बुजुर्ग दंपती ने कोरोना की जंग में दान की अंतिम सफर की 'माया', पेंशन से चलता है खर्च
बुजुर्ग दंपती ने पीएम केयर फंड व मुख्यमंत्री राहत कोष में दिए एक-एक लाख दैनिक जागरण में बच्ची के गुल्लक तोड़कर पैसा देने की खबर पढ़कर हुए प्रेरित।
ताराचंद्र गुप्ता, प्रयागराज। जिंदगी मिली है तो एक दिन दुनिया से जाना भी तय है। अगर बुजुर्ग हैं तो क्या पता कब जिंदगी की शाम हो जाए। ऐसी स्थिति में अगर कोई अपना नहीं है तो मन में यह खयाल आता ही है कि कौन करेगा अंतिम क्रिया कर्म। क्रिया कर्म और दान पुण्य के लिए पैसों की भी जरूरत होती है। यही सोचकर सेवानिवृत्त बुजुर्ग भागीरथ मिश्र ने अपने व पत्नी के लिए दो लाख रुपये बैंक में जमा कर रखे थे कि उससे लोग सद्गति दे देंगे, लेकिन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एक बच्ची के योगदान ने दंपती के मन पर ऐसा असर किया कि उन्होंने अपने अंतिम समय के लिए जमा रुपये राहत कोष में दान कर दिया।
अस्सी बरस के भागीरथ मिश्र प्रयागराज स्थित सीओडी छिवकी से ऑफिस सुपररिंटेंडेंट पद से सेवानिवृत्त हैं। वह पत्नी पुष्पा मिश्र के साथ नैनी स्थित एडीए कॉलोनी में रहते हैं। उनके कोई संतान नहीं है, न ही कोई अपना खास। पंजाब नेशनल बैंक में जमा रुपये के ब्याज और पेंशन से जरूरतें पूरी हो रही थीं। पैसा संयुक्त रूप से जमा था ताकि किसी एक के साथ अनहोनी पर दूसरा पैसा निकाल ले। एक दिन दैनिक जागरण में बच्ची के गुल्लक फोड़कर 438 रुपये कोरोना की लड़ाई में पीएम केयर फंड में देने की खबर पढ़ी। बकौल भागीरथ, बच्ची के उदारमन की खबर से वह प्रेरित हुए तो पत्नी से चर्चा की कि क्यों न बैंक में जमा पैसे को कोरोना की लड़ाई में दे दिया जाए।
पत्नी पुष्पा ने भी समर्थन किया। इस पर उन्होंने बैंक ड्राफ्ट बनवाया तो उसमें गलती हो गई। इस पर वह बैंक गए और एक लाख रुपये पीएम केयर फंड और एक लाख रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष में ट्रांसफर करवा दिया। बुजुर्ग दंपती कहते हैं कि जनकल्याण के लिए दो लाख रुपये देने से उन्हें बहुत संतुष्टि मिली है।
पेंशन से चलता है खर्च : मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले के हिरजी गांव के रहने वाले भागीरथ मिश्र बताते हैं कि इतनी पेंशन मिलती है कि घर का खर्च चलता है। भविष्य की स्थितियों का सामना भी इससे हो जाएगा। कहते हैं कि नौकरी मिलने के बाद प्रयागराज आए और फिर नैनी में ही बस गए।