : रिपोर्ट

कोरोना संकट के चलते देश में जिस तरह के हालात बने हैं उसने देश का पावर सेक्टर भी अछूता नहीं है। आरबीआइ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस संकट के चलते बिजली सेक्टर पर जो असर पड़ा है उससे बाहर निकलने में उसे अभी लंबा वक्त लगेगा।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 31 Oct 2020 07:43 PM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 03:57 AM (IST)
कोरोना संकट के चलते बिजली भी हो सकती है महंगी, 90 हजार करोड़ रुपये के पैकेज नाकाफी : रिपोर्ट
एक रिपोर्ट के मुताबिक... कोरोना संकट के चलते बिजली महंगी हो सकती है।

नई दिल्ली, जेएनएन। कोरोना संकट के चलते जिस तरह के हालात बने हैं उसने देश का पावर सेक्टर भी अछूता नहीं है। वैसे लॉकडाउन खत्म होने के बाद देश के पावर प्लांटों में उत्पादन और मांग की स्थिति में बीते तीन महीनों में काफी सुधार हुआ है लेकिन कोरोना के शुरुआती चार महीनों के दौरान बिजली सेक्टर पर जो असर पड़ा है उससे बाहर निकलने में उसे अभी वक्त लगेगा। आरबीआइ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली की मांग घटने और बिजली शुल्क वसूलने की प्रक्रिया के बाधित होने का समूचे पॉवर सेक्टर पर लंबा असर होगा। यही नहीं इसका बोझ आगे चल कर आम जनता को भी उठाना होगा।

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राज्यों की माली हालत पर जारी आरबीआइ की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना संकट ने मांग को जितना प्रभावित किया है उसका असर पावर सेक्टर पर साल 2020-21 के बाद भी रहेगा। स्थिति इतनी खराब है कि केंद्र सरकार की तरफ से 90 हजार करोड़ रुपए की आर्थिक मदद भी नाकाफी पड़ रही है। राज्यों के वित्तीय हालात पर भी इसका असर होना तय है क्योंकि इस 90 हजार करोड़ रुपए का बोझ राज्यों के बजट पर भी पड़ने जा रहा है। ऐसे में कोरोना के सामान्य होने के बाद बिजली क्षेत्र को एक और राहत पैकेज देने की जरूरत होगी।

यही नहीं बिजली उत्पादन की लागत बढ़ने के चलते वितरण कंपनियों को बिजली की कीमतें भी बढ़ानी होगी। रिपोर्ट में उदय योजना के बारे में कहा गया है कि इसे जिन राज्यों ने स्वीकार किया है उनकी हालात में भी कोई खास सुधार नहीं हुआ है। उदय योजना के तहत राज्यों के लिए बिजली खरीद और बिजली की बिक्री के अंतर को कम करना बाध्यता थी लेकिन उक्त रिपोर्ट कहती है कि असलियत में यह पिछले दो-तीन वर्षों में और खराब हुई है। सिर्फ पांच राज्य (असम, हरियाणा, गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र) जिस दर पर बिजली खरीद रहे हैं उसकी पूरी कीमत वसूलने में सफल रहे हैं।

शेष सभी राज्यों में यह अंतर 30 पैसे प्रति यूनिट से लकर दो रुपये प्रति यूनिट तक है। कहने का मतलब यह हुआ कि बिजली क्षेत्र के घाटे को पूरा करने के लिए वितरण कंपनियों को इतनी वृद्धि करनी पड़ सकती है। लेकिन यह स्थिति पिछले वित्त वर्ष तक की है। चालू वित्त वर्ष के दौरान डिस्काम के लिए वाणिज्यिक एवं औद्योगिक मांग काफी कम हो गई है। कई राज्य आवासीय बिजली की दर लागत से नीचे रखते हैं जबकि वाणिज्यिक एवं औद्योगिक क्षेत्र से ज्यादा वसूलते हैं ताकि भरपाई हो सके।

पहले लॉकडाउन से और अब औद्योगिक सुस्ती की वजह से इस क्षेत्र में खपत कम हो गई है। केंद्रीय बिजली नियामक आयोग की 28 अक्टूबर 2020 की रिपोर्ट बताती है कि मांग नहीं होने से देश के सभी पॉवर प्लांटों ने मिला कर अपनी क्षमता का सिर्फ 57.73 फीसद उत्पादन किया है। बिजली मंत्रालय का उदय पोर्टल बताता है कि साल 2020-21 के पहले छह महीनों में बिजली उत्पादन में 9.12 फीसद की गिरावट आई है। पोर्टल में साल 2008 के बाद की जानकारी हैं और इसके रिकार्ड के मुताबिक पूर्व में कभी भी बिजली उत्पादन में गिरावट दर्ज नहीं की गई है। 


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