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दिल्ली में प्रचार थमा अब मतदान प्रतिशत पर नजर

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। दिल्ली दरबार की त्रिकोणीय लड़ाई में मतदान प्रतिशत की अहमियत बढ़ गई है। चुनाव आयोग और कई गैर सरकारी संगठनों ने मतदाताओं को उनके वोट की ताकत बताने के लिए अभियान चला कर इसकी उम्मीदें और बढ़ा दी हैं। आयोग ने हालांकि मतदाता सूची में शामिल फर्जी नामों को हटाने पर गंभीरता से काम नहीं किया। इस वजह से मतदान प्रतिशत बढ़ाने के प्रयास पर चोट भी पहुंच सकती है।

By Edited By: Published: Mon, 02 Dec 2013 09:11 AM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2013 10:29 PM (IST)
दिल्ली में प्रचार थमा अब मतदान प्रतिशत पर नजर

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। दिल्ली दरबार की त्रिकोणीय लड़ाई में मतदान प्रतिशत की अहमियत बढ़ गई है। चुनाव आयोग और कई गैर सरकारी संगठनों ने मतदाताओं को उनके वोट की ताकत बताने के लिए अभियान चला कर इसकी उम्मीदें और बढ़ा दी हैं। आयोग ने हालांकि मतदाता सूची में शामिल फर्जी नामों को हटाने पर गंभीरता से काम नहीं किया। इस वजह से मतदान प्रतिशत बढ़ाने के प्रयास पर चोट भी पहुंच सकती है।

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दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रचार अभियान सोमवार शाम थम गया। मतदाता अब बुधवार को अपने वोट के जरिये चुनाव में खड़े आठ सौ से ज्यादा उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में बंद करेंगे। देश के विभिन्न राज्यों में लगातार मतदान प्रतिशत भले बढ़ रहा है, लेकिन दिल्ली जैसे महानगरों में इसका उतना असर नहीं दिख रहा। वर्ष 1993 में जब दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे तो यहां 61.8 फीसद मतदान हुआ था। उसके बाद 1998 में यह घटकर 49 फीसद रह गया। वर्ष 2003 में मतदान थोड़ा बढ़कर 53.4 फीसद और 2008 में 57.58 फीसद रहा। वर्ष 2007 में एमसीडी (नगर निगम) चुनाव में सिर्फ 40 फीसद लोगों ने ही वोट डाले।

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आयोग के कहने पर सरकारी और गैर सरकारी सभी दफ्तरों में सार्वजनिक छुंट्टी होने के बावजूद दक्षिणी दिल्ली के पॉश इलाकों में तो महज 35 फीसद लोग ही वोट डालने निकले। इसी तरह पिछले साल महाराष्ट्र के दस बड़े शहरों में स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान सिर्फ 46 फीसद वोट पड़े थे। जबकि, चेन्नई में वर्ष 2011 में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में 48 फीसद वोट पड़े।

दिल्ली विधानसभा चुनाव को इस बार आम आदमी पार्टी (आप) ने दिलचस्प बना दिया है। पिछली बार एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर जीत-हार का अंतर एक से डेढ़ हजार वोट का था। ऐसे में अगर मतदान का प्रतिशत नहीं बढ़ा तो जीतने और हारने वाले उम्मीदवारों के बीच फर्क और कम हो सकता है।

'दैनिक जागरण' ने भी 'सभी चुनें, सही चुनें' अभियान के जरिये मतदाताओं को उनके वोट की ताकत बताई। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफा‌र्म्स (एडीआर) और जनाग्रह जैसे गैर सरकारी संगठन भी इस काम में लगे हुए हैं। चुनाव आयोग ने भी इस बार नए मतदाताओं को जोड़ने और लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करने की काफी कोशिश की। लेकिन, आयोग ने उन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से हटाने में गंभीरता नहीं दिखाई है, जो अब यहां मौजूद नहीं हैं।

'जनाग्रह' की ओर से करवाए गए अध्ययन के मुताबिक दिल्ली की मतदाता सूची में मौजूद 1.23 करोड़ लोगों में से लगभग 23 लाख ऐसे हैं, जिनके नाम हटा दिए जाने चाहिए थे। बुराड़ी सीट पर तो 24 फीसद मतदाता गायब पाए गए। बड़े दल इस बारे में जानकारी होने के बावजूद यह सोच कर इसे दुरुस्त करवाने पर ध्यान नहीं देते, कि बोगस वोट डलवा कर इसका फायदा उठा सकेंगे।

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